छापर:आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) के दिन जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें गुरु, मानवता के मसीहा, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालूगणी की जन्मस्थली छापर में 263वें तेरापंथ स्थापना दिवस का नव्य-भव्य समारोह समायोजित हुआ। इस नव्य-भव्य समारोह में तेरापंथ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने दो दीक्षाएं प्रदान कर धर्मसंघ की मानों प्रवर्धमानता भी कर दी। ऐसे सुगुरु की मंगल सन्निधि में आयोजित इस समारोह को अपने नेत्रों से निहारने को श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ा।
बुधवार को आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा थी, जिसे गुरु पूर्णिमा के रूप में ख्याति भी प्राप्त है। वह दिन जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के और अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि आज के ही दिन लगभग 263 वर्ष पूर्व इस धर्मसंघ की स्थापना तेरापंथ धर्मसंघ के प्रथम आचार्य महामना भिक्षु ने की थी। यह सुयोग ही था कि गुरु पूर्णिमा का अवसर हो, तेरापंथ धर्मसंघ के एक आचार्य की जन्मभूमि हो और एक आचार्य की मंगल सन्निधि हो और उसमें भी तेरापंथ धर्मसंघ की परंपरा को वृद्धिगंत करने वाला दीक्षा समारोह का आयोजन हो। यह सब सुखद और महनीय संयोग चूरू जिले के छापर कस्बे को प्राप्त हो रहा था।
चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बना प्रवचन पण्डाल जनाकीर्ण बना हुआ था। प्रातः नौ बजे तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी मंचासीन हुए और श्रीमुख से नमस्कार महामंत्रोच्चार कर आज के भव्य कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। साध्वीवर्या साध्वी संबुद्धयशाजी ने आचार्य भिक्षु के अभिनिष्क्रमण, तेरापंथ की स्थापना और नए मार्ग में आए बाधाओं का वर्णन किया तो मुख्यमुनि महावीरकुमारजी ने गुरु पूर्णिमा के संदर्भ में गुरु की महत्ता पर प्रकाश डाला।
तदुपरान्त आचार्यश्री ने उपस्थित जनमेदिनी को श्रीमुख से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में सच्चाई, ईमानदारी और प्रमाणिकता का बहुत महत्त्व है। सच्चाई की खोज के लिए पुरुषार्थ की अपेक्षा होती है। वैज्ञानिक और अध्यात्म जगत में सच्चाई की खोज की जाती है। सच्चाई को खोजना कोई सामान्य बात नहीं। खोजकर्ता के मन में उसके प्रति समर्पण, श्रद्धा और निष्ठा कितनी है, यह भी महत्त्वपूर्ण होता है। जिस प्रकार आदमी सर्दी, गर्मी, बरसात से बचाने वाले मकान को भी भूकंप की स्थिति में छोड़ता है, उसी प्रकार सच्चाई की खोज में यदि एक स्तर के बाद संप्रदाय को छोड़ना भी पड़े तो छोड़ा जा सकता है। सच्चाई की प्राप्ति के लिए कुछ बलिदान क्षमता हो तो कुछ प्राप्त हो सकता है।
आज आषाढ़ी पूर्णिमा है और आज ही चतुर्मास प्रारम्भ होने से पूर्व की पक्खी भी है। आज यहां गुरुकुलवास ही नहीं देश भर में चारित्रात्माएं चतुर्मास के लिए आबद्ध हो रहे होंगे। आज आचार्य भिक्षु का दीक्ष दिवस भी है। कितने समय से इस दिन का समायोजन किया जा रहा है। जोधपुर में सेवक जाति की 13 की संख्या पर आधारित पंक्ति को आचार्यश्री भिक्षु ने अपनी बुद्धिमत्ता से परिभाषित करते हुए स्वीकार किया और तेरह की संख्या, 13 नियम के साथ हे प्रभु! यह तेरा पंथ को उद्घोषित कर दिया। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मुख्यमंत्रीकाल के दौरान और प्रधानमंत्री काल के दौरान तेरापंथ को मेरा पंथ भी कहा। आचार्य भिक्षु ने अपना प्रथम चतुर्मास केलवा में किया।
