प्रेम कितना भी दे दिया जाये, कितना भी एडजस्टमेंट, कोम्प्रोमाईज़, सैक्रिफाइस किया जाये, एक/दो दिन के डिस्टर्बेंस सारे किये गये त्याग पर हावी हो जाते हैं.. इंसान अच्छी चीज़ों को कम ही याद रखते हैं.. सौ अच्छाई की जगह एक बुराई ही हावी होती है.. आजकल प्रेम में साथ मांगना, बातों को सुनना कमज़ोरी की निशानी बन गयी है, जबकि इंसान प्रेम में किसी खास का साथ और अटेंशन ही चाहता है.. मुझे लगता है हर इंसान ही भावनात्मकरूप से कहीं न कहीं कमज़ोर ही होता है.. जहाँ बोझ लगने लगता है वहाँ खुद को कमज़ोर कह कर दूर कर देता है.. नहीं तो प्रेम में एक दूसरे के प्रति कमज़ोर होना, थोड़ा पोसेसिव होना रिश्ते को कमज़ोर नहीं स्ट्रांग ही बनाता है.. इंसान को जिससे प्रेम होता है, प्यार से उसके सब ज़ुल्म सह ले.. लेकिन जहाँ प्यार नहीं वहाँ उसके लिए कोई कितना भी कर ले लेकिन उसका मन कभी नहीं पा सकता.. छोटी से छोटी गलती कभी भी हावी हो जाती है…
आजकल ऑप्शन बढ़ने पर प्रेम का दायरा भी बढ़ा और प्रेम का मायने भी बदला.. आजकल वर्चुअल प्रेम बहुत चलता है.. मेरी माने तो बिना मिले, बिना देखे भी प्रेम हो सकता है.. प्रेम होने के लिए उपस्थिति ज़्यादा मायने नहीं रखती..मैं कुछ लोगों को जानती हूँ जो बिना मिले सिर्फ बातों के आधार पर ही इस तरह जुड़ गए कि वहाँ से निकल नहीं पाये.. और शायद ही कभी निकल पायें.. क्यूंकि प्रेम से भी गम्भीर माया से जुड़ना है.. प्रेम छूट जाये लेकिन माया कैसे छूटे भला… जैसे प्यार बिना उपस्थिति के हो सकता है वैसे किसी को चोट पहुँचाने के लिए भी खुद की उपस्थिति ज़रूरी नहीं होती.. बोल कर दी गयी चोट हाथ से दी गयी चोट से ज़्यादा असर करती है.. कई बार लोग अपनों के बारे में सोच कर, रिश्ते के बारे में सोच कर बीमार पड़ जाते है, किसी के बारे में सोच कर गिर जाना, कटना, जलना, चोट लगना यह सब साधारण सी बातें है आये दिन होता है… इसलिए ज़रूरी नहीं की किसी को चोट पहुँचाने के लिए हमारा शारीरिक तौर पर उपस्थित होना ज़रूरी ही हो.. बस हम वहाँ उपस्थित नहीं इसलिए हमारी कोई ज़िम्मेदारी भी नहीं तय होती.. हम उस दर्द और तकलीफ को समझना नहीं चाहते हैं.. या यूं कहें कि लगाव और जुड़ाव है ही नहीं की उसे अनुभव की जा सके… कुछ प्यार एक तरफा ही होता है.. मेरी माने तो ज़्यादातर प्यार एक तरफा ही होता है… कोई एक करता है तो कोई एक निभाता है.. जब निभाने वाले रिश्ते से ऊब जाते हैं तब रिश्ता ख़त्म हो जाता है क्यूंकि प्यार करने वालों को आखिरकार सब छोड़ना ही पड़ता है, क्यूंकि प्यार करने वाले आखिर अपने प्यार के लिए कमज़ोर ही होते हैं… शायद जो सच में किसी से प्रेम करें और वहाँ से 1% प्रेम भी मिल जाय तो किस्मत ही कहेंगे… सच्चा प्रेम अक्सर अधूरेपन और अनकही बातों के साथ ही ख़त्म होता है… और यह दुनिया एक जंगल ही है जहाँ कमज़ोर पर ही ज़ुल्म और राज किया जाता है… और प्यार में तो हर कोई कमज़ोर ही पड़ जाता है, और हर कोई अपनी – अपनी जगह कमज़ोर ही है…