डेस्क:पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत की हत्या के दोषी बलवंत सिंह की दया याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के सचिव को आदेश दिया है कि वह राष्ट्रपति के सामने दया याचिका रखें और दो सप्ताह में कंसीडर करने का निवेदन करें। साल 1995 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की दर्दनाक हत्या कर दी गई थी।
न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति पी के मिश्रा और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने राष्ट्रपति से दो सप्ताह के भीतर याचिका पर विचार करने का अनुरोध किया। पीठ ने कहा, ‘मामले की सुनवाई के लिए विशेष रूप से आज का दिन तय किए जाने के बावजूद भारत संघ की ओर से कोई भी उपस्थित नहीं हुआ। पीठ केवल इसी मामले की सुनवाई के लिए बैठी थी।’
पीठ ने कहा, ‘सुनवाई की इससे पहले की तारीख में मामले को स्थगित कर दिया गया था ताकि केंद्र सरकार राष्ट्रपति कार्यालय से यह निर्देश ले सके कि दया याचिका पर कब तक निर्णय लिया जाएगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता मृत्युदंड का सामना कर रहा है, हम भारत के राष्ट्रपति के सचिव को निर्देश देते हैं कि वह मामले को राष्ट्रपति के समक्ष रखें और उनसे अनुरोध करें कि वह आज से दो सप्ताह के भीतर इस पर विचार करें।’ पीठ ने कहा कि मामले में आगे की सुनवाई पांच दिसंबर को होगी।
दअसल घटना 31 अगस्त 1995 की है जब मुख्यमंत्री बेअंत सिंह रोज की तरह सचिवालय में थे। वह किसी काम से बाहर निकल रहे थे। सचिवालय से निकलते ही जैसे वह अपनी कार में बैठने वाले थे, वहां मौजूद पंजाब पुलिस के एक जवान दिलावर सिंह बब्बर ने खुद पर बंधे बम में विस्फोट कर लिया। इस विस्फोट में मुख्यमंत्री के साथ सत्रह लोग मारे गए थे। मंजर इतना दर्दनाक था कि देखना मुश्किल था। चारों पर लाशों को चीथड़े पड़े थे।
बलवंत सिंह राजोआना को 2007 में हत्या में शामिल होने के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई थी। इस मामले में 15 लोगों को आरोपी बनाया गया था। उसमें जगतार सिंह हवारा और बलवंत सिंह राजोआना को मौत की सजा दी गई थी। इसके अलावा आरोपी गुरमीत सिंह, लखविंदर सिंह, शमशेर सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। दो आरोपियों को ट्रायल कोर्ट ने ही बरी कर दिया था। राजोआना पंजाब पुलिस के एक पूर्व कॉन्स्टेबल था और बब्बर खालसा का बॉम्बर था। शिरोमणि अकाली दल राजोआना की रिहाई की मांग कर रहा था।
बीते साल सुप्रीम कोर्ट ने राजोआना की सजा को कम करनने से इनकार कर दिया था। वह 27 साल से जेल में है। साल 2012 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की अपील के बाद उसकी फांसी की सजा पर रोक लगा दी गई थी।
राजोआना चलता रहा दांव
राजोआना ने 2020 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका फाइल कर दावा कर दिया था कि उसकी सजा को कम करने का फैसला सरकार ने किया है। इसके बाद गृह मंत्री ने सदन में बताया कि इस तरह का कोई भी निर्णय नहीं लिया गया है। वहीं तिहाड़ में बंद अन्य दोषी हवारा को अकाल तख्त का जत्थेदार घोषित किया गया। हालांकि शिरोमणि अकाली दल ने इसको मान्यता अब तक नहीं दी है। हवारा की मौत की सजा को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने आजीवन कारावास में बदल दिया था। उसने सजा कम करने के लिए भी गुहार लगाई है।
दरअसल बेअंत सिंह की सरकार में खालिस्तानियों के खात्मे के लिए पुलिस के छूट दे दी गई थी। तत्कालीन जीडीपी केपीएस गिल ने ऑपरेशन चलाकर आतंकियों का सफाया शुरू किया तो कई आतंकी भागकर दूसरे देश जाने लगे। इसके बाद बब्बर खालसा इंटरनेशनल ने उनकी हत्या की साजिश रची।