जिन घरों में एक से ज्यादा बच्चे होते हैं उन घरों में अधिकतर पेरेंट्स की ये शिकायत होती है कि उनके बच्चे आपस में हमेशा लड़ते-झगड़ते रहते हैं। बचपन में भाई-बहनों के बीच में छोटी-मोटी लड़ाइयां होना नॉर्मल बात है। लेकिन कई बार बड़े होने के बाद भी भाई-बहनों के बीच में मनमुटाव बना रहता है, जिसकी वजह से धीरे-धीरे रिश्ते में खटास आने लगती है। आप मानें चाहे ना मानें, इसमें कहीं ना कहीं पेरेंट्स की भी गलती होती है। हालांकि पेरेंट्स ऐसा करना नहीं चाहते हैं लेकिन कई बार उनकी परवरिश में जाने-अनजाने ऐसी गलतियां हो जाती हैं जिसकी वजह से सगे भाई- बहनों के रिश्ते में मन-मुटाव होने लगता है। तो चलिए आज इनके बारे में बात करते हैं।
एक को प्यार दूसरे को फटकार
अक्सर ऐसा देखने को मिलता है कि जब घर में छोटा बच्चा आ जाता है तो बड़े बच्चे का भी सारा प्यार उसी पर लुटा दिया जाता है। दूसरी तरफ बड़े बच्चे को छोटी-छोटी गलतियों के लिए भी डांट खानी पड़ती है और उससे हमेशा समझदारी की उम्मीद की जाती है। कई बार ये सेम बिहेवियर बच्चों के बड़े हो जाने के बाद भी चलता रहता है, जिसका असर कहीं ना कहीं उनके आपसी रिश्ते पर पड़ने लगता है। जबकि पेरेंट्स को ऐसा करने से बचना चाहिए। उन्हें दोनों बच्चों को बराबर प्यार देना चाहिए और गलती करने पर दोनों को ही बराबर डांटना या समझाना चाहिए।
एक दूसरे से तुलना करना
हर इंसान अलग होता है। सबकी बुद्धि, कैपेसिटी, नेचर सबकुछ अलग होता है। भाई-बहन भी अलग होते है। लेकिन कई बार पेरेंट्स अपने ही बिहेवियर से बच्चों के बीच में कंपटीशन की भावना ला देते हैं, जो सही नहीं है। एक बच्चे की तुलना, दूसरे बच्चे से कभी नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से बच्चा अपने ही भाई-बहन से इनसिक्योर होने लगता है, जो कहीं ना कहीं बाद में उनके रिश्ते पर नेगेटिव इफेक्ट डालता है।
गलतियों के लिए सिर्फ एक को ना ठहराएं जिम्मेदार
कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि जब बच्चों की वजह से घर का कोई सामान टूट जाता है या कोई नुकसान हो जाता है, तो अक्सर घर के बड़े बच्चे या छोटे बच्चों को ही जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है। जबकि ये सही नहीं है। गलती दोनों की है तो सजा भी दोनों को बराबर ही मिलनी चाहिए। एक को पनिशमेंट देकर और दूसरे की गलती को नजरअंदाज कर देने से भी उनके आपसी रिश्ते में खटास आने लगती है। ऐसे में बच्चे पेरेंट्स को तो कुछ कह नहीं पाते हैं तो आपस में ही लड़ने लगते हैं।
समझें बच्चे की भावनाओं को
अगर बच्चों के मन में जलन या ईर्ष्या की भावना आ रही है तो इसे ना तो नजरअंदाज करें और ना ही इस पर ओवर रिएक्ट करके बच्चों को डांटे और फटकारें। बल्कि प्यार से उनकी इस भावना को बदलने का प्रयास करें। साथ ही ये भी समझने की कोशिश करें कि बच्चों के मन में ऐसी भावना क्यों आ रही है। कहीं यह आपके किसी बिहेवियर का साइड इफेक्ट तो नहीं। अपनी उस आदत को बदलने का प्रयास करें। बच्चों में भेदभाव किए बगैर, उन्हें समान प्यार और सम्मान दें। ऐसा करने से बच्चों का आपसी रिश्ता भी गहरा होगा।