कच्छ:भारत क्या पूरे विश्व में प्रख्यात डायमण्ड नगरी सूरत में वर्ष 2024 का मंगलमय प्रवास सम्पन्न करने जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, अखण्ड परिव्राजक, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ शनिवार को कच्छ जिले में मंगल प्रवेश किया। आचार्यश्री का यह मंगल प्रवेश कच्छ जिले के श्रद्धालुओं को भावविभोर बनाने वाला था। कच्छ और आसपास के क्षेत्रों के श्रद्धालु बड़ी संख्या में आचार्यश्री के अभिनंदन में उपस्थित थे। शनिवार को हरिपर से आचार्यश्री ने मंगल विहार किया। विहार मार्ग में आज समुद्र के पानी से नमक बनाने के लिए दूर तक मेड़ बनाकर पानी को रोका गया था। उन पानी के बने तालाबों में पक्षी कलरव कर रहे थे। इस विस्तृत भूभाग को देखकर ऐसा लग रहा था कि गुजरात का यह ऐसा क्षेत्र है, जहां नमक बनाने का बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है। विहार के दौरान आचार्यश्री ने मोरबी जिले की सीमा को पार कर कच्छ जिले में मंगल प्रवेश किया।
आचार्यश्री के कच्छ पदार्पण के संदर्भ में कच्छ और भुज के श्रद्धालु काफी संख्या में उपस्थित थे। लोगों ने आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत किया। आचार्यश्री लगभग 14 किलोमीटर का विहार कर कच्छ जिले में स्थित शिकारपुर गांव के आदिनाथ जैन देरासर परिसर में पधारे।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि बहुश्रुत और ज्ञानी जो होते हैं, उनसे ज्ञान प्राप्त हो सकता है। शास्त्र में कहा गया कि बहुश्रुत की पर्युपासना करें और प्रश्न करें और अर्थ का विनिश्चय करें। पूछने से ज्ञान और स्पष्ट हो सकता है। स्वाध्याय के पांच प्रकारों में दूसरा प्रकार है पूछना। आदमी कोई प्रश्न पूछता है और उसका अच्छा समाधान मिलता है तो उसका ज्ञान पुष्ट हो जाता है।
प्रश्न हो सकता है कि बहुश्रुत की पर्युपासना क्यों करें? उत्तर दिया गया कि इससे इहलोक, परलोक का हित होता है, सुगति की प्राप्ति होती है और श्रमण धर्म का पालन भी हो सकता है। श्रमण धर्म की आराधना करने वाला इहलोक, परलोक के हित के साथ सुगति की प्राप्ति भी हो सकती है। श्रमण धर्म को पाने के लिए बहुश्रुत की पर्युपासना करें, प्रश्न करें और अर्थ का विनिश्चय करें। मनुष्य जीवन में साधुत्व की प्राप्ति होना अत्यंत दुर्लभ बात हो सकती है। जिसको इस मानव जीवन में श्रमण धर्म की प्राप्ति हो जाए, उसका जीवन धन्य-धन्य हो सकता है। साधुओं का सान्निध्य मिलने से कभी साधुत्व प्राप्त करने की भावना भी जागृत हो सकती है। आत्मा रूपी लोहे को यदि अध्यात्म रूपी पारस मणि का स्पर्श हो जाए तो आत्मा रूपी लोहा भी स्वर्ण बन सकती है और मूल्यवान बन सकती है। श्रमण धर्म का अनुपालन कर अपने जीवन को अच्छी दिशा देने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने जैन धर्म और तेरापंथ धर्मसंघ की संक्षिप्त जानकारी देते हुए कहा कि आदमी चेतना अध्यात्म से जुड़ी रहे तो आदमी का कल्याण हो सकता है। अपने आपको धर्म और अध्यात्म के मार्ग पर गतिमान बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
कच्छमित्र अखबार के अनेक लोग आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित हुए। सभी ने आचार्यश्री के दर्शन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।