बीते दिनों भाजपा ने पटना में अपने सभी मोर्चों की संयुक्त बैठक कर संगठनात्मक दृष्टि से बड़ी पहल की थी। अब उसके विभिन्न मोर्चे विभिन्न राज्यों में अपनी अलग बैठकें कर रहे हैं। पिछड़ा वर्ग मोर्चा के जरिए भाजपा, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के इस मजबूत वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में है।
इसके अलावा, राज्य में वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का संसदीय क्षेत्र भी है। भाजपा राजस्थान में शेखावत को राजनीतिक मोर्चे पर लगातार आगे बढ़ा रही है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि चुनाव में भले ही एक साल से ज्यादा का समय है, लेकिन पार्टी विभिन्न मोर्चों पर अपनी तैयारियों को अंतिम रूप दे रही है। इसी कड़ी में ओबीसी मोर्चा ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है।
राजस्थान की आबादी में लगभग 53 फीसद आबादी पिछड़ा वर्ग समुदाय की है। 200 विधानसभा सीटों में से 50 से ज्यादा सीटों पर यह निर्णायक भूमिका में हैं। राज्य में अभी 50 से ज्यादा विधायक ओबीसी समुदाय से हैं। इनमें जोधपुर संभाग से 15 ओबीसी विधायक हैं, जिनमें कांग्रेस के 11 व भाजपा के चार विधायक हैं। 59 सीटें एससी/एसटी के लिए आरक्षित हैं। राजपूत समुदाय 25 सीटों को प्रभावित करता है। उससे ज्यादा असर जाट समुदाय का है।
दो दशक से सत्ता बदलती रही
राजस्थान में दो दशक से चुनाव के साथ सत्ता बदलती रही है। बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 200 में से 100 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। भाजपा को 73 सीट ही मिली थी। बसपा-6, माकपा-2, आरएलपी-3, बीटीपी -2, रालोद-1 और 13 निर्दलीय जीते थे। हालांकि, छह माह के भीतर हुए लोकसभा की सभी 25 सीटें एनडीए ने जीती थी, इनमें भाजपा को 24 व सहयोगी आरएलपी को एक सीट मिली थी।
राजस्थान में भाजपा अकेले ही चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में है। गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ हनुमान बेनीवाल की स्थानीय पार्टी ने ही मिलकर चुनाव लड़ा था और खुद बेनीवाल लोकसभा सदस्य बने थे, लेकिन अब बेनीवाल भाजपा से अलग हो चुके हैं। भाजपा के प्रभारी महासचिव अरुण सिंह का कहना है कि राज्य का माहौल पूरी तरह बदलाव के लिए है और भाजपा पूरी तैयारी से चुनाव मैदान में उतर रही है। उनका कहना है कि भाजपा अकेले ही चुनाव लड़ेगी और सामूहिक नेतृत्व में चुनाव मैदान में जाएगी।