नई दिल्ली:राजस्थान के विधानसभा चुनाव में सिर्फ सवा साल का ही वक्त बचा है। एक तरफ कांग्रेस सचिन पायलट और सीएम अशोक गहलोत की गुटबाजी में अब भी फंसी दिख रही है तो वहीं भाजपा भी वसुंधरा राजे बनाम अन्य नेताओं के संकट में है। इस बीच होम मिनिस्टर अमित शाह ने शनिवार को जोधपुर का दौरा किया था और भाजपा के ओबीसी मोर्चे के कार्यक्रम को संबोधित किया था। इसके अलावा बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं से भी बात की थी। इन संबोधनों में अमित शाह ने भाजपा के कार्यकर्ताओं में जान फूंकी तो वहीं राजस्थान चुनाव के लिए भाजपा की प्लानिंग का एक तरह से खाका भी खींच दिया।
अमित शाह ने इस दौरान प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया की बूथ लेवल तक संगठन मजबूत करने के लिए तारीफ की। इसके अलावा उन्होंने वसुंधरा राजे के सीएम कार्यकाल के दौरान हुए कामों की भी तारीफ की। इस तरह अमित शाह ने दो नेताओं के बीच बैलेंस भी बनाया और यह भी संदेश दिया कि किसी एक नेता के नेतृत्व में ही चुनाव नहीं लड़ा जाएगा। यही नहीं उन्होंने यह भी बता दिया कि अकेले पीएम नरेंद्र मोदी के करिश्मे के ही भरोसे न रहें। दरअसल अमित शाह ने पहली बार वसुंधरा राजे की इस तरह से तारीफ की है। इससे माना जा रहा है कि वह वसुंधरा को नाराज नहीं करना चाहते हैं बल्कि सामूहिक नेतृत्व के एक बड़े चेहरे के तौर पर बनाए रखना चाहते हैं।
गहलोत के मुकाबले वसुंधरा को न उतारना क्यों है रिस्की
इसकी वजह यह है कि मुकाबला अशोक गहलोत जैसे अनुभवी नेता से है। ऐसे में अचानक वसुंधरा की जगह किसी और मुकाबले में उतरना रिस्की हो सकता है। ऐसी स्थिति में भाजपा की प्लानिंग यह है कि सामूहिक नेतृत्व में चुनाव हो, जिसका प्रमुख चेहरा वसुंधरा राजे ही हों। ऐसी स्थिति में सीएम फेस का फैसला इलेक्शन के बाद भी हो सकता है, लेकिन पार्टी को वसुंधरा समर्थकों का गुस्सा नहीं झेलना होगा। इसके अलावा गुटबाजी से भी भाजपा बचना चाहती है। ऐसे में वसुंधरा का नाम, संगठन का काम और पीएम नरेंद्र मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व के त्रिफॉर्मूले पर आगे बढ़ने की तैयारी भाजपा कर रही है।
अचानक वसुंधरा राजे को क्यों महत्व देने लगी भाजपा
राजस्थान भाजपा के सूत्रों का कहना है कि विधानसभा उपचुनावों में पार्टी को अच्छे नतीजे नहीं मिल पाए थे। पार्टी को लगता है इसकी वजह यह थी कि पूनिया ने जो उम्मीदवार उतारे थे, वह बेहतर नहीं थे। ऐसे में यदि वसुंधरा गुट के लोगों को उतारा जाता तो मुकाबला बेहतर हो सकता था। यही वजह है कि वसुंधरा राजे को थोड़ा महत्व दिया जाने लगा है। यही नहीं भाजपा की कोशिश है कि अपनी गुटबाजी को थामा जाए और कांग्रेस में सचिन पायलट बनाम अशोक गहलोत की जंग को भुना लिया जाए।