पंजाब में फसल कटाई के बाद पराली जलाने के मामलों में इस साल काफी कमी दर्ज की गई है, लेकिन इसके बावजूद दिल्ली की वायु गुणवत्ता पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है। ‘पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर’ के अनुसार, 15 सितंबर से 27 अक्टूबर तक पंजाब में पराली जलाने की कुल 1,995 घटनाएं सामने आईं, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में यह आंकड़ा 4,059 था। अगर 2022 के आंकड़ों से तुलना की जाए, तो इस साल पराली जलाने में 75 प्रतिशत की कमी आई है।
क्यों नहीं हुआ दिल्ली के प्रदूषण पर असर?
पंजाब, हरियाणा और अन्य पड़ोसी राज्यों में धान की कटाई के बाद रबी फसलों के लिए भूमि तैयार करने का समय कम होता है, जिससे कुछ किसान फसल अवशेषों को जलाने का सहारा लेते हैं। हालांकि पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है, पर दिल्ली में प्रदूषण का स्तर अब भी खतरनाक श्रेणी में बना हुआ है। दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) इस रविवार 355 दर्ज किया गया, जो ‘‘बेहद खराब’’ श्रेणी में आता है।
पराली जलाने के राज्यवार आंकड़े
रविवार को पंजाब में 138 घटनाएं सामने आईं, जिसमें सबसे अधिक मामले फिरोजपुर, संगरूर और फतेहगढ़ जिलों से दर्ज किए गए। पिछले वर्षों की तुलना में इस वर्ष पराली जलाने की घटनाओं में गिरावट देखी गई है। 2022 में इसी अवधि में 1,111 घटनाएं और 2023 में 766 घटनाएं दर्ज हुईं।
पंजाब में पराली जलाने की प्रवृत्ति
पंजाब में 31 लाख से अधिक हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती होती है, जिससे करीब 180-200 लाख टन पराली उत्पन्न होती है। 2023 में राज्य में पराली जलाने के कुल 36,663 मामले दर्ज किए गए, जो पिछले साल की तुलना में 26 प्रतिशत कम थे। 2018 से 2023 तक की अवधि में पराली जलाने की घटनाओं में गिरावट देखने को मिली है।
दिल्ली की वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए पराली जलाने के विकल्पों पर काम करना जरूरी है ताकि अगली फसल की तैयारी में किसान आग लगाने का सहारा न लें और इस समस्या का स्थायी समाधान मिल सके।