जलवायु परिवर्तन से पैदा हुए हालात से निपटने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक यानी RBI एक नियामक और पर्यवेक्षी ढांचा (Regulatory and supervisory framework) स्थापित करने की दिशा में काम कर रहा है। यह नियामक सरकार के साथ मिलकर काम करेगा। इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन की रोकथाम और उससे होने वाले नुकसान से निपटने में सरकार को सहयोग प्रदान करना होगा। इसके साथ ही, जलवायु जोखिमों के खिलाफ भुगतान प्रणाली में लचीलापन लाने की दिशा में भी काम करेगा, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ-2) उत्सर्जन को कम करने के लिए किए जा रहे कार्यों को आसानी से वित्तीय सहायता मिल सके।
आरबीआई ने हाल ही में जलवायु परिवर्तन-उभरती चुनौती शीर्षक से प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में माना है कि दुनिया के साथ जलवायु परिवर्तन भारत के लिए बड़ी चुनौती है। बाढ़, सूखा और भूस्खलन जैसे मामले बढ़े हैं, जिनसे अर्थव्यवस्था को तमाम नुकसान हो रहे हैं। अगर यही स्थिति जारी रहती है तो भविष्य में देश का आर्थिक विकास भी इससे व्यापक स्तर पर प्रभावित होगा।
बाढ़ और सूखे से बढ़ती है महंगाई
बाढ़ और सूखे के चलते खाद्य वस्तुओं की महंगाई बढ़ती है। वहीं, आपदा आने पर सरकार के खर्च बढ़ते हैं। आपदा में लोगों के साथ ढांचागत नुकसान भी होती है, जिनकी भरपाई के लिए वित्तीय संस्थानों को कई बार मोटी रकम खर्च करनी पड़ रही है। आरबीआई ने कहा, जलवायु परिवर्तन की दिशा में खर्च बढ़ाने की जरूरत है, जो शुरुआत में भले ही अर्थव्यवस्था के पर भार की तरह होगा, लेकिन भविष्य में जाकर उसके बड़े लाभ भी अर्थव्यवस्था को मिलेंगे।
2030 तक लक्ष्य बड़ा है…
भारत पंचामृत नामक अपनी व्यापक रणनीति पर काम कर रहा है। वर्ष 2021 में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा ग्लासगो (ब्रिटेन) में आयोजित जलवायु परिवर्तन सम्मेलन काप-26 भारत ने महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं। इसका सबसे अहम लक्ष्य है कि गैर-जीवाश्म ईंधन को बढ़ावा देना, जिसके तहत 2030 तक भारत का लक्ष्य 500 गीगावॉट ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने का है।
अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45 प्रतिशत से भी कम करना और कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करना भी शामिल है। इसके साथ ही, वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करना। अब केंद्रीय बैंक का मानना है कि इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए एक नियामक का होना आवश्यकता है।
जीडीपी का सालाना 2.5 प्रतिशत खर्च करने की जरूरत
आरबीआई का मानना है कि जलवायु परिवर्तन से निटपने के लिए तय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए वर्ष 2030 तक सालाना सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.5 प्रतिशत खर्च किए जाने की जरूरत होगी। यानी प्रति वर्ष 2 खरब अमेरिकी डॉलर की वित्तीय सहायता उन सभी कार्यों के लिए देनी जरूरी है, जो कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए किए जा रहे हैं। इसी के तहत भविष्य में बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति के सिद्धांतों के तहत पर्यावरण जोखिम, विश्लेषण और प्रभावी प्रबंधन का मार्गदर्शन नोट जारी करेगा।
अभी तक सरकार द्वारा किए गए प्रयास
– अंतरराष्ट्रीय सौर संगठन की सह-स्थापना
– राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की शुरूआत
– मिशन लाइफ
आरबीआई द्वारा अभी तक उठाए गए कदम
– रिन्यूबल एनर्जी परियोजनाओं को वित्तीय सहायता
– हरित जमा की शुरूआत
– जलवायु परिवर्तन से संबंधित वित्तीय जोखिमों के लिए मौसदा तैयार करना