डेस्क:देश की इकोनॉमी की रफ्तार पर ब्रेक लग गया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जुलाई से सितंबर के बीच यानी दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 5.4% की दर से बढ़ी, जो अप्रैल-जून तिमाही में 6.7% पर थी। एक साल पहले इसी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ की दर 8.1% थी। हालांकि, सितंबर तिमाही के ग्रोथ की रफ्तार सात तिमाहियों में सबसे धीमी है।
वहीं, जीडीपी की वृद्धि का पिछला निम्न स्तर 4.3 प्रतिशत था जो वित्त वर्ष 2022-23 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में दर्ज किया गया था। हालांकि, भारत दुनिया की सबसे तेज प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है। बता दें कि इस साल जुलाई-सितंबर तिमाही में चीन की जीडीपी वृद्धि दर 4.6 प्रतिशत थी।
क्या कहते हैं आंकड़े
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के आंकड़ों से पता चलता है कि कृषि क्षेत्र वित्त वर्ष 2024-25 की जुलाई-सितंबर तिमाही में 3.5 प्रतिशत बढ़ा जबकि एक साल पहले की समान अवधि में यह 1.7 प्रतिशत बढ़ा था। बीती तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की वृद्धि दर गिरकर 2.2 प्रतिशत रह गई, जबकि एक साल पहले इसमें 14.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। दूसरी तिमाही के जीडीपी आंकड़े आने के साथ ही चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में जीडीपी वृद्धि छह प्रतिशत आंकी गई है। पिछले वित्त वर्ष की पहली छमाही में जीडीपी वृद्धि 8.2 प्रतिशत रही थी।
बेस ईयर बदलने की तैयारी
सरकार अर्थव्यवस्था की सटीक तस्वीर को दर्शाने के लिए जीडीपी की गणना को लेकर बेस ईयर बदलकर 2022-23 करने पर विचार कर रही है। यह फरवरी 2026 से अमल में आएगा। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) के सचिव सौरभ गर्ग ने यह जानकारी दी।
जीडीपी गणना के लिए आखिरी बार 2011-12 में संशोधन किया गया था और यह एक दशक से अधिक समय में पहला संशोधन होगा। बेस ईयर को नियमित रूप से संशोधित करना इसलिए जरूरी है, ताकि सूचकांक अर्थव्यवस्था की संरचना में बदलावों को सटीक रूप से दिखाए।