अजमेर। अजमेर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में एक दीवानी वाद दायर किया गया है। इसमें दावा किया गया है कि राजस्थान में अजमेर दरगाह एक शिव मंदिर के ऊपर बनाई गई थी। कोर्ट से मांग की गई है कि इसे भगवान श्री संकटमोचन महादेव विराजमान मंदिर घोषित किया जाना चाहिए। साथ ही दरगाह समिति द्वारा परिसर पर किए गए अनधिकृत और अवैध कब्जे को हटाने की मांग भी की गई है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा अधिवक्ता शशि रंजन कुमार सिंह के माध्यम से दायर मुकदमे की सुनवाई 10 अक्टूबर को होने की संभावना है। याचिका में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को दरगाह का सर्वेक्षण करने के निर्देश देने की भी मांग की गई है। अजमेर दरगाह सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार है।
विष्णु गुप्ता द्वारा दायर मुकदमे में दावा किया गया है कि मुख्य प्रवेश द्वार पर छत का डिजाइन हिंदू संरचना जैसा दिखता है। यह दर्शाता है कि यह स्थल मूल रूप से एक मंदिर था। इन छतरियों की सामग्री और शैली स्पष्ट रूप से उनके हिंदू मूल को दर्शाती है। उनकी उत्कृष्ट नक्काशी दुर्भाग्य से रंग और सफेदी के कारण छिपी हुई है, जो इसे हटाने के बाद इसकी वास्तविक पहचान और वास्तविकता को प्रदर्शित कर सकती है।
इसमें आगे तर्क दिया गया है कि ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है जो दर्शाता हो कि अजमेर दरगाह खाली जमीन पर बनाई गई थी। इसके बजाए ऐतिहासिक विवरण बताते हैं कि इस स्थल पर महादेव मंदिर और जैन मंदिर थे, जहां हिंदू भक्त अपने देवताओं की पूजा करते थे। मुकदमे में केंद्र सरकार को विवादित संपत्ति के स्थल पर भगवान श्री संकटमोचन महादेव मंदिर के पुनर्निर्माण के निर्देश देने की मांग की गई है।
मुकदमे में आगे मांग की गई है कि अजमेर में संपत्ति के भीतर मौजूद महादेव लिंग के स्थान पर वर्तमान संरचना को हटाने के बाद भगवान श्री संकटमोचन महादेव मंदिर का पुनर्निर्माण किया जाए और पूजा, भोग, देवता के अनुष्ठानों के लिए हर व्यवस्था की जाए। अदालत से प्रार्थना की गई है कि दरगाह समिति और सरकार के लिए काम करने वालों को उपरोक्त संपत्ति में किसी भी तरह से प्रवेश करने या उपयोग करने से रोका जाए। मुकदमे में दरगाह को ध्वस्त करने और उसके स्थान पर एक मंदिर के निर्माण के लिए निर्देश देने की मांग की गई है।
मुकदमे में दावा किया गया है कि तहखाने में महादेव की एक छवि है, जहां ख्वाजा को दफनाया गया था। अजमेर शरीफ दरगाह को भारत में सबसे पवित्र मुस्लिम तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है।