भारत में इन दिनों कामकाजी घंटों को लेकर बहस गरमा गई है। हाल ही में लार्सन एंड टूब्रो (L&T) के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यम के बयान ने इस चर्चा को और तेज कर दिया है। सुब्रह्मण्यम ने उत्पादकता बढ़ाने के लिए लंबे कामकाजी घंटों और रविवार को काम करने की सलाह दी।
सुब्रह्मण्यम का विवादित बयान
सुब्रह्मण्यम ने कहा, “मुझे खेद है कि मैं आपसे रविवार को काम नहीं करा सकता। अगर मैं आपको रविवार को काम करा सकूं, तो मैं और खुश होऊंगा। आप घर पर बैठे क्या करते हो? आप अपनी पत्नी को कितनी देर तक घूर सकते हो?”
यह बयान तब आया है जब भारत में कामकाजी घंटों और कार्य-जीवन संतुलन पर पहले से ही बहस चल रही है।
नारायण मूर्ति ने शुरू की बहस
2023 में इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने भारतीयों से 70 घंटे कामकाजी सप्ताह अपनाने की अपील की थी। उनका कहना था कि भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए यह आवश्यक है। इसके बाद से कई प्रमुख हस्तियों और सीईओ ने इस विचार का समर्थन किया है। हालांकि, आलोचकों ने इसे कर्मचारियों के कार्य-जीवन संतुलन के लिए हानिकारक बताया।
भारत में कामकाजी घंटे: कानून और वास्तविकता
भारत में कामकाजी घंटों को लेकर कई कानून हैं, जो कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए बनाए गए हैं:
- न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948
यह अधिनियम कामकाजी सप्ताह को 40 घंटे या प्रति दिन 9 घंटे तक सीमित करता है। इसमें एक घंटे का ब्रेक भी शामिल है। - कारखाना अधिनियम, 1948
अगर कोई कर्मचारी 8-9 घंटे से अधिक काम करता है या एक सप्ताह में 48 घंटे से अधिक काम करता है, तो उसे डबल वेतन का अधिकार है। - दुकान और प्रतिष्ठान अधिनियम (SEA)
यह अधिनियम कामकाजी दिनों के बीच अनिवार्य विश्राम अवधि का प्रावधान करता है। - भारत संहिता
यह मानक घंटों से अधिक काम की अनुमति देता है, लेकिन कुल कार्य समय (ओवरटाइम सहित) प्रति दिन 10 घंटे से अधिक नहीं हो सकता।
कानूनों का पालन और कर्मचारियों की स्थिति
हालांकि भारत में कानून मौजूद हैं, लेकिन इनका पालन सवालों के घेरे में है।
- कई कंपनियां कर्मचारी कल्याण की अनदेखी करती हैं।
- व्हाइट-कॉलर कर्मचारी कई बार बिना ओवरटाइम वेतन के 12-14 घंटे तक काम करते हैं।
- कंपनियां कर्मचारियों को “एक्जीक्यूटिव” का दर्जा देकर ओवरटाइम भुगतान से बचने की कोशिश करती हैं।
नए श्रम कोड की तैयारी
सरकार भारत में नए श्रम कोड लागू करने की योजना बना रही है। इसमें सप्ताह में पांच दिन काम और दो दिनों की छुट्टी अनिवार्य करने पर विचार हो रहा है।
लंबा कामकाजी सप्ताह: उत्पादकता या शोषण?
लंबे कामकाजी घंटों के पक्षधर इसे उत्पादकता और राष्ट्रीय विकास से जोड़ते हैं। वहीं, आलोचकों का कहना है कि यह कर्मचारियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है।
भारत में 70-90 घंटे कामकाजी सप्ताह पर बहस जारी है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार और कंपनियां किस तरह से संतुलन साधती हैं, ताकि उत्पादकता के साथ कर्मचारियों का कल्याण भी सुनिश्चित हो सके।