आज कल संघर्ष और दुःख की माला जपने का चलन हो गया है या यूं कहें कि अपने आलस्य से उपजी नाकामी के पीछे छिपने का ज़रिया हो गया है। “मैं यह इसलिए नहीं कर पाया क्योंकि मैं ________ (दुखों, मज़बूरियों का बखान )”, इस का कोई अंत नहीं। जो मानव विकारों पर विजय पाकर स्वच्छ मन से निरन्तर प्रयास करता है उसे सफलता मिलना निश्चित है।
एक महिला के लिए निजी और सार्वजनिक जीवन की, दोनों ही लड़ाई बेहद मुश्किलों से भरी होती हैं। महिलाएं अभी भी घर से लेकर ऑफिस तक बराबरी के हक की लड़ाई ही लड़ रही हैं। किसी को संशय हो तो बहन द्रौपदी मुर्मू के जीवन के बारे में पढ़िए और संघर्ष और राज योग की महत्वता स्पष्ट हो जाएगी।
मुझे आज भी याद है, चंद वर्षों पहले माउंट आबू में ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालय के डायमंड हॉल में कार्यक्रम में ज्ञान की गंगोत्री का आनंद ले रहे थे। एकदम से पास बैठे धीरज भाई ने कहा अगली वक्ता द्रौपदी बहन हैं। मैंने उनके अत्यधिक उत्साह के कारण को समझने के लिए पूछा तो उन्होंने बताया कि बहन द्रौपदी भारतीय जनता पार्टी से हैं और इनका जीवन अत्यधिक कष्टों से भरा है। मैंने निराश होते हुए कहा, “भाई राजनेता को कौन सुनेगा, मैं जा रहा हूँ…. कुछ समय उपरांत आता हूँ” और धीरज भाई ने कहा कि आप मिस करेंगे….मैंने इनके बारे में पढ़ा है। मैं, मुस्कराया और चल दिया तब तक बहन द्रौपदी मंच पर आ गईं थी और मेरे हॉल से निकलते ही उन्होंने अपने जीवन के बारे में और राजयोग के बारे में कहना शुरू कर दिया था। सही कारण मुझे भी नहीं पता पर मैं वापस अंदर आया और दरवाज़े पर ही खड़ा सुनने लगा……. कैसे आदिवासी परिवार से आने वाली बहन द्रौपदी मुर्मू के पिताजी बिरंची नारायण टुडू ने उन्हें पढ़ा-लिखाकर अपने पैरों पर खड़ा किया। उड़ीसा के एक गांव से सिंचाई विभाग में क्लर्क की पहली नौकरी तक पहुंचने का संघर्ष सुनने तक ही मैं उनका प्रशंसक हो गया था। फिर वे कुछ क्षण खामोश हुईं और मुस्करा कर बोलीं, “बाबा ने ऊँगली पकड़ के राजयोग करवाया और दर्द से मुक्ति दी……”
फिर उन्होंने बताया कि उनके जीवन का सबसे कठिन समय वर्ष 2009 में आया। उनके बड़े बेटे की एक रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई। उसकी उम्र सिर्फ 25 वर्ष थी…. ये सदमा झेलना उनके लिए बेहद मुश्किल हो गया। साल 2013 में उनके दूसरे बेटे की भी मृत्यु हो गई। 2014 में उनके पति का भी देहांत हो गया। तब उन्होंने निर्णय लिया की डिप्रेशन में आकर जीवन व्यर्थ नहीं करुँगी और उन्होंने २००९ से ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालय आना प्रारम्भ किया और लगातार राजयोग करती रहीं और उसी कारण से वे आज यहां उपस्थित हैं। बहन मंच से उतर कर अपनी जगह बैठ गईं पर सब शांत थे…. इस बार शांति अलग तरह की थी।
आज बहन ने राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल कर ली है। इसी के साथ वो देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बन गईं हैं। राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की उम्मीदवार थीं। उनके राजनीतिक करियर के बारे में कुछ बातें बता दूँ… द्रौपदी मुर्मू झारखंड की नौवीं राज्यपाल बनी थीं। राज्यपाल बनने से पहले वह बीजेपी की सदस्य रही हैं। यही नहीं द्रौपदी मुर्मू साल 2000 में गठन के बाद से पांच साल का कार्यकाल (2015-2021) पूरा करने वाली झारखंड की पहली राज्यपाल हैं। ओडिशा में भारतीय जनता पार्टी और बीजू जनता दल गठबंधन सरकार के दौरान, वह 6 मार्च, 2000 से 6 अगस्त, 2002 तक वाणिज्य एवं परिवहन मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रहीं। इसके अलावा 6 अगस्त, 2002 से 16 मई 2004 तक मत्स्य पालन एवं पशु संसाधन विकास राज्य मंत्री थीं। मुर्मू 2013 से 2015 तक भगवा पार्टी की एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भी थीं। उन्होंने 1997 में एक पार्षद के रूप में चुनाव जीतकर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। उसी वर्ष, उन्हें भाजपा के एसटी मोर्चा का राज्य उपाध्यक्ष चुना गया।
बहन द्रौपदी मुर्मू संथाल आदिवासी तबके से राष्ट्रपति के पद तक का सफर तय करने वाली अकेली महिला हैं। उनकी पहचान सादगी से रहने और मजबूत फैसले लेने वाली महिला के तौर पर है। लेकिन उनका जीवन हममें से ऐसे बहुत से लोगों को प्रेरणा दे सकता है जो छोटी-छोटी मुश्किलों को जीवन का अंत समझने लगते हैं। अपनों को खो देने से बड़ा दुख कोई नहीं होता और बहन द्रौपदी मुर्मू ने पहाड़ जैसा ये दुख कई बार झेला है और जीवन में हार के बैठने की जगह बड़े लक्ष्यों को हासिल किया है। बहन का अभी तक का जीवन किसी को भी प्रेरित कर सकता है व हर परिस्थिति के चक्रव्यूह से निकलने के लिए मार्ग प्रशस्त करता है।
द्रौपदी मुर्मू देश की अगली राष्ट्रपति होंगी। कल सुबह शुरू हुई मतगणना के नतीजे आ गए हैं। जिसमें उन्हें बड़ी जीत हासिल हुई है। विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के मुकाबले उन्हें दो तिहाई के करीब वोट मिले हैं। अब वह 25 जुलाई को देश के 15वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेंगी। मुझे आशा नहीं विश्वास है कि उनके सानिध्य में राष्ट्र नए क्षितिज को छुएगा ।