सूरत:धर्म नगरी सूरत में आज अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी एवं मूर्तिपूजक खतरगच्छ संप्रदाय से आचार्य श्री मणिप्रभ सागरसुरी जी का संयम विहार में आध्यात्मिक मंगल मिलन हुआ। जैन धर्म के दो प्रभावक धर्माचार्यों का आत्मीय मिलन देख श्रद्धालु श्रद्धामय भावों से अभिस्नात हो उठे। आचार्य श्री के मंगलमय चातुर्मास से सूरत मानों धर्म तीरथ बन चुका है। दोनों आचार्यों का मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में सकल समाज के मध्य प्रेरणादायक उद्बोधन हुआ। तत्पश्चात प्रवास स्थल पर कुछ देर साधु–साध्वी समुदाय के मध्य चर्चा वार्ता का भी क्रम रहा। चातुर्मास संपन्नता अब सम्मुख है ऐसे में गुरू सन्निधि में जन समुदाय धर्माराधना से लाभान्वित हो रहा है। मंगल भावना के क्रम में आज अनेकानेक वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए।
आयरो आगम व्याख्यान माला के क्रम को संपन्नता की ओर ले जाते हुए आचार्य श्री ने कहा – व्यक्ति सत्य का अनुशीलन कर व यथार्थ की जानकारी करे, असत्य का आचरण नहीं करे। सत्य व यथार्थ समझ लेना हमें अनेक समस्याओं का समाधान है। यथार्थ व यथार्थ को बताने वाले महान व्यक्ति होते हैं।यथार्थवादी, यथार्थ को जानने वाला व यथार्थ बोलने वाला आप्त होता है। ईमानदारी एक व्यापक तत्व है व सब धर्म सम्प्रदायों के लिए मान्य हैं। बेईमानी का कोई पक्षधर नहीं होता। साधु तो पूर्ण मृषावाद का विरमण करने वाले होते ही हैं, पर गृहस्थ भी यथा-संभव झूठ न बोलें। मनोबली व दृढ संकल्पी स्वयं को झूठ से बचा सकते है। भगवान की वाणी यथार्थ होती है व इस पर कोई संदेह नहीं होना चाहिए।
आगे फरमाते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि जैन शासन में अनेक आम्नाय है। परस्पर वेश भूषा में अंतर हो सकता, मान्यता भेद हो सकता है, उपासना पद्धति में भी अंतर हो सकता है। किन्तु जहां वितरागता की बात है, अहिंसा की बात है, जहां जैन दर्शन के विकास प्रसार की बात है वहां फिर भेद का इतना महत्व नहीं रहता। जैन शासन के साधु–साध्वियों से यदा कदा मिलन होता रहता है। मिलने से कभी तत्व वार्ता करते हुए अच्छी हित की बात भी प्राप्त हो सकती है। आज आपका यहां आना हुआ है। जैन शासन मानव जाति का कल्याण का कार्य हमारे द्वारा होता रहे।
आचार्य श्री मणिप्रभ सुरीश्वर जी ने कहा कि प्रसन्नता का विषय है कि आज आपसे मिलन हुआ है। पूर्व में आचार्य श्री तुलसी के समय दिल्ली में भी मिलन हुआ एवं सामूहिक कार्यक्रम का क्रम रहा। आज उनके पट्टधर से मिलन हुआ है। यह एक शुभ मिलन है। जैन संतों पर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। भले अलग अलग संप्रदायों से हो लेकिन जिन शासन के हर साधु साध्वियों का ध्येय, लक्ष्य एक है। एक दो प्रतिशत बातों का अंतर हो सकता है। आज युवा समाज अलगाव के रास्ते पर जा रहा है ऐसे में यह संतों का मिलन एक जैन एकता का प्रकार संदेश देता है।
तेरापंथ धर्मसंघ अपने आप में अद्भुत धर्मसंघ है। आपके अनुशासन एवं मर्यादा की हम हमेशा अनुमोदना करते है। चाहते है पूरे जिनशासन में ऐसे ही अनुशासन एवं मर्यादा सर्वत्र प्रसारित हो तो निश्चित ही हमारा जैन समाज प्रगति की ओर बढ़ता जाएगा।
चातुर्मास मंगल भावना के क्रम में सूरत नगर निगम की कमिश्नर शालनी जी अग्रवाल, संगठन मंत्री हरीबोकरजी, विमल जी बोथरा, अर्जुन जी मेडतवाल, बिंदुजी भंसाली, रमेश बोलियां, कुलदीप जी कोठारी, कल्पना जी बच्छावत, नवनीत जी, सुरेश जी दक आदि ने अपने विचार रखे।