कंठी:जन-जन के मानस को आध्यात्मिक सिंचन से तृप्त करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ अब गांधीधाम की ओर गतिमान हैं। बुधवार को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बिदड़ा से गतिमान हुए। मार्ग में अनेकानेक लोगों को आचार्यश्री के दर्शन और आशीर्वाद से लाभान्वित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी देशलपुर कंठी में स्थित देशलपुर कंठी पंचायत प्राथमिक ग्रुप स्कूल में पधारे। वहां उपस्थित लोगों ने आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत किया।
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि दो शब्द हैं- भोग और योग। दोनों विपरित हैं। भोग जहां आदमी को बंधन की ओर ले जाने वाला होता है, वही योग आदमी को मुक्ति की दिशा में ले जाने वाला होता है। भोग को अधर्म कहा गया है और त्याग को धर्म और योग को भी धर्म कहा गया है। योग को मोक्ष का उपाय कहा गया है। ज्ञानरूप, श्रद्धानुरूप और चारित्रानुरूप की साधना योग है। आत्मा का मोक्ष से जोड़ने वाला समस्त धर्म की प्रवृत्ति योग है।
आदमी आसक्ति के कारण भोग में जाकर कर्मों से बंध जाता है। पहले आदमी भोग भोगता है और फिर मानों बाद में भोग आदमी को भोगने लगता है। आदमी जैसे भोजन में किसी पदार्थों का आसक्ति वश बहुत ज्यादा मात्रा में खा लेता है तो वह पदार्थ बाद में उसे कष्ट देने लगता है। इस प्रकार पदार्थ आदमी को भोगने लगता है। आदमी की तृष्णा और लालसा वृद्ध नहीं होती, आदमी वृद्ध हो जाता है। पदार्थों का उपभोग करना होता तो है, उसमें अनासक्ति और संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। जहां थोड़े से हो सकता है, वहां ज्यादा का क्या काम हो सकता है। आदमी को अपने जीवन में सादगी और संतोष रखने का प्रयास करना चाहिए। पदार्थों के बहुत ज्यादा प्रयोग से बचने का प्रयास करना चाहिए। आवश्यकता की पूर्ति तो हो सकती है, लेकिन इच्छाओं की पूर्ति नहीं हो सकती। इसलिए आदमी को अपनी इच्छाओं का भी संयम रखने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी के जीवन में त्याग, संयम होना चाहिए। साधु के तो त्याग और संयम होता ही है। सामान्य गृहस्थ भी अपने जीवन में जितना संभव हो सके, त्याग और संयम की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करे और भोग से योग की ओर गति करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री के स्वागत में श्री नारायणभाई कड़वी व श्री जिनेश भाई मेहता ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।