डेस्क:मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगते ही बदलाव दिखने लगे हैं। पहले तो सेना से लूटे गए हथियार लौटाए गए और अब राज्य के सभी बंद रास्तों को खोलने की तैयारी है। केंद्र सरकार ने 13 फरवरी को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था। इससे कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिससे राज्य में राजनीतिक अनिश्चितता पैदा हो गई थी। गृह मंत्रालय के अनुसार, मणिपुर विधानसभा को निलंबित कर दिया गया है। हालांकि, राष्ट्रपित शासन के तहत मणिपुर को लेकर केंद्र ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हिंसा में सुलझ रहा मणिपुर अब शांति के रास्ते पर चल पड़ा है? आखिर मणिपुर को लेकर केंद्र सरकार की क्या प्लानिंग है? चलिए समझते हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को मणिपुर में सुरक्षा बलों को निर्देश दिया कि वे राज्य में लोगों की बेरोक-टोक आवाजाही सुनिश्चित करें। उन्होंने जोर देकर कहा कि सुरक्षा बलों को हर संभव प्रयास करना चाहिए ताकि लोग बिना किसी डर या बाधा के अपने दैनिक कार्यों को कर सकें। इसके अलावा, उन्होंने स्थानीय प्रशासन और पुलिस को भी सख्त निर्देश दिए कि वे किसी भी प्रकार की हिंसा या अशांति को रोकने के लिए पूरी तरह से तैयार रहें। अमित शाह ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार राज्य सरकार के साथ मिलकर हर संभव मदद करेगी ताकि मणिपुर में शांति और सामान्य स्थिति जल्द से जल्द बहाल की जा सके।
मणिपुर के राज्यपाल अजय कुमार भल्ला ने लूटे गए और अवैध हथियारों को पुलिस को सौंपने की समयसीमा 6 मार्च तक बढ़ा दी है। यह समयसीमा पहाड़ी और घाटी क्षेत्रों के लोगों की अतिरिक्त समय दिए जाने की मांग के बाद बढ़ाई गई। साथ ही, आश्वासन दिया गया कि इस अवधि के भीतर अपने हथियार सौंपने वालों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। राज्य के छह जिलों में लोगों ने कुल 104 हथियार और गोलाबारूद पुलिस को सौंपे गए। पुलिस अधिकारी ने बताया कि ये हथियार कांगपोकपी, इंफाल-पूर्व, बिष्णुपुर, थौबल, इंफाल-पश्चिम और काकचिंग जिलों में सौंपे गए। प्रशासन की ओर से हथियार सौंपने के लिए 7 दिन का समय दिया गया था, जिसके समाप्त होने से एक दिन पहले यह हथियार पुलिस को सौंपे गए।
बता दें कि मणिपुर में हिंसा मई 2023 में भड़की, जिसका मुख्य कारण मेइतेई समुदाय और कुकी जनजाति के बीच बढ़ता सामुदायिक तनाव था। यह तनाव भूमि, संसाधनों, और राज्य सरकार की ओर से अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की मांग को लेकर उत्पन्न हुआ। मेइतेई समुदाय मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहता है, उन्होंने कुकी जनजाति के लिए ST दर्जे का विरोध किया। मगर, कुकी समुदाय ने इसे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए जरूरी बताया। इसके अलावा, अवैध आप्रवासन और जनसांख्यिकीय बदलाव ने भी तनाव को बढ़ाया। रिपोर्ट के मुताबिक, हिंसा में 250 से अधिक लोग मारे गए और हजारों लोग बेघर हो गए। कई गांव जलाए गए और लोगों को राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ी।
सुरक्षा बलों ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाए, लेकिन हिंसा पूरी तरह रुक नहीं पाई। इस बीच, मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। 2 साल से ज्यादा तक चले सामुदायिक हिंसा के दौर के बाद अब हालात सुधार तेजी से बदलते नजर आ रहे हैं। राष्ट्रपति शासन लगने के बाद पहली बार सेना के सीनियर अधिकारी ने मणिपुर का दौरा किया। भारतीय सेना के डायरेक्टर जनरल मिलिटरी ऑपरेशन (DGMO) लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने मणिपुर और भारत म्यांमार बॉर्डर पर सुरक्षा हालातों का जायजा लिया। 2 दिन के इस दौरे में उन्होंने बॉर्डर इन्फ्रारास्ट्रक्चर से लकेर मौजूद सुरक्षा हालातों और सेना के ऑपरेशन की समीक्षा की। इस तरह संकेत मिलता है कि मणिपुर में शांति बहाली की कोशिशें तेज हैं और हालात सुधरने भी लगे हैं।