आज का दिन तेरापंथ की स्थापना से जुड़ा हुआ है। संगठन शुरू करना भी विशेष बात और उसे आगे भी बढ़ाते रहना भी विशेष बात होती है। तेरापंथ धर्मसंघ को आरम्भ हुए आज 262 वर्ष हो गए। आचार्य भिक्षु ने इसका भरण-पोषण किया, ऐसी व्यवस्था बनाई जो आज भी चल रही है। उनके बाद के सभी आचार्यों ने भी धर्मसंघ को आगे बढ़ाया और नित नवीन ऊंचाईयां प्रदान कीं। इनमें श्रीमज्जयाचार्य के युग में तेरापंथ का विकास हुआ। आज जो मर्यादा महोत्सव, वर्तमान आचार्य का पट्टोत्सव आदि अनेक कार्यक्रमों का आयोजन आरम्भ हुआ। आचार्य कालूगणी के युग में संस्कृत का विशेष विकास हुआ। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञजी के काल में भी हमारे धर्मसंघ ने किया विकास किया है और आगे भी विकास होता रहे। धर्मसंघ के विकास और संगठन की मजबूती के लिए आचार्य, चारित्रात्माओं व श्रावक-श्राविकाओं को भी जागरूक रहना चाहिए। साधु-साध्वियां, समणश्रेणी और श्रावक-श्राविकाएं अच्छा कार्य करते रहें। मुमुक्षु संख्या वृद्धि हो और भी धर्मसंघ की सेवा होती रहे। आचार्यश्री ने ‘हमारे भाग्य बड़े बलवान..’ गीत का आंशिक संगान किया।
इस अवसर पर मुनिवृंद ने गीत का संगान किया। आचार्यश्री पट्ट से उतरकर नीचे खड़े हुए तो उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ ने खड़े होकर संघगान किया। तदुपरान्त आरम्भ हुआ दीक्षा समारोह का कार्यक्रम। मुमुक्षु दीक्षिता ने दीक्षार्थी नेकता पारिक का परिचय प्रस्तुत किया। पारमार्थिक शिक्षण संस्था के अध्यक्ष श्री बजरंग जैन ने आज्ञा पत्र का वाचन किया। समणी स्वर्णप्रज्ञाजी ने श्रेणी आरोहण कर रही समणी अर्हतप्रज्ञाजी का परिचय प्रस्तुत किया। श्री विक्रम भाई पारिक व उनकी पत्नी ने आचार्यश्री के करकमलों में आज्ञा पत्र समर्पित किया। दीक्षार्थी नेकता और समणी अर्हतप्रज्ञाजी ने अपनी आस्थाभिव्यक्ति दी।
साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी ने दीक्षा के महत्त्व को व्याख्यायित किया। आचार्यश्री ने दीक्षा के क्रम को आगे बढ़ाते हुए दीक्षार्थी के माता-पिता व अन्य परिजनों से मौखिक स्वीकृति भी प्राप्त की। दीक्षार्थियों के मनोभाव की पुष्टि भी आचार्यश्री ने अपने ढंग से करने के उपरान्त आचार्यश्री ने आर्षवाणी का उच्चारण कर जीवन भर के लिए सर्व सावद्य योगों का त्याग करा दीक्षा प्रदान कर दी। श्रीमुख से आर्षवाणी करते हुए आचार्यश्री ने अतीत की अलोयणा कराई तो साध्वीप्रमुखाजी ने नवदीक्षित साध्वियों का केशलुंचन व राजोहरण की प्रक्रिया पूर्ण की। आचार्यश्री ने नामकरण संस्कार को पूर्ण करते हुए समणी अर्हतप्रज्ञाजी को साध्वी युक्तिप्रभाजी तथा मुमुक्षु नेकता को साध्वी प्राचीप्रभाजी नाम प्रदान किया तो पूरा वातावरण जयघोष से गुंजायमान हो उठा। श्रावक-श्राविकाओं ने नवदीक्षित साध्वियों को वंदन किया। आचार्यश्री ने नवदीक्षित साध्वियों को पावन आशीर्वाद प्रदान करते हुए विविधि प्रेरणा प्रदान कर साध्वीप्रमुखाजी की सन्निधि में अपना विकास करने की प्रेरणा प्रदान की।
मंत्र जप अनुष्ठान के बाद आचार्यश्री ने की वर्ष 2022 के चतुर्मास की स्थापना
लगभग 2.30 बजे चतुर्मास प्रवास स्थल में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के साथ चतुर्विध धर्मसंघ चतुर्मास की स्थापना से पूर्व आयोजित मंत्र जप अनुष्ठान में संभागी बने। विभिन्न मंगल मत्रोंच्चार के जप अनुष्ठान के उपरान्त आचार्यश्री ने छापर में वर्ष 2022 के चतुर्मास की स्थापना कर दी। इस प्रकार आचार्यश्री कालूगणी की जन्मधरा पर 74 वर्षों बाद तेरापंथ के ग्यारहवें आचार्य द्वारा चतुर्मास की स्थापना की गई।