डेस्क:हरियाणा विधानसभा चुनाव में मिली जीत भाजपा के लिए कई मोर्चों पर कारगर साबित हुई। एक तो महाराष्ट्र चुनाव में भगवा दल बढ़त की स्थिति में आ गया, दूसरा इसने पार्टी और संघ के बीच की खाई को पाटने का भी काम किया। इससे पहले, ऐसी चर्चा होने लगी थी कि बीजेपी और आरएसएस के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। मगर, जमीनी स्तर पर संघ परिवार की मेहनत ने भाजपा के हरियाणा में हैट्रिक लगाने में बड़ा योगदान दिया। इससे भाजपा और आरएसएस के बीच परस्पर निर्भरता की फिर से पुष्टि हुई। अब दोनों का फोकस महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों पर है। पार्टी और संघ दोनों के हौसले बड़े हुए हैं जो बेहतर चुनावी नतीजे देने का काम कर सकते हैं।
पिछले सप्ताह उत्तर प्रदेश के मथुरा में संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक हुई थी। इस दौरान आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने जोर देकर कहा कि संघ और भाजपा के बीच सब कुछ ठीक है। दरअसल, लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि पार्टी को अपने मामले चलाने के लिए RSS की जरूरत नहीं है, क्योंकि वह अब अपने आप में सक्षम है। ऐसा कहा गया कि पार्टी के शीर्ष नेता के इस बयान ने बीजेपी और आरएसएस के बीच दरार बढ़ाने का काम किया। हालांकि, कुछ समय बाद होसबले ने ऐसी बातों को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि संघ ने नड्डा के बयान की भावना को समझा और यह किसी तनाव का कारण नहीं था।
हमारा किसी भी पार्टी से कोई झगड़ा नहीं: होसबले
लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की ओर से संघ पर दिए गए बयान पर दत्तात्रेय होसबले से सवाल किया गया। तनातनी का दावा करने वाली खबरों पर उन्होंने कहा, ‘हम एक सार्वजनिक संगठन हैं। हमारा किसी भी पार्टी से कोई झगड़ा नहीं है। भाजपा से तो बिल्कुल नहीं, क्योंकि हम ऐसा कुछ नहीं सोचते। हम सभी से मिलते हैं। हम किसी के साथ भेदभाव नहीं करते।’ उन्होंने कहा कि हमें नफरत क्यों करनी? उल्टा, मेरा कहना है कि जो नफरत के बाजार में मुहब्बत की दुकान चलाना चाहते हैं, वे तो हमसे मिलना ही नहीं चाहते।
साथ आने की महसूस हुई जरूरत और…
भाजपा नेता इस बात पर जोर देते हैं कि जमीनी स्तर पर पार्टी और संघ के कार्यकर्ताओं के बीच कोई तनाव नहीं रहा। जानकार बताते हैं कि लोकसभा चुनाव में लगा झटका दोनों पक्षों के लिए आंखें खोलने वाला था। उन्हें एक बार फिर से साथ आने की जरूरत महसूस हुई। इस दिशा में काम भी हुआ और हरियाणा चुनाव में मिली जीत से इसकी पुष्टि हो गई। यह साबित हुआ कि संगठन और उनका नेटवर्क अभी भी चुनाव में बदलाव ला सकता है। हाल के दिनों में रांची, पलक्कड़ और दिल्ली में आरएसएस की बैठकें हुईं। इस दौरान संबंधों को लेकर गहन चर्चा भी हुई। संघ से जुड़े सूत्र ने कहा, ‘दोनों के बीच कभी वैचारिक संघर्ष नहीं था, महज कार्यात्मक कठिनाइयां थीं। इन्हें काफी हद तक सुलझा लिया गया है।’