नई दिल्ली/कोलकाता: सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बावजूद देश में सीवर की मैनुअल सफाई के दौरान होने वाली मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा। हाल ही में कोलकाता में तीन सफाई कर्मियों की दर्दनाक मौत ने इस मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। अदालत ने छह प्रमुख शहरों—दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बेंगलुरु और हैदराबाद—में सीवर की मैनुअल सफाई और सिर पर मैला ढोने की प्रथा पर रोक लगा दी थी और सरकार को 13 फरवरी तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था। लेकिन महज तीन दिनों बाद ही कोलकाता में हुई यह घटना सरकारी प्रतिबद्धता पर सवाल खड़ा कर रही है।
कोलकाता में सीवर सफाई के दौरान तीन मजदूरों की मौत
कोलकाता नगर निगम के लेदर कॉम्प्लेक्स इलाके में तीन सफाई कर्मचारियों को मैनुअल सफाई के लिए सीवर में उतारा गया। पहले एक मजदूर नीचे गया, लेकिन काफी देर तक वापस नहीं आने के बाद दो और मजदूर नीचे उतरे। कुछ ही समय में सभी का संपर्क टूट गया। करीब चार घंटे बाद तीनों के शव बरामद हुए।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए मैनुअल सफाई के लिए मजदूरों को उतारे जाने को लेकर कोलकाता नगर निगम सवालों के घेरे में है। नगर निगम के मेयर फिरहाद हकीम ने कहा, “घटना की जांच की जा रही है और दोषी अधिकारियों व ठेकेदारों पर सख्त कार्रवाई होगी।” हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि “कई बार मजदूर तय दिशानिर्देशों का पालन नहीं करते, जिससे समस्याएं उत्पन्न होती हैं।”
मुआवजा कितना, सरकार और सुप्रीम कोर्ट में अंतर
राज्य सरकार ने मृत मजदूरों के परिजनों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में अपने एक आदेश में स्पष्ट किया था कि ऐसी घटनाओं में सरकार को 30-30 लाख रुपये का मुआवजा देना होगा। वहीं, स्थायी रूप से विकलांग होने की स्थिति में 20 लाख रुपये की राशि तय की गई थी।
2013 के कानून को लागू करने में सरकारें विफल
सीवर की मैनुअल सफाई और सिर पर मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने के लिए पहली बार 1993 में कानून बनाया गया था, जिसे 2013 में और सख्त किया गया। इस कानून में 27 दिशानिर्देशों के तहत मैनुअल सफाई को प्रतिबंधित किया गया था। लेकिन केंद्र सरकार ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर स्वीकार किया कि देश के 775 जिलों में से 319 जिलों में अब भी यह प्रथा जारी है।
“सरकार को हमारी मौतों से फर्क नहीं पड़ता”
राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) के गणेश वाल्मीकि ने इस मुद्दे पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, “कोई भी सरकार इस प्रथा को खत्म करने के लिए गंभीर नहीं है। हमारी मौतें उनके लिए कोई मायने नहीं रखतीं। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बावजूद प्रशासन पर कोई असर नहीं पड़ता। जब कोई हादसा होता है, तो कुछ दिनों तक हंगामा मचता है और फिर सब कुछ भूल जाते हैं।”
क्या आगे बदलेगी तस्वीर?
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में 19 फरवरी को अगली सुनवाई करेगा। अदालत ने राज्यों से हलफनामा मांगा है कि उन्होंने इस प्रथा को रोकने के लिए क्या कदम उठाए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक सरकारें 2013 के कानून को सख्ती से लागू नहीं करेंगी और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होगी, तब तक ऐसी घटनाओं का सिलसिला जारी रहेगा।