दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता लड़की को बच्चे को जन्म देने के लिए प्रेरित करना होगा। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि यह मां के भविष्य के गर्भधारण के लिए भी हानिकारक हो सकता है। यदि महिला चाहे तो प्रसव और भविष्य की कार्रवाई के लिए एम्स दिल्ली से संपर्क कर सकती है। प्रमुख संस्थान उसे सभी सुविधाएं प्रदान करेगा और उसकी गर्भावस्था के संबंध में सलाह देगा। पीठ ने यह भी कहा कि यदि महिला बच्चे को गोद देने के लिए इच्छुक है तो वह केन्द्र सरकार से संपर्क कर सकती है।
पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें महिला ने कहा था कि वह एनईईटी परीक्षा की तैयारी कर रही है। उसने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के प्रावधानों के तहत अपने भ्रूण का गर्भपात कराने की मांग की। उसने कहा कि 16 अप्रैल को पेट में तकलीफ होने पर अल्ट्रासाउंड कराया तो पता चला कि वह 27 सप्ताह की गर्भवती है, जो 24 सप्ताह की कानूनी रूप से स्वीकार्य सीमा से अधिक है।
महिला के वकील ने कहा कि गर्भावस्था को जारी रखने से उसे शारीरिक व मानसिक स्वास्थय को गंभीर चोट लग सकती है, क्योंकि वह एक छात्रा है और आय का कोई स्रोत भी उसके पास नहीं है। साथ ही वह अविवाहित है। वकील ने कहा कि गर्भावस्था जारी रखने पर उसे सामाजिक कलंक और उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा, जिससे उसका करियर और भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।