डेस्क:भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सुस्त पड़ रही अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के मकसद से लगभग 5 साल बाद रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत की कटौती की है। इस कटौती के साथ अब रेपो रेट 6.50 से घटकर 6.25 प्रतिशत पर आ गया है। रेपो रेट में कटौती से मकान, वाहन समेत अलग-अलग तरह के कर्जों पर मासिक किस्त (ईएमआई) में कमी आने की उम्मीद बढ़ गई है। इसके साथ आगे भी कटौती के संकेत मिलने लगे हैं।
किसे होगा नुकसान
रेपो रेट में कटौती का नुकसान उन निवेशकों को उठाना पड़ सकता है जिन्होंने फिक्स्ड डिपॉजिट यानी एफडी में पैसे जमा करा रखे हैं। दरअसल, एफडी ब्याज दरों में भी गिरावट आ सकती है, जिससे उन निवेशकों पर असर पड़ेगा जो बढ़िया रिटर्न की उम्मीद में पैसे बैंकों में जमा कराते हैं। खासकर वरिष्ठ नागरिक इससे प्रभावित हो सकते हैं।
एफडी निवेशक क्या कर सकते हैं?
ब्याज दरों में और गिरावट की संभावना के साथ एफडी निवेशकों को अपने नजरिए पर पुनर्विचार करने की जरूरत पड़ सकती है। जो लोग शानदार रिटर्न की उम्मीद में नई एफडी खोलने की योजना बना रहे हैं, वे दूसरे विकल्पों पर भी विचार कर सकते हैं। जैसे-जैसे एफडी रिटर्न घटता है निवेशक अपनी जोखिम क्षमता के आधार पर डेट म्यूचुअल फंड, कॉरपोरेट बॉन्ड या इक्विटी-लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) पर विचार कर सकते हैं।
अलग-अलग एफडी करना बेहतर
इसके अलावा निवेश को अलग-अलग अवधि के कई एफडी में विभाजित किया जाना भी बेहतर कदम हो सकता है। पूरी राशि को एक एफडी में डालने के बजाय निवेशक लिक्विडिटी सुनिश्चित करने और रिटर्न को अनुकूलित करने के लिए इसे अलग-अलग अवधियों में विभाजित कर सकते हैं। इनक्रेड मनी के सीईओ विजय कुप्पा ने बिजनेस स्टैंडर्ड से उदाहरण देते हुए समझाया कि यदि आपके पास निवेश करने के लिए 20 लाख रुपये हैं तो इसे 5 लाख रुपये की चार एफडी में विभाजित कर सकते हैं। इनकी मैच्योरिटी अवधि एक वर्ष, 1.5 वर्ष, दो वर्ष और 2.5 वर्ष के लिए निर्धारित कर सकते हैं।