भारत के पड़ोसी देशों में उथल-पुथल मची हुई है। अफगानिस्तान, पाकिस्तान से लेकर म्यांमार और श्रीलंका तक। ऐसे में एक्सपर्ट्स मानते हैं कि उभरते हुए शक्ति के रूप में भारत को इन मसलों