डेस्क:बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जो अमूमन बयान जारी करने तक सीमित रहती थी, जुलाई 2016 के बाद पहली बार सड़क पर उतरती नजर आई। इसके पीछे प्रमुख कारण बसपा का खिसकता हुआ जनाधार है, जिसने मायावती को यह कदम उठाने पर मजबूर कर दिया। उत्तर प्रदेश में चार बार दलितों के दम पर सत्ता में आने वाली बसपा का यही वोट बैंक अब उससे छिटकता दिखाई दे रहा है।
भाजपा विरोध का संदेश देने की कोशिश
बसपा पर लंबे समय से भाजपा की ‘टीम बी’ होने का आरोप लगता रहा है। लेकिन डॉ. भीमराव अंबेडकर के अपमान के मुद्दे पर बसपा ने भाजपा के खिलाफ प्रदर्शन कर यह संदेश देने का प्रयास किया कि वह भाजपा की पिछलग्गू नहीं है, बल्कि उसकी विरोधी और दलितों की सच्ची शुभचिंतक है।
2017 के बाद से घटा जनाधार
कांशीराम ने बसपा को दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों के सहारे उत्तर प्रदेश में खड़ा किया था। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी का आधार कमजोर होने लगा। मायावती की नेतृत्व शैली और संगठन को मजबूत करने में कमी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया।
खोए हुए जनाधार की वापसी की कवायद
2007 में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने वाली बसपा ने “सोशल इंजीनियरिंग” का फार्मूला अपनाया, लेकिन यह बाद के चुनावों में कारगर साबित नहीं हुआ। पार्टी का दलित और अति पिछड़ा वोट बैंक भी खिसकने लगा। अब मायावती ने जनाधार वापस पाने के लिए नए प्रयास शुरू किए हैं, जिसमें कार्यकर्ताओं को सड़क पर उतारने का निर्णय शामिल है।
चुनाव प्रदर्शन: गिरता मत प्रतिशत
चुनाव वर्ष | सीटें | मत प्रतिशत |
---|---|---|
2012 विधानसभा | 80 | 25.91% |
2017 विधानसभा | 19 | 22.23% |
2022 विधानसभा | 01 | 12.83% |
2019 लोकसभा | 10 | 19.43% |
2024 लोकसभा | 00 | 09.35% |
बसपा के हालिया कदम यह दिखाते हैं कि पार्टी अपने खिसकते जनाधार को रोकने और मजबूत वापसी की कोशिशों में जुटी है। मायावती का सड़क पर उतरना इसी दिशा में एक बड़ा संकेत है।