नई दिल्ली:भारत की आजादी के बाद कांग्रेस पूरे देश में एकछत्र राज कर रही थी, लेकिन कश्मीर मुद्दे या फिर पाकिस्तान से संबंधों को लेकर उसके भीतर ही मतभेद पैदा हो गए थे। जवाहर लाल नेहरू देश के पहले पीएम थे और उनकी ही कैबिनेट के सदस्य रहे श्यामाप्रसाद मुखर्जी के उनसे कई मुद्दों पर मतभेद थे। नेहरू-लियाकत समझौते को लेकर वह नाराज थे और पाकिस्तान में हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने चिंता जताई थी। इसके अलावा कश्मीर को लेकर भी नेहरू सरकार के रवैये से वह सहमत नहीं थे। अंत में उन्होंने कैबिनेट से ही इस्तीफा दे दिया और फिर जनसंघ की स्थापना हुई, जिसका ही एक रूप आज हम भाजपा के तौर पर देखते हैं। जो खुद को देश ही नहीं दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कहती है।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेहरू कैबिनेट से इस्तीफे के बाद आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव राव गोलवलकर उर्फ श्री गुरुजी से मुलाकात की। इसके बाद जनसंघ की स्थापना की प्रक्रिया शुरू हुई। 21 अक्टूबर, 1951 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी की लीडरशिप में दिल्ली के राघोमल कन्या माध्यमिक विद्यालय से इसकी शुरुआत हुई। इसी दौरान पार्टी का चुनाव चिह्न और झंडा तय हुआ। चुनाव चिह्न दीपक बना और भगवा रंगका आयताकार झंडा जनसंघ ने अपनाया। इसी मौके पर देश के पहले आम चुनाव के लिए मेनिफेस्टो भी तय कर लिया गया था।
पहले आम चुनाव में जनसंघ को 3 फीसदी वोट मिले थे और तीन सांसद जीते थे। इसके साथ ही जनसंघ को राष्ट्रीय दल का दर्जा मिल गया। संसद में डॉ. मुखर्जी की लीडरशिप में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट के नाम से गठबंधन बना, जिसका हिस्सा अकाली दल, गणतंत्र परिषद और हिंदू महासभा जैसे दल थे। कुल 32 लोकसभा और राज्यसभा के 6 सांसद इस गठबंधन के पाले में थे और विपक्ष की एक सशक्त आवाज यह बना। इस तरह हम कह सकते हैं कि एक तरह से देश के पहले अघोषित विपक्षी नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी बने थे। तब से 1975 तक जनसंघ ने विपक्ष की मजबूत भूमिका अदा की और आपातकाल में भी सक्रियता रही। 1977 में आपातकाल खत्म होने पर जनसंघ का विलय जनता दल में हुआ और एक नई सरकार में वह हिस्सेदार भी रही।
हालांकि यह लंबा नहीं चला और 1980 में जनता दल में शामिल हुए जनसंघ के सदस्यों ने अपनी अलग पार्टी भाजपा की नींव 6 अप्रैल को रखी। आज भाजपा को बने 42 साल हो गए हैं और पार्टी केंद्र की सत्ता में दूसरी बार लगातार पूर्ण बहुमत से सत्ता में है। इसके अलावा यूपी समेत कई राज्यों में बहुमत की सरकारें हैं। 19080 में भाजपा के पहले अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी चुने गए थे। अपनी स्थापना के साथ ही भाजपा राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हो गई। बोफोर्स एवं भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पुनः गैर-कांग्रेसी दल एक मंच पर आये तथा 1989 के आम चुनावों में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को भारी पराजय का सामना करना पड़ा। वी.पी. सिंह के नेतृत्व में गठित राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार को भाजपा ने बाहर से समर्थन दिया।
इसी बीच देश में राम मंदिर के लिए आंदोलन शुरू हुआ। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक के लिए रथयात्रा शुरू की। इस राम मंदिर आंदोलन को भारी समर्थन मिला और बाबरी ढांचा विध्वंस के बाद से पार्टी का विस्तार उत्तर भारत के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र जैसे पश्चिमी राज्यों में भी तेजी से हुआ। भाजपा ने अपने शुरुआती दौर से ही जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने, राम मंदिर निर्माण और समान नागरिक संहिता को मुद्दा बनाया था। इनमें से राम मंदिर निर्माण और अनुच्छेद 370 पर भाजपा सफलता पा चुकी है, जबकि समान नागरिक संहिता को लेकर वह प्रयास करने की बात कर रही है।