डेस्क: यूपी में उपचुनाव के बीच दलित राजनीति एक बार फिर गरमाने वाली है। भीम आर्मी के प्रमुख और आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष सांसद चंद्रशेखर आजाद ने यूपी में जाति देखकर पुलिस और प्रशासन में अधिकारियों की तैनाती का आरोप लगाया है। मुख्य सचिव (CS) मनोज कुमार सिंह को पत्र लिखकर डीजी से लेकर डीएम-एसपी और थानेदारों के पद पर एससी-एसटी की तैनाती का पूरा ब्योरा मांगा है। चंद्रशेखर ने पूछा है कि विभिन्न विभागों में कितने अपर मुख्य सचिव, मुख्य सचिव और सचिव के साथ ही कितने कमिश्नर, डीएम, एडीएम एससी-एसटी वर्ग के तैनात हैं।
चंद्रशेखर ने पूछा है कि पुलिस महकमे में तैनात डीजी, एडीजी, आईजी, डीआईजी, एसएसपी, एसपी और थानों व कोतवाली में तैनात थानेदारों में कितने एससी-एसटी वर्ग के हैं। चंद्रशेखर ने बतौर गृह संबंधी मामलों की संसदीय समिति का सदस्य और SC/ST कल्याण संबंधी संसदीय समिति का सदस्य होने के नाते मुख्य सचिव से सात सवालों के जवाब मांगे हैं।
मुख्य सचिव को लिखे पत्र में चंद्रशेखर ने कहा कि उत्तर प्रदेश में जाति आधारित उत्पीड़न, शोषण, अपराध व हिंसा की घटनाएं कम होने की जगह बढ़ती ही जा रही हैं। प्रदेश की प्रशासनिक सेवा व पुलिस प्रशासन में बैठे ज्यादातर अधिकारी/कर्मचारी इस अन्याय अत्याचार के खिलाफ लचर व गैर जिम्मेदाराना रवैया रखते हैं। कहा कि इन समस्याओं के मूल में जो सबसे बड़ा आरोप लगता है वो निर्णय लेने के पदों पर वंचित वर्गों के अधिकारियों/कर्मचारियों/पुलिसकर्मियों को प्रतिनिधित्व न दिया जाना है। दूसरे शब्दों में कहें तो जिलाधिकारी, अपर जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, अपर पुलिस अधीक्षक और थानाध्यक्षों की जाति देखकर नियुक्ति करना है।
चंद्रशेखर ने लिखा कि आबादी के हिसाब से उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है। प्रदेश की आबादी लगभग 25 करोड़ है। प्रदेश की इस बड़ी जनसंख्या की तकरीबन 22% आबादी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की है। भारत के संविधान में जाति के आधार पर शोषण, अत्याचार व गैर बराबरी को खत्म करने व अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति को प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। लेकिन यूपी में जाति आधारित उत्पीड़न, शोषण, अपराध व हिंसा की घटनाएं कम होने की जगह बढ़ती ही जा रही हैं।
बिना एफआईआर भगा दिया जा रहा
चंद्रशेखर ने लिखा कि अन्याय, अत्याचार व उत्पीड़न होने पर वंचित वर्ग के पीड़ितों को थाने से बिना FIR लिखे भगा देने की घटनाएं हो रही हैं। इसके अलावा पुलिसकर्मियों द्वारा अभद्रता से पेश आने की घटना, FIR कमजोर धाराओं में दर्ज करना, हरीर बदल देने की घटनाएं प्रकाश में आती रहतीं हैं।
कहा कि वंचित वर्ग के उत्पीड़न के मामलों में स्थानीय प्रशासन और पुलिस प्रशासन का रवैया ज्यादातर मामलों में अत्यंत असंवेदनशील या आरोपी पक्ष की तरफ झुकाव का ही रहता है। एक समान न्याय के लिए विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को अलग-अलग दायित्व दिए गए हैं। इनमें से कार्यपालिका स्थानीय स्तर पर वंचित वर्गों के शोषण, अत्याचार, उत्पीड़न व हिंसा को रोकने का सबसे प्रभावी स्तंभ है।
ऐसे में संसद सदस्य होने के साथ ही गृह संबंधी मामलों की संसदीय समिति का सदस्य और SC/ST कल्याण संबंधी संसदीय समिति का सदस्य होने के नाते समझना चाहता हूं कि वास्तव में इन आरोपों में कितना दम है? कहा कि प्रदेश के प्रशासनिक व पुलिस महकमे के मुखिया होने के नाते आपसे इन प्रश्नों के जवाब जानना चाहता हूं।
इन सवालों का मांगा जवाब
1. उत्तर प्रदेश के विभिन्न विभागों में कितने अपर मुख्य सचिव/मुख्य सचिव और सचिव SC/ST वर्ग के तैनात हैं।
2. उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग से कितने जिलाधिकारी, अपर जिलाधिकारी कार्यरत हैं।
3. उत्तर प्रदेश के 18 मंडलों में कितने कमिश्नर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के हैं?
4. प्रदेश के कितने जिलों में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक SC/ST वर्ग के हैं।
5. प्रदेश के किस जोन में ADG/IG व किस रेंज में DIG SC/ST वर्गों के हैं?
6. प्रदेश के कितने पुलिस महानिदेशक (DG) व कितने अपर पुलिस महानिदेशक SC/ST वर्ग से आते हैं।
7. प्रदेश के 75 जिलों में कोतवाली/थानों में कितने प्रभारी निरीक्षक SC/ST वर्गों से तैनात किए गए हैं।