सलमान रुश्दी पर शुक्रवार 13 अगस्त को जानलेवा हमला हुआ वो भी उस किताब के कारण जो उन्होंने 34 साल पहले लिखी थी और मारने वाले की आयु 24 साल है। सच्चाई पहले बताता चलूँ कि अन्य विषयों की तरह मुझे इस किताब और लेखक के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। इसलिए गूगल जी का सहरा लिया और उनके कंधे पर चढ़ कर पन्ने काले कर दिए।
‘सैटेनिक वर्सेज’ को विश्व में सबसे पहले भारत में बैन किया गया था, राजीव गांधी के अल्प शासन काल में। बोलने की, लिखने की आज़ादी पर आजकल कांग्रेस का विरोध अब सही लगता है। यह वही भारत रत्न हैं जिन ने शाहबानो के हक़ में आये फैसले को पलट दिया था। फिर भटकूं उससे पहले ‘सैटेनिक वर्सेज’ पर ही रहता हूँ। यह किताब 34 साल पहले यानी 1988 में लिखी गयी थी। इसी किताब की वजह से सलमान रुश्दी पर पैगंबर की बेअदबी के आरोप लगे। 1989 में ईरान की इस्लामिक क्रांति के नेता अयातुल्ला खुमैनी ने रुश्दी के खिलाफ मौत का फतवा जारी कर दिया था। इस फतवे के जारी होने के 33 साल बाद शुक्रवार 13 अगस्त को अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में सलमान रुश्दी पर जानलेवा हमला हुआ है। न्यूयॉर्क स्टेट पुलिस के मुताबिक सुबह 11 बजे चौटाउक्वा इंस्टीटयूशन में हमलावर तेजी से मंच पर दौड़ा और सलमान रुश्दी पर चाकू से हमला कर दिया। चाकू सलमान रुश्दी के गर्दन पर लगा और वह मंच पर ही गिर पड़े। रुश्दी को एयर एंबुलेंस से अस्पताल भेजा गया।
‘सैटेनिक वर्सेज’ उपन्यास का हिंदी में अर्थ ‘शैतानी आयतें’ हैं। इस किताब के नाम पर ही मुस्लिम धर्म के लोगों ने आपत्ति दर्ज कराई थी। रुश्दी ने अपनी इस किताब में एक काल्पनिक किस्सा लिखा है। किस्सा कुछ इस तरह है कि दो फिल्म कलाकार हवाई जहाज के जरिए मुंबई से लंदन जा रहे हैं। इनमें एक फिल्मी दुनिया का सुपरस्टार जिबरील है और दूसरा ‘वॉयस ओवर आर्टिस्ट’ सलादीन है। बीच रास्ते में इस प्लेन को कोई सिख आतंकी हाइजैक कर लेता है। इसके बाद विमान अटलांटिक महासागर के ऊपर से गुजर रहा होता है, तभी पैसेंजर से आतंकियों की बहस होने लगती है। गुस्से में आतंकवादी विमान के अंदर बम विस्फोट कर देता है।
इस घटना में जिबरील और सलादीन दोनों समुद्र में गिरकर बच जाते हैं। इसके बाद दोनों की जिंदगी बदल जाती है। फिर एक रोज एक धर्म विशेष के संस्थापक के जीवन से जुड़े कुछ किस्से पागलपन की ओर जा रहे जिबरील के सपने में आते हैं। इसके बाद वह उस धर्म के इतिहास को एक बार फिर नई तरह से स्थापित करने की सोचता है। इसके आगे रुश्दी ने अपनी कहानी के किरदार जिबरील और सलादीन के किस्से को कुछ इस अंदाज में लिखे हैं कि इसे ईशनिंदा माना गया।
काल्पनिक किस्से पर किताब लिखी गयी – बैन लगा -फतवा जारी हुआ – हत्या हुयी – सही है दुनिया इस्लामिक फोबिया से ग्रसित है। भारत पहला देश था जिसने इस उपन्यास को बैन किया। इसके बाद पाकिस्तान और कई अन्य इस्लामी देशों ने इसे प्रतिबंधित कर दिया। फरवरी 1989 में रुश्दी के खिलाफ मुंबई में मुसलमानों ने बड़ा विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन पर पुलिस की गोलीबारी में 12 लोग मारे गए और 40 से अधिक घायल हो गए थे। ईरान की इस्लामिक क्रांति के नेता अयातुल्ला खुमैनी ने उनके खिलाफ 1989 में मौत का फतवा जारी किया था। 3 अगस्त 1989 को ही सेंट्रल लंदन के एक होटल पर RDX विस्फोट कर सलमान रुश्दी को मारने की कोशिश हुई, लेकिन वह इस हमले में बाल-बाल बच गए। बाद में मुजाहिद्दीन ऑफ इस्लाम ने इस घटना की जिम्मेदारी ली थी। मानव बम बने एक शख्स ने होटल के अंदर इस विस्फोट को अंजाम दिया था। इसके बाद से सलमान रुश्दी छिपकर और पुलिस प्रोटेक्शन में जिंदगी जी रहे थे। ईरानी सरकार ने सार्वजनिक तौर पर 10 साल बाद यानी 1998 में कहा कि अब वो सलमान की मौत का समर्थन नहीं करते। हालांकि, फतवा अपनी जगह पर कायम रहा। 2006 में हिजबुल्ला संगठन के प्रमुख ने कहा था कि सलमान रुश्दी ने जो ईशनिंदा की है उसका बदला लेने के लिए करोड़ों मुस्लिम तैयार हैं। पैगंबर के अनादर का बदला लेने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। 2010 में आतंकी संगठन अलकायदा ने एक हिट लिस्ट जारी किया था। इसमें इस्लाम धर्म के अपमान करने के आरोप में सलमान रुश्दी को भी जान से मारने की बात कही गई थी। इन दिनों रुश्दी न्यूयॉर्क सिटी में ज्यादा आराम की और आज़ाद जिंदगी जी रहे थे। 2019 में वो अपने एक नॉवेल को प्रमोट करने के लिए मैनहटन के एक प्राइवेट क्लब में दिखे थे। वो मेहमानों से खुलकर बात कर रहे थे और क्लब के मेंबर्स के साथ डिनर भी किया। ऐसे ही 13 अगस्त 2022 को एक कार्यक्रम में शामिल होने गए थे, जहां उन पर चाकू से हमला हुआ।
गूगल जी से पता चला सलमान रुश्दी की किताब ‘सैटेनिक वर्सेज’ को लेकर दुनिया भर के कई देशों में हो रहे हिंसक विरोध में 59 लोगों मारे गए हैं। इन मृतकों की संख्या में इस किताब के प्रकाशक और दूसरे भाषा में अनुवाद करने वाले लोग भी शामिल हैं। जापानी अनुवादक हितोशी इगाराशी ने रुश्दी की किताब ‘सैटेनिक वर्सेज’ की अपने भाषा में अनुवाद किया था। इसके कुछ दिनों बाद ही उसकी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। इसी तरह ‘सैटेनिक वर्सेज’ के इटैलियन अनुवादक और नॉर्वे के प्रकाशक पर भी जानलेवा हमले किए जा चुके हैं। जो लोग काल्पनिक किसे पर लिखी गयी किताब पर 34 सालों से खून बहा सकते हैं, वो तन से जुदा के नारे बुलंद नहीं करेंगे तो क्या करेंगे, बेचारे!