केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने एक ऐतिहासिक और सियासी रूप से अहम फैसला लेते हुए आगामी जनगणना के साथ ही जाति आधारित जनगणना कराने का एलान कर दिया है। यह कदम विपक्ष के मुख्य चुनावी मुद्दों में से एक को सीधा निशाना बनाता है। खासतौर पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी और INDIA गठबंधन के अन्य नेता लंबे समय से “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी” के नारे के साथ जातिगत जनगणना की मांग करते रहे हैं।
विपक्ष से मुद्दा छीनने की रणनीति
राहुल गांधी और अन्य विपक्षी दल जाति जनगणना को सामाजिक न्याय की दिशा में पहला कदम मानते रहे हैं। राहुल गांधी ने तो कांग्रेस शासित राज्यों को इस तरह का सर्वे कराने का निर्देश भी दिया था। लेकिन अब केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद विपक्ष का यह प्रमुख मुद्दा भाजपा के पाले में जाता दिख रहा है।
कर्नाटक में कांग्रेस सरकार द्वारा कराए गए जातीय सर्वे को लेकर हाल ही में विवाद हुआ और वह रिपोर्ट विधानसभा में पेश नहीं की जा सकी। वहीं, अब मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना के साथ खुद को सामाजिक न्याय के पक्षधर के रूप में पेश कर दिया है, जिससे कांग्रेस और अन्य दलों के लिए सियासी प्रतिस्पर्धा और मुश्किल हो सकती है।
बिहार चुनाव में मिलेगा त्वरित लाभ?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस फैसले से भाजपा को आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में त्वरित सियासी लाभ मिल सकता है। बिहार में जातीय समीकरण लंबे समय से चुनावी नतीजों को प्रभावित करते रहे हैं। इसके बाद 2026-27 में होने वाले बंगाल, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों के चुनाव में भी भाजपा इस फैसले को भुना सकती है।
भाजपा ने पहले भी दिया था समर्थन
बिहार में जब नीतीश कुमार की महागठबंधन सरकार ने जाति गणना कराई थी, तब भाजपा विपक्ष में होने के बावजूद इसका समर्थन कर चुकी है। बिहार अब तक का एकमात्र राज्य है जहां यह सर्वे पूरा कर आधिकारिक आंकड़े विधानसभा में पेश किए गए और उसके आधार पर आरक्षण नीतियों में बदलाव की कोशिश की गई। हालांकि कोर्ट के आदेश के चलते इसे रोक दिया गया।
अब देशव्यापी जाति गणना का फैसला करके भाजपा ने विपक्ष से यह नैरेटिव भी छीन लिया है कि वह जातिगत न्याय की विरोधी रही है।
क्या कहते हैं बिहार के जातीय आंकड़े?
बिहार में जारी आंकड़ों के अनुसार:
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कुल पिछड़ी जातियों की आबादी: 63.14%
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अत्यंत पिछड़ा वर्ग: 4,70,80,515
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पिछड़ा वर्ग: 3,54,63,936
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अनुसूचित जाति: 2,56,89,820
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अनुसूचित जनजाति: 21,99,361
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अनारक्षित वर्ग: 2,02,91,679
ये आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि सामाजिक ढांचे में बहुसंख्यक वर्गों को अगर प्रतिनिधित्व के अनुसार हिस्सेदारी दी जाती है, तो इससे देश की राजनीति में बड़ा बदलाव संभव है।
PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) नैरेटिव पर प्रभाव
उत्तर प्रदेश में सपा प्रमुख अखिलेश यादव PDA यानी पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक गठजोड़ को लेकर नया नैरेटिव बनाने में जुटे हैं, लेकिन जातिगत जनगणना की घोषणा से उन्हें भी झटका लग सकता है। अगर 2026 में केंद्र सरकार जनगणना कराती है, तो 2027 के यूपी चुनावों में भाजपा इस डेटा का उपयोग कर अपने पक्ष में माहौल बना सकती है।
कांग्रेस ने बताया अपनी जीत, लेकिन BJP ने किया पलटवार
जहां कांग्रेस इस फैसले को अपनी जीत बता रही है, वहीं भाजपा ने इसे कांग्रेस के “दोहरे रवैये” को उजागर करने का अवसर बताया है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि 2010 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जाति जनगणना कराने का आश्वासन दिया था और मंत्रियों का एक समूह गठित भी किया गया था, लेकिन 2011 में सिर्फ सामाजिक-आर्थिक सर्वे कराया गया और उसकी रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई।
भाजपा ने दावा किया कि अब उनकी सरकार संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत एक व्यवस्थित जातिगत जनगणना कराएगी, जिससे न केवल आंकड़े सामने आएंगे, बल्कि भविष्य की नीतियों और आरक्षण के ढांचे को भी सही दिशा दी जा सकेगी।