आनंद:स्वामीनारायण संप्रदाय की उद्गमस्थली बोचासण स्थित स्वामीनारायण मंदिर परिसर में एकदिवसीय प्रवास कर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान गणराज, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में गतिमान हुए तो स्वामीनारायण मंदिर के स्वामीजी आदि अनेकानेक अनुयायियों ने आचार्यश्री को कृतज्ञभावों से विदाई दी। दो संप्रदायों के अद्भुत मिलन ने आचार्यश्री के सद्भावना के सूत्र को फलीभूत किया तो स्वामीनारायण संप्रदाय के संतों व अनुयायियों द्वारा कृतज्ञभावों से दी गई विदाई ने आत्मीयता के प्रगाढ़ता पर मुहर लगाई
सुबह के वातावरण में अपना स्थान रखने वाली ठंड मानों सूर्य के किरणों के आगे नत्मस्तक हुई तो धूप की प्रखरता ने अपना स्थान बना लिया। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर मानेज गांव में स्थित मणि लक्ष्मी तीर्थ में पधारे, जहां मूर्तिपूजक आम्याय के साधु साध्वियों से आचार्यप्रवर का आध्यात्मिक मिलन हुआ। तीर्थ से संबंधित लोगों ने युगप्रधान आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।
तीर्थ परिसर में प्रवचन कार्यक्रम में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि सुनना, बोलना, देखना, चलना, खाना, पीना आदि मानव जीवन में होते हैं। हमारे जीवन में श्रोत्रेन्द्रिय (कान) और चक्षुरेन्द्रिय (आंख) इन दोनों का बहुत विशेष महत्त्व होता है। ये दोनों आदमी के जीवन में बाह्य दृष्टि से ज्ञानार्जन की सशक्त माध्यम भी बनती हैं। आदमी सुनकर कल्याण को भी जान लेता है और पाप को भी जान लेता है। तीर्थंकरों की वाणी भी सुनी जाती है। साधु, आचार्य आदि की मंगलवाणी को सुना जाता है और बातचीत के दौरान भी सुनकर आदमी ज्ञान प्राप्त करता है। सुनने से धार्मिक ज्ञान की भी प्राप्ति होती है। ग्रन्थों को आंखों से पढ़कर भी ज्ञान ग्रहण किया जाता है। ग्रंथों को पढ़ने से भी ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है, परन्तु पढने के बाद यदि कोई प्रश्न हो और उस प्रश्न को कोई समाहित कर दे तो ज्ञान पुष्ट हो सकता है।
आदमी को अपने जीवन में ज्ञान ग्रहण का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान जहां से भी प्राप्त हो, वहां से ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए। चाहे भले वह साधु हो अथवा न हो, अच्छा आदमी हो, ज्ञानी हो तो उससे भी ज्ञान ग्रहण कर लेना चाहिए। ज्ञान अच्छा हो, समझाने वाला अच्छा हो और वह आसानी से समझ आ जाए तो ज्ञान फलदायी होता है। ज्ञान को ग्रहण करने वाला अच्छा हो और ज्ञान प्रदान करने वाला भी अच्छा हो, ज्ञानी हो और उसमें भी कोई साधक हो, विशेष अध्ययन रखने वाला हो तो कितना ज्ञान प्राप्त हो सकता है। परम पूज्य आचार्यश्री भिक्षु के पास कितना ज्ञान था।
जिसके पास ज्ञान हो, बोलने की कला हो और समझाने का तरीका भी अच्छी हो और श्रोता भी अच्छा होता है तो ज्ञान का अच्छा विकास हो सकता है। सुनकर आदमी कल्याण की चीजों कों ग्रहण करने और पाप की चीजों को छोड़ने का प्रयास करे तो जीवन का कल्याण हो सकता है।
मणि लक्ष्मी तीर्थ के मैनेजर श्री निकुंजभाई पटेल ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।