मांडवी, कच्छ (गुजरात) : कच्छ जिले के माण्डवी नगर में दोदिवसीय प्रवास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी प्रातःकाल भ्रमण को निकले तो कितनी जनता को आचार्यश्री के दर्शन और आशीर्वाद से लाभान्वित होने का अवसर मिला। इतना ही नहीं आचार्यश्री के इस प्रवास के दौरान आज माण्डवी का 445वां स्थापना दिवस भी मनाया जा रहा था। इस संदर्भ में माण्डवी में ‘साइक्लोथॉन’ का भी आयोजन किया गया था। इस संदर्भ में अपनी-अपनी साइकिल के साथ उपस्थित संभागियों को आचार्यश्री के श्रीमुख से मंगलपाठ व पावन पाथेय प्राप्त करने का भी अवसर मिल गया। नगर परिभ्रमण करने के उपरान्त आचार्यश्री पुनः प्रवास स्थल में पधारे।
माण्डवीवासियों को अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में कभी-कभी युद्ध प्रसंग सामने आ जाता है। कभी दो राष्ट्रों के बीच युद्ध हो जाता है तो कभी-कभी विश्वयुद्ध की स्थिति भी बन जाती है। यह सभी युद्ध बाहरी है। जैन शास्त्रों मंे भी युद्ध करने की बात बताई गई है। वह लड़ाई अपने भीतर स्वयं की आत्मा से करने के लिए बताई गई है। आगमकार ने कहा कि आदमी अपनी आत्मा से युद्ध करे। आदमी स्वयं की आत्मा पर विजय प्राप्त कर ले तो सुख की प्राप्ति भी कर सकता है। अपनी आत्मा से युद्ध करना धर्मयुद्ध होता है।
अपनी आत्मा से युद्ध आध्यात्मिक संपदा को पाने और अपने जीवन का कल्याण करने के लिए होता है। प्रश्न हो सकता है कि कौन युद्ध करें, किसके साथ युद्ध करें और कैसे युद्ध करें। जैन विद्या में आठ आत्माएं बताई गई हैं। आदमी को अपनी ही आत्मा से युद्ध करना होता है। चारित्र आत्मा, सम्यक् आत्मा और शुभ योग आत्मा कषाय आत्मा, अशुभयोग आत्मा तथा मिथ्यादर्शन आत्मा के साथ लड़ने का प्रयास करना चाहिए। इस युद्ध में मूलतः कषाय पर विजय प्राप्त करना होता है। कषाय पर विजय हो गया तो मानना चाहिए आदमी अपनी आत्मा पर विजय प्राप्त कर लिया। आदमी के भीतर कर्मों रूपी बंध का मल लाने वाला कषाय ही होता है। क्रोध, अहंकार, माया और लोभ- इन चारों कषायों पर विजय प्राप्त करने का प्रयास होना चाहिए। जो इन चारों पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह अपनी आत्मा पर विजय प्राप्त सकता है।
गुस्से को जीतना है और उसे उपशांत करना है तो उपशम की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने गुस्से को उपशम के द्वारा जीतने का प्रयास होना चाहिए। जब गुस्सा आए तो आदमी को मौन रहने का प्रयास करना चाहिए। महात्मा के मन व वचन में एकरूपता होती है। आदमी को अहंकार से बचने का प्रयास करना चाहिए। अहंकार को मार्दव से जीतने का प्रयास करना चाहिए। इसी प्रकार माया को आर्जव से और लोभ को संतोष से जीतने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी कभी परम स्थान को भी प्राप्त कर सकता है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने भी माण्डवीवासियों को उद्बोधित किया। संसारपक्ष में माण्डवी से संबद्ध साध्वी मंगलयशाजी ने भी आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए गीत का भी संगान किया। बालक प्रियान और आरव ने अपनी बालसुलभ प्रस्तुति दी। श्री जितेन्द्रभाई दोसी, श्री जिग्नेश भाई शाह, श्री चन्द्रेश भाई, श्री अशोक भाई, श्री मयूरभाई शाह, श्री चिंतनभाई मेहता, श्री भावीनभाई शाह, श्री मेहूलभाई शाह, ‘बेटी तेरापंथ की’ कोआर्डिनेटर श्रीमती सजेलबेन संघवी, श्री आयुष दोसी, सुश्री भूमि संघवी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। माण्डवी ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।