भुज:ऐतिहासिक स्मृतिवन परिसर में बने जय मर्यादा समवसरण के विशाल पण्डाल में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के 161वें मर्यादा महोत्सव के त्रिदिवसीय आयोजन का शिखर दिवस। गुजरात के प्रथम मर्यादा महोत्सव के अंतिम दिवस। चतुर्विध धर्मसंघ की विराट उपस्थिति। निर्धारित समय पर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगलवाणी से उच्चरित मंगल महामंत्रोच्चार के साथ भव्य कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। मुनि दिनेशकुमारजी ने जयघोष कराया। जयघोष से पूरा स्मृतिवन गुंजायमान हो रहा था। मुनि दिनेशकुमारजी ने ‘मर्यादा गीत’ का संगान कराया।
समणीवृंद ने गीत का संगान किया। आज के अवसर पर साध्वीवृंद ने अपनी गीत को प्रस्तुति दी। तदुपरान्त मुनिवृंद ने भी मर्यादा महोत्सव के शिखर दिवस पर गीत के माध्यम से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। गीतों की प्रस्तुति के उपरान्त तेरापंथ धर्मसंघ की नवीं साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने चतुर्विध धर्मसंघ को उद्बोधित करते हुए विभिन्न प्रेरणाएं प्रदान कीं।
मर्यादा महोत्सव के शिखर दिवस पर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान शिखरपुरुष, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि हम धर्म से जुड़े हुए हैं। आज हम एक धर्मसंघ के मर्यादा महोत्सव समारोह से भी जुड़े हुए हैं। भगवान महावीर के इस शासन में अनेक आम्नाय हैं। दिगम्बर हैं, श्वेताम्बर हैं। श्वेताम्बर परंपरा में भी अनेक संप्रदाय हैं, उनमें से एक है तेरापंथ धर्मसंघ। हमारे तेरापंथ धर्मसंघ का संस्थापन वि.सं. 1817 में हुआ था। आज वर्तमान में इस धर्मसंघ को शुरु हुए 264 वर्ष संपन्न हो चुके हैं। हमारे धर्मसंघ के आदि अनुशास्ता भिक्षु स्वामी हुए। वे हमारे धर्मसंघ के पिता हैं और हम सभी उनकी संतानें हैं। उन्होंने धर्मसंघ की स्थापना की और उन्होंने मर्यादाएं भी बनाईं। उनकी एक लिखित मर्यादा पत्र वि.सं. 1859 का प्राप्त होता है। आचार्यश्री ने उस पत्र को दिखाते हुए कहा कि यह पत्र मानों हमारा गणछत्र है। इससे संदर्भित आज का यह मर्यादा महोत्सव आयोजित हो रहा है। मर्यादा महोत्सव का प्रारम्भ प्रज्ञापुरुष श्रीमज्जयाचार्य ने किया था। वि.सं. 1919 में राजस्थान के बालोतरा से हुआ। हमारे धर्मसंघ ने अतीत में दस आचार्यों का शासनकाल देख लिया है। यह मर्यादाओं का महोत्सव है। भारत के संविधान के अनुसार 26 जनवरी भारत का मर्यादा महोत्सव है और हमारे धर्मसंघ का मर्यादा महोत्सव चल रहा है। इसके माध्यम से न्यारा में चतुर्मास करने वाले चारित्रात्माओं को गुरुदर्शन और सेवा में रहने का अवसर मिल जाता है।
इसमें एक आचार्य के नेतृत्व में रहने की व्यवस्था है। इसमें एक आचार्य का ही विधान है। आचार्य की आज्ञा से ही साधु-साध्वियां विहार-चतुर्मास करते हैं। इस नियम में 265 वर्षों में आज तक कोई परिवर्तन नहीं हुआ। हमारे यहां साधु-साध्वियां भी हैं और समणश्रेणी भी हैं। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी के समय इस श्रेणी का प्रारम्भ हुआ है। ये साध्वियां तो नहीं हैं, किन्तु अनेक अंशों में साध्वियों के समान ही हैं। ये वाहन का यथाविधि उपयोग कर सकती हैं। देश-विदेश में जा सकती हैं और धर्म प्रचार कर सकती हैं। आचार्यों की दृष्टि के बिना आज तक कोई चतुर्मास नहीं हुए हैं। जहां आचार्य विहार के लिए कह दें, वहां विहार करने की मर्यादा है। कोई भी साधु-साध्वी अपना-अपना शिष्य-शिष्याएं न बनाएं। कभी-कभी साधु-साध्वी आचार्य की दृष्टि से दीक्षा तो सकते हैं, किन्तु वह शिष्य तो आचार्य का ही होता है। आचार्यश्री भी योग्य व्यक्ति को दीक्षित करते हैं और कोई दीक्षा के बाद भी अयोग्य निकले तो उसे गण से बाहर कर सकते हैं। योग्यता देखकर ही दीक्षा देनी चाहिए। आचार्य अपने गुरुभाई या शिष्य को अपना उत्तराधिकारी चुने तो उसे सभी साधु-साध्वियां सहर्ष स्वीकार करते हैं। पूरे धर्मसंघ में इन पांच मर्यादाओं का सम्यक् और दृढ़ता के साथ पालन हो रहा है। आचार्यश्री ने ‘हमारे भाग्य बड़े बलवान, मिला यह तेरापंथ महान’ गीत का आंशिक संगान किया।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि साधु-साध्वियों रूपी गण को प्रणमन करता हूं। हमारे पूर्वाचार्यों ने मर्यादाओं में विस्तार भी किया है। संन्यास व साधुता के प्रति पूर्ण जागरूकता रहे। हमारे धर्मसंघ में साधु-साध्वियां, समणियां और श्रावक-श्राविकाएं भी हैं। इनके साथ हमारी अनेक संस्थाएं भी हैं। केन्द्रीय हैं और स्थानीय और प्रान्तीय स्तर पर भी होती हैं। कितनी हमारी केन्द्रीय संस्थाएं कितनी अनुशासित और जागरूक होती हैं। जिनका कार्य बहुत व्यवस्थित प्लानिंग, योजना और फिर उसकी क्रियान्विति भी होती हैं। ये संस्थाएं समाज के सौभाग्य की बात है। कल्याण परिषद एक ऐसा मंच है, जहां योजनाओं पर निर्णय होता है और उसका पालन भी होता है। विकास परिषद भी है, वह भी कल्याण परिषद के अंतर्गत ही है।
समाज की कई गतिविधियां भी बहुत उपयोगी हैं। ज्ञानशाला के माध्यम से छोटे-छोटे बच्चों को धार्मिक ज्ञान देने का बहुत सुन्दर उपक्रम है। महासभा के तत्त्वावधान में चलने वाली इस ज्ञानशाला में सभाएं और फिर अनेक संस्थाएं जुड़ी हुई होती हैं, बहुत अच्छा क्रम देखने को मिल रहा है। ज्ञानशाला और ज्ञानार्थियों की संख्या भी बढ़े तो बालपीढी के लिए बहुत उपयोगी हो सकता है।
उपासकश्रेणी भी महासभा के तत्त्वावधान में चल रही है। आज इतने उपासक-उपासिकाएं बन गए हैं। उपासक-उपासिकाओं की संख्या भी बढ़े। पर्युषण में उनका अच्छा उपयोग हो और कभी संथारे की बात हो, जहां साधु-साध्वियां न हों, समणियां न हों तो उपासक-उपासिकाएं संथारा करा सकते हैं अणुव्रत आन्दोलन, प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान जो हमारी गैर संप्रदायिक और लोककल्याणकारी प्रवृत्तियां हैं, जो गुरुदेव तुलसी के समय से चल रही हैं। इनके माध्यम से जन-जन का कल्याण हो सकता है।
दीक्षा में उम्र संबंधी बाधा हुई समाप्त
161वें मर्यादा महोत्सव के अवसर पर आचार्यश्री महाश्रमणजी ने धर्मसंघ को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने पहले पुरुषों की दीक्षा में 50 वर्ष की सीमा लगी हुई थी। उसे आचार्यश्री ने खोलते हुए कहा कि जिस अवस्था के व्यक्ति की दीक्षा की इच्छा होगी, यदि वह हमारी कसौटियों पर खरा उतरेगा, उसे दीक्षा प्रदान की जा सकती है।
अहमदाबाद चतुर्मास में दीक्षा समारोह की घोषणा
मुमुक्षु कल्प मेहता, मुमुक्षु प्रीत कोठारी, मुमुक्षु मोहक बेताला, मुमुक्षु मनीषा, मुमुक्षु प्रेक्षा, मुमुक्षु राजुल, मुमुक्षु भावना, मुमुक्षु कीर्ति भाद्रव शुक्ला एकादशी 3 सितम्बर 2025 को चतुर्मास स्थल में दीक्षा समारोह के दिन इन आठ मुमुक्षुओं को मुनि व साध्वी दीक्षा देने का भाव है। मुमुक्षु भाविका, मुमुक्षु बिनू, मुमुक्षु अंजलि और मुमुक्षु साधना को उसी दीक्षा समारोह में समणी दीक्षा देने का भाव है। वैरागी श्री मनोज संकलेचा को साधु प्रतिक्रमण सीखने की स्वीकृति प्रदान की।
स्वरचित गीत का युगप्रधान आचार्यश्री ने किया संगान
मर्यादा महोत्सव के अवसर पर तेरापंथ अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने स्वरचित गीत ‘करें हम आध्यात्मिक उत्थान रे, शुभ ध्यान रे, जैनागम वाङ्मय का’ संगान किया। अपने आराध्य के साथ चतुर्विध धर्मसंघ ने इस गीत का संगान किया।
मर्यादा पत्र का तेरापंथ के अनुशास्ता ने किया वाचन
गीत संगान के उपरान्त आचार्यश्री ने मर्यादा महोत्सव के आधार ‘मर्यादा पत्र’ का वाचन किया। साधु-साध्वियों ने तन्मयता के साथ उसका अनुश्रवण किया। यह वही मर्यादा पत्र है, जिसकी मर्यादा के आधार पर तेरापंथ शासन का संचालन होता है। राजस्थानी भाषा में लिखित इस मर्यादा पत्र को आचार्यश्री ने वाचन करते हुए चारित्रात्माओं को त्याग भी कराया। 43 साधु और 53 साध्वियां और 43 समणियों की उपस्थिति रही।
तदुपरान्त विशाल प्रवचन पण्डाल में एक ओर संतवृंद, दूसरी ओर साध्वीवृंद और मध्य में समणीवृंद ने पंक्तिबद्ध होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। तेरापंथ धर्मसंघ की मर्यादा, अनुशासन व व्यवस्था की इस नयनाभिराम दृश्य को देखकर भुज की धरा ही नहीं उपस्थित हजारों नेत्र हर्षान्वित और गौरवान्वित हो रही थीं। उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को आचार्यश्री ने ‘श्रावक निष्ठा पत्र’ का वाचन कराया। जो श्रावक-श्राविकाओं के वाचन से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठा।
आचार्यश्री ने देश के विभिन्न हिस्सों में साधु-साध्वियों के विहार चतुर्मासों की घोषणा की। साथ ही आचार्यश्री ने विदेशों और देश के अन्य हिस्सों में स्थित श्रावक समाज को लाभान्वित करने के लिए सेण्टर्स व उपकेन्द्र की घोषणा की।
आचार्यश्री ने आगे प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि तेरापंथ समाज कही भी रहे, कहीं भी जाए, नॉनवेज व शराब आदि के सेवन से बचने का प्रयास करना चाहिए। अपनी निंदा का जवाब अपने अच्छे कार्यों से देने का प्रयास करना चाहिए। संयम के साथ अपना अच्छा कार्य करने का प्रयास करना चाहिए। समाज की संस्थाओं में नैतिकता रखने का प्रयास करना चाहिए। मैत्री और शुद्ध भावना रखना ही धर्म है। दूसरों का कल्याण हो, इसके लिए दूसरों की सेवा का भी प्रयास करना चाहिए। साध्वीप्रमुखाजी, साध्वीवर्याजी और मुख्यमुनि महावीर धर्मसंघ को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। और भी साधु-साध्वियां चाहे गुरुकुलवास में हों या न्यारा में वे अपने कार्यों में ध्यान देते हैं। कई संत बहुत अच्छी सेवा दे रहे हैं। संत कई संस्थाओं के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक के रूप में अपनी सेवा दे रहे हैं। बहुत कर्मठता से अपनी सेवा दे रहे हैं। कई साध्वियां आगम के कार्य और अन्य सेवा के कार्य से जुड़ी हुई हैं। सभी अपने कार्य मंे जुटे रहें।
आचार्यश्री पट्ट से नीचे खड़े हुए तो अपने आराध्य के साथ चतुर्विध धर्मसंघ खड़ा हुआ और संघगान प्रारम्भ किया। संघगान से पूरा स्मृतिवन गूंज रहा था। इसके साथ ही आचार्यश्री ने भुज-कच्छ में आयोजित 161वें मर्यादा महोत्सव के त्रिदिवसीय समारोह की सम्पन्नता की घोषणा भी की। इस प्रकार ऐतिहासिक भूमि पर तेरापंथ धर्मसंघ का ऐतिहासिक सुसम्पन्न हुआ।