गांधीधाम: गुजरात के गांधीधाम में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी पन्द्रहदिवसीय प्रवास कर रहे हैं। आचार्यश्री के मंगल प्रवास से गांधीधाम का पूरा वातावरण आध्यात्मिक बना हुआ है। शुक्रवार को पूरे देश में होली का त्योहार मनाया जा रहा है, जहां रंगों के गुबार उड़ रहे थे तो आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आध्यात्मिक रंगों की वर्षा हो रही थी।
शुक्रवार को महावीर आध्यात्मिक समवसरण में जैन आगम आधारित प्रवचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण जी ने कहा – हमारे जीवन में आत्मा नाम का तत्व है। आत्मा के सिवाय शरीर भी है, मन भी है, वाणी है, पर्याप्ति है, इंद्रियां भी है। एक आत्मा केंद्र में है उसकी परिधि में ये अनेक चीजें हैं। जैन वांग्मय में नव तत्व आते है। उसमें सबसे परम तत्व मोक्ष है। मोक्ष अंतिम लक्ष्य है। साधना की निष्पति मोक्ष है। मोक्ष आत्मा की परम अवस्था है। मोक्ष सिद्धत्व की अवस्था है। सर्व कर्मों से मुक्त आत्मा अवस्था मोक्ष होती है। मोक्ष को प्राप्त करने का उपाय है संवर और निर्जरा। ये दोनों तत्व मोक्ष प्राप्ति के उपाय। संवर की साधना और निर्जरा दोनों के योग से मोक्ष की अवस्था प्राप्त हो सकती है। आश्रव तो भव बंधन का हेतु है, जन्म–मरण का कारण है। इसके विपरीत ये दोनों मोक्ष के कारण है।
गुरुदेव ने आगे फरमाया कि जीवन में एक बार भी संवर आ गया, सम्यकत्व आ गया तो फिर उसका मोक्ष निश्चित है। सिद्धांत की दृष्टि से देखे तो प्रथम गुणस्थान में मिथ्यात्वी के भी निर्जरा हो सकती है। मिथ्या दृष्टि के सकाम – अकाम दोनों तरह की निर्जरा हो सकती है। अभव्य जीव भी नौवें ग्रैवेयक तक स्वर्ग में उत्पन्न हो सकता है। महाव्रत की आराधना, समितियों की आराधना, गुप्तियों की साधना साधु की संपति है।
कार्यक्रम में ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने पच्चीस बोल गुरुदेव के समक्ष प्रस्तुत किए एवं गीत की प्रस्तुति दी। तत्पश्चात पूज्य प्रवर ने बच्चों की कई जिज्ञासाओं को समाहित किया।
अणुव्रत समिति गांधीधाम के अध्यक्ष श्री अनंत सेठिया, आर्य समाज गांधीधाम के अध्यक्ष श्री वाचोनिधि आचार्य, सभा के पूर्व अध्यक्ष श्री पारसमल खांटेड़, श्री हनुमानमल भंसाली, श्री सोहनलाल बालड़, श्री हीरालाल जी, ओसवाल समाज पचपदरा अध्यक्ष श्री गौतम सालेचा ने अपने विचारों की प्रस्तुति दी।