डेस्क:कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की शिक्षा नीति पर तीखी आलोचना की। उन्होंने आरोप लगाया कि इस सरकार का मुख्य उद्देश्य सत्ता का केंद्रीकरण, शिक्षा का व्यावसायीकरण और पाठ्यपुस्तकों का सांप्रदायिकरण है। गांधी ने इसे भारतीय शिक्षा के लिए खतरे के रूप में बताया और कहा कि इस स्थिति का समाधान शीघ्र होना चाहिए।
सोनिया गांधी ने जो आरोप लगाए हैं, उसमें उन्होंने “3 सी” (केंद्रीकरण, व्यावसायीकरण और सांप्रदायिकरण) के बारे में बात की है और उन्होंने मोदी सरकार की शिक्षा नीति पर आलोचना की है। उन्होंने कहा कि इससे हमारे छात्रों पर सीधा असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीय शिक्षा प्रणाली का यह ह्रास अब समाप्त होना चाहिए।
कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक लेख में कहा कि उच्च शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के लागू होने के बावजूद यह सरकार भारत के बच्चों और युवाओं की शिक्षा के प्रति उदासीन रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में केवल तीन मुख्य एजेंडों को बढ़ावा दिया है – सत्ता का केंद्रीकरण, शिक्षा का व्यावसायीकरण, और पाठ्यपुस्तकों तथा संस्थानों का सांप्रदायिकरण।
गांधी ने कहा कि पिछले दशक में सरकार की पहचान ‘‘अनियंत्रित केंद्रीकरण’’ के रूप में रही है। शिक्षा के क्षेत्र में इसका सबसे हानिकारक प्रभाव देखने को मिला है। उदाहरण के तौर पर, केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (सीएबीई) की बैठक सितंबर 2019 से नहीं बुलाई गई। इसके साथ ही, एनईपी 2020 को लागू करते समय भी राज्य सरकारों से एक बार भी परामर्श नहीं किया गया।
सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार पर शिक्षा के व्यावसायीकरण का आरोप लगाते हुए कहा कि गरीबों को सार्वजनिक शिक्षा से बाहर किया जा रहा है और उन्हें महंगे निजी स्कूलों में धकेला जा रहा है। उन्होंने बताया कि सरकार ने उच्च शिक्षा में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ‘‘ब्लॉक-अनुदान’’ प्रणाली के स्थान पर उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (एचईएफए) की शुरुआत की है, जिससे शिक्षा में निजी निवेश बढ़ रहा है।
सोनिया गांधी ने सरकार पर सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि भारतीय इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण हिस्सों को पाठ्यपुस्तकों से हटाने की कोशिश की गई, जैसे महात्मा गांधी की हत्या और मुगल भारत से संबंधित अनुभाग। इसके साथ ही, भारतीय संविधान की प्रस्तावना को भी कुछ समय के लिए पाठ्यपुस्तकों से हटा दिया गया था, जिसे बाद में सार्वजनिक विरोध के बाद पुनः शामिल किया गया।
गांधी ने यह भी आरोप लगाया कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) जैसे प्रमुख संस्थानों में सरकार के अनुकूल विचारधारा वाले लोगों को नेतृत्व पदों पर नियुक्त किया जा रहा है, भले ही उनकी शैक्षणिक गुणवत्ता संदेहास्पद हो।