भारत और ईरान के बीच चाबहार पोर्ट और तेल की खरीद के अलावा कई अहम मसलों पर लंबे समय से साझेदारी रही है। दोनों देशों ने अपने संबंधों को संतुलन में रखा है, खासकर जब अमेरिका जैसे ताकतवर देशों का ईरान पर भारी दबाव रहा हो। इसके बावजूद, ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई की हालिया टिप्पणी, जिसमें उन्होंने भारत में मुस्लिमों की स्थिति पर चिंता जताई, ने चौंकाया। खासकर ऐसे समय में जब चीन के शिनजियांग प्रांत में मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ ईरान ने कोई टिप्पणी नहीं की। खामेनेई की इस पोस्ट में न केवल भारत बल्कि गाजा का भी जिक्र किया गया, जिससे मुस्लिम एकजुटता की अपील की गई।
खामेनेई के बयान पर भारत के विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया दी, लेकिन इसने सवाल खड़ा किया कि भारत और ईरान के बीच अच्छे संबंधों के बावजूद, सुप्रीम लीडर ने यह बयान क्यों दिया। इस पर जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के असिस्टेंट प्रोफेसर संदीप कुमार सिंह का मानना है कि इसका कारण ईरान के भीतर एक असंतोष है कि भारत ने इजरायल के साथ अपने संबंध क्यों सुधार लिए हैं। पहले भारत की नीति फिलिस्तीन और इजरायल के मुद्दे पर संतुलन की थी, लेकिन अब ईरान को लग रहा है कि भारत का झुकाव इजरायल की ओर ज्यादा हो गया है।
संदीप सिंह के अनुसार, “ईरान के संबंध अब चीन और रूस से बेहतर हो गए हैं, जबकि अमेरिका और इजरायल से उसकी दूरी बढ़ी है। भारत का यूक्रेन पर स्टैंड भी ईरान से अलग है। हालांकि भारत और ईरान के बीच अच्छे संबंध रहे हैं, लेकिन सुप्रीम लीडर की इस टिप्पणी से यह संकेत मिलता है कि ईरान भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है।”
खामेनेई की पोस्ट में चीन का जिक्र नहीं किया गया, जबकि वहां मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब चर्चा में हैं। यह इंगित करता है कि ईरान की यह प्रतिक्रिया रणनीतिक हो सकती है। संदीप सिंह का यह भी मानना है कि खाड़ी देशों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा भी इस प्रतिक्रिया का एक कारण हो सकता है। भारत के सऊदी अरब और यूएई जैसे खाड़ी देशों से संबंध मजबूत हुए हैं, जबकि ईरान और तुर्की एक अलग खेमे में हैं। संभव है कि ईरान इस्लाम के नाम पर खुद को नेता साबित करना चाहता हो, और भारत के संबंधों को लेकर सुन्नी मुस्लिम देशों को संदेश देना चाहता हो।
इसके साथ ही, ईरान खुद को न केवल एक शिया देश के रूप में, बल्कि पूरी मुस्लिम उम्मा के नेता के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। ऐसे में यह बयान उसकी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है।