डेस्क:झारखंड में चुनाव प्रचार के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि अगर बीजेपी राज्य की सत्ता में आती है तो समान नागरिक संहिता (UCC) लागू की जाएगी। साथ ही उन्होंने इस वादे में एक लकीर भी खींच दी। उन्होंने कहा कि जनजातीय समुदायों को इससे बाहर रखा जाएगा। यूसीसी बीजेपी के मुख्य मुद्दों में से एक है। अमित शाह कोई पहले बीजेपी नेता नहीं हैं जिन्होंने यूसीसी लागू करने की और जनजातीय समुदायों को इससे बाहर रखने की बात कही है।
जनसंघ के समय से ही समान नागरिक संहिता दक्षिणपंथी पार्टी का अजेंडा रहा है। पिछले कुछ सालों से इसके दायरे से आदिवासियों को बाहर रहने की बात अलग से जोड़ दी गई। दरअसल बीजेपी को सवर्णों की पार्टी के रूप में देखा जाता था। ऐसे में दलितों और आदिवासियों को वोट बैंक को रिझाना एक बड़ी चुनौती थी। रविवार को एक जनसभा के दौरान अमित शाह ने कहा कि आदिवासी समुदायों की विरासत और पहचान की रक्षा करना उनका कर्तव्य है।
जुलाई 2023 में दिवंगत बीजेपी नेता सुशील मोदी ने भी कहा था कि पूर्वोत्तर के राज्यों के जनजातीय समूहों को समान नागरिक संहिता के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। इसके बाद केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने अरुणाचल प्रदेश में कहा, हमें अरुणाचल के आदिवासी इलाकों में समान नागरिक संहिता को लेकर बात ही नहीं करनी चाहिए। आपको पता होना चाहिए कि आदिवासी इलाकों में इसे नहीं लागू किया जाएगा। दूसरी बात जो भी कानून बनाए जाते हैं वे देश की भलाई के लिए ही बनाए जाते हैं।
बीजेपी के मंत्री एसपी बघेल ने भी कहा था कि सरकार आदिवासियों की संस्कृति और मान्यताओं में कोई दखल नहीं देना चाहती। उन्होंने यह भी कहा था कि तुष्टीकरण की राजनीति यूसीसी को लागू करने से रोक नहीं सकती। उन्होंने कहा, बीजेपी ने आदिवासी महिला को राष्ट्रपति पद के लिए नामित किया। इसमें सबसे ज्यादा संख्या में आदिवासी विधायक, सांसद और राज्यसभा सदस्य हैं। बात जब पूर्वोत्तर की आती है तो पार्टी वहां के लोगों का सम्मान करती है। पार्टी वहां के सामाजिक ढांचे में दखल नहीं देना चाहती।
उन्होंने कहा कि संविधान की छठी सूची में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के आदिवासी क्षेत्रों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। जब तक कि राज्य सरकार कोई कदम नहीं उठाती इन राज्यों के सामाजिक ढांचे से जुड़े कोई फैसले नहीं लिए जाएंगे। आर्टिकल 371 ए को लेकर भी उन्होंने कहा था कि नागा समुदाय के मामले में भी कोई भी कानून दखल देने नहीं जा रहा है।
इसी साल की शुरुआत में असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा था कि उत्तराखंड और गुजरात के बाद असम तीसरा राज्य बनेगा जो यूसीसी को लागू करेगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि जानजातियों को इसके दायरे से बाहर ही रखा जाएगा। उत्तराखंड के यूसीसी ड्राफ्ट में भी आदिवासियों को बाहर रखा गया है। आदिवासियों के बाहर रखने के फैसले को लेकर बीजेपी की आलोचना भी हो रही है। विरोधियों का कहना है कि यह सब केवल मुसलमानों को टारगेट करने के लिए किया जा रहा है।