अगले महीने से लागू होने वाले भारत पर प्रस्तावित टैरिफ का अमेरिकी स्वास्थ्य प्रणाली पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है। भारतीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की हाल ही में अमेरिका की अनियोजित यात्रा इसी संदर्भ में एक व्यापार समझौते पर बातचीत करने और भारतीय दवा निर्यात पर इन टैरिफ के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से हुई थी।
अमेरिका अपनी दवा आवश्यकताओं के लिए भारत पर काफी हद तक निर्भर है। अमेरिका में उपयोग होने वाली लगभग आधी जेनेरिक दवाएं भारत से निर्यात की जाती हैं। परामर्श कंपनी IQVIA के अनुसार, केवल वर्ष 2022 में ही भारतीय जेनेरिक दवाओं ने अमेरिकी स्वास्थ्य प्रणाली को 219 बिलियन डॉलर की बचत कराई थी। चूंकि अमेरिका में 90% से अधिक दवाओं के लिए जेनेरिक विकल्पों का उपयोग किया जाता है, इसलिए भारत की फार्मा इंडस्ट्री अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा का एक महत्वपूर्ण घटक बन चुकी है।
संभावित टैरिफ के खतरे
हालांकि, अमेरिका द्वारा प्रस्तावित नए टैरिफ इस संतुलन को बिगाड़ सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इन शुल्कों के कारण कई भारतीय जेनेरिक दवाएं आर्थिक रूप से अव्यवहार्य हो सकती हैं, जिससे अमेरिका में दवाओं की कमी हो सकती है और मौजूदा स्वास्थ्य संकट गहरा सकता है। येल यूनिवर्सिटी की दवा लागत विशेषज्ञ डॉ. मेलिसा बार्बर के अनुसार, ये टैरिफ “मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन को और बढ़ा सकते हैं” और विशेष रूप से गरीब और अनियंत्रित स्वास्थ्य बीमा वाले लोगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
भारत की प्रमुख फार्मा कंपनियां सन फार्मा और सिप्ला इस फैसले से चिंतित हैं। सन फार्मा के अध्यक्ष दिलीप सांघवी का कहना है कि बढ़ते टैरिफ “भारत से उत्पादन को अमेरिका स्थानांतरित करने को आर्थिक रूप से उचित नहीं बनाते” क्योंकि अमेरिका में विनिर्माण लागत भारत की तुलना में बहुत अधिक है।
अमेरिका और भारत के बीच व्यापार समझौते की संभावनाएं
अमेरिका पहले ही चीन से आयातित दवाओं पर टैरिफ का प्रभाव देख चुका है, जिससे कच्चे माल की लागत में 20% तक की वृद्धि हुई है। भारतीय दवा उद्योग भारत का सबसे बड़ा औद्योगिक निर्यात क्षेत्र है और अमेरिका इसका प्रमुख बाजार है। यदि अमेरिका प्रतिशोधी टैरिफ लागू करता है, तो इससे न केवल जेनेरिक दवाओं की लागत बढ़ेगी, बल्कि विशेष दवाओं की कीमतों में भी वृद्धि होगी, जिससे लाखों अमेरिकी प्रभावित होंगे।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपनी फार्मास्यूटिकल वस्तुओं पर लगाए गए टैरिफ हटाने पर विचार करना चाहिए, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर नगण्य प्रभाव पड़ेगा। बाजार विशेषज्ञ अजय बग्गा के अनुसार, “भारत में अमेरिकी दवा निर्यात केवल आधा बिलियन डॉलर का है, इसलिए इसका प्रभाव नगण्य रहेगा।” भारतीय फार्मास्युटिकल एलायंस (IPA) भी अमेरिकी दवा निर्यात पर शुल्क शून्य करने की सिफारिश कर रहा है ताकि बदले में अमेरिका भी भारतीय दवाओं पर टैरिफ न लगाए। हालांकि, यह समाधान भारत की व्यापार नीतियों में बड़े बदलाव की मांग कर सकता है।
आगे की राह
इस मामले पर सभी की निगाहें भारत और अमेरिका के बीच संभावित व्यापार समझौते पर टिकी हैं। अमेरिका के पूर्व सहायक व्यापार प्रतिनिधि मार्क लिंसकॉट का मानना है कि “शुरुआती टैरिफ के कारण कुछ समस्याएं हो सकती हैं, लेकिन इस साल के अंत तक दोनों देश एक महत्वपूर्ण व्यापार समझौते की दिशा में बढ़ सकते हैं।”
अमेरिकी स्वास्थ्य प्रणाली पहले से ही बढ़ती स्वास्थ्य लागत और दवाओं की महंगी कीमतों जैसी चुनौतियों का सामना कर रही है। भारतीय जेनेरिक दवाओं पर प्रस्तावित टैरिफ इन समस्याओं को और बढ़ा सकते हैं, जिससे अमेरिकियों के लिए किफायती स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच और कठिन हो जाएगी।
दूसरी ओर, भारतीय दवा उद्योग भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है और यह लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करता है। यदि अमेरिका और भारत इस विवाद का समाधान नहीं निकालते, तो इसका प्रभाव दोनों देशों की स्वास्थ्य प्रणालियों और आर्थिक हितों पर नकारात्मक रूप से पड़ सकता है।