जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश हमारे जीवन के बहुत से पक्षों पर प्रभाव रखता है जैसे-शक्ति, बल, रचनात्मकता, क्रियाशीलता, सामर्थ्य, ऊर्जा तथा जीवनशक्ति…….व्यक्ति की शक्ति समय-समय पर इन्हीं पक्षों को सिद्ध करने में व्यय होती है और जीवन के इन्हीं पक्षों को समझने हेतु शिक्षा बेहद आवश्यक है.
राष्ट्र और मानव विकास के लिए समाज के हर वर्ग के लोगों के लिए उनके अधिकारों के बारे में जानना महत्वपूर्ण हैं। इसी ज्ञान के लिए शिक्षा दी जाती है। लोगों को शिक्षा की ओर प्रेरित करने के लक्ष्य के तहत 08 सितम्बर को अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जाता है। जिसमें विश्व के तमाम देश वयस्क शिक्षा और साक्षरता की दर को बढ़ाने के लिए रणनीतियां बनायी जाती हैं.
वर्तमान समय में दिनों दिन बढ़ते जा रहे शिक्षा के व्यापारीकरण के चलते शिक्षा अब ज्ञान अर्जन व क्षमताओं के विकास का मार्ग के बजाय मात्र सर्टिफिकेशन बन कर रह गई है.
आज जिस प्रकार शिक्षा का बाजारीकरण अपना प्रभाव दिखा रहा है, उससे यह परिलक्षित होता है कि वर्तमान समय में शिक्षा, धन कमाने का साधन मात्र बनकर रह गई है. शिक्षा के व्यापारीकरण का सीधा अर्थ है कि शिक्षा के द्वारा धन पैदा करना. इंजीनियरिंग, मेडिकल और प्रबंधन तो कुछ ऐसे शैक्षणिक क्षेत्र बन गए हैं, जिनमें प्रवेश के लिए छात्र के उच्च बौद्धिक स्तर के साथ-साथ अभिभावक के बैंक खाते में जमा धनराशि भी भरपूर होनी चाहिए, ताकि वे अपने बच्चों की शिक्षा के लिए मोटी रकम शिक्षण संस्थानों को दे सकें. महंगाई और बाजारीकरण के मौजूदा दौर में छात्र इस असमंजस में फंसा हुआ है कि वह कमाने के लिए पढ़े या आगे पढ़ने के लिए पहले कमाए? बाजारीकरण का दीमक पूरी शिक्षा-व्यवस्था को धीरे-धीरे खोखला करता जा रहा है. इसलिए शिक्षा के बाजारीकरण पर रोक लगायी जानी तथा ऐसे संस्थानों में प्रवेश की प्रक्रिया में अधिक से अधिक पारदर्शिता लाने का प्रयास किये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि किसी भी राष्ट्र का विकास तभी संभव हो सकता है, जब वहां की अधिकतम जनसंख्या शिक्षित और अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो.
भूमंडलीकरण होने के कारण अर्धविकास अब बोझ नहीं अवसर है जिसका बाजार फायदा उठा रहा है जिसकी परिणाम ‘ग्रोथ विदाउट इम्प्लायमेंट” है और “ग्रोथ विदाउट इम्प्लायमेंट” का परिणाम “नालेज सोसाइटी” है इसलिए प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा तीनों स्तरों में समस्या और गिरावट देखने को मिल रही है. शिक्षा के निजीकरण या स्ववित्तीय शिक्षा से समाज में कई विधेयात्मक और अविधेयात्मक परिणाम दृष्टिगोचर हो रहे हैं. उच्च शिक्षा में स्वालंबन एक राष्ट्रीय उपलब्धि है जिसके जरिये सामाजिक गतिशिलता व जनतांत्रिक सपनों को उर्जा मिलती है. इसका व्यापारीकरण वंचित वर्गों के लिए शिक्षा के जरिए उभरी सम्भावनाओं के विस्तारशील क्षेत्र को समाप्त कर रहा है.
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में वैश्विक शिक्षा व्यवस्था के समक्ष चुनौतियों व समस्याओं व उनके निवारण के संदर्भ में यह कहना किंचित ही अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि आज भी बहुत से देशों में उच्च शिक्षा रुग्ण अवस्था में है और पुरातन तथा जीर्ण-शीर्ण हो चुके आधारों पर टिकी हुई है….. वस्तुतः शिक्षा के बिना मानव जीवन व्यर्थ समझा जाता है और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये उल्लेखनीय प्रयास भी किये गए हैं. कई देशों में प्रारंभिक शिक्षा को अनिवार्य घोषित किया गया है, किन्तु उच्च शिक्षा की राह में अब भी अनेक बाधाएँ हैं और गुणवत्तापरक शिक्षा अभी भी दिवास्वप्न बनी हुई है.
शिक्षा को मात्र एक सर्टिफिकेट तक सीमित करना या शिक्षा को सर्टिफिकेट का पर्याय बनने से रोकना अत्यंत जरूरी हो गया है. शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति होना चाहिये. शिक्षा में नवीनीकरण की आवश्यकता पर भी मंथन अनिवार्य है. वर्तमान समय में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत बढ़ोत्तरी हुई है. शिक्षा की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार लाने में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी की सशक्त भूमिका हो सकती है. अत: ‘सूचना युग’ के शैक्षिक उद्देश्यों को साकार करने के लिए शिक्षा में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के आधुनिक रूपों को शामिल करने की आवश्यकता है. वर्तमान समय में प्रोफेशनल कोर्सेज़ की तरफ लोगों का रुझान बढ़ा है, लेकिन इसके लिए परंपरागत कोर्सेज़ की अनदेखी सरासर गलत है. शिक्षा के क्षेत्र में परंपरागत विषयों के महत्व को किसी भी प्रकार से नकारा नहीं जा सकता. अत: परंपरागत विषयों को प्रोत्साहन देने की आवश्यक्ता है. शिक्षा के स्तर को नव ऊँचाई प्रदान करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात शिक्षा में नैतिक मूल्यों को गंभीरता से सम्मिलित करना होगा. बड़ी विडंबना है कि इतना आगे बढ़ने, इतनी तरक़्क़ी के बावजूद हम व् हमारा समाज ‘चरित्रवान व्यक्ति’ बनाना भूल गए. हम अपने बच्चों को नैतिक मूल्य, मानवता, सत्यवादिता, ईमानदारी जैसी बातों से अवगत कराने में पीछे होते जा रहे हैं जिसके कारणवश समाज में कुरीतियां, कुधारणाएं, भ्रष्टाचार, बलात्कार आदि जैसे अपराध अपनी जड़ें तेजी से फैला रहे हैं… ब्लेमगेम अर्थात एक दूसरे पर दोषारोपण करते रहने से बेहतर है कि हम समस्याओं की जड़ को टटोलें और नैतिक मूल्यों को आत्मसात कर संकीर्ण व विकृत मानसिकता का जड़ मूल समेत नाश करें.
अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस के मौके पर एक और महत्वपूर्ण बात समझनी जरूरी है. साक्षर और शिक्षित शब्दों का अमूमन समानार्थी रूप से उपयोग किया जाता है जो गलत है. जो व्यक्ति सामान्य रूप से लिखना पढ़ना जानता है, साक्षर कहलाता है। वह शैक्षिक ज्ञान को व्यवहार में इस्तेमाल करने की कला नहीं जानता है. जो व्यक्ति विधिवत पढ़ा लिखा हो और शिक्षा के महत्व को बखूबी जानता हो और उसे अपना जीवन सरल बनाने के लिए इस्तेमाल में लाने की क्षमता रखता हो, शिक्षित व्यक्ति कहलाता है. शिक्षित व्यक्ति की सोच व्यापक होती है. वह शिक्षा को अपने व्यवहार में शामिल करता है. शिक्षित व्यक्ति शिक्षा को अपने और समाज व देश के हित के लिए उपयोग करने की कला बखूबी जानता है.
तो इस अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस, मात्र साक्षर नहीं अपितु शिक्षित बनिये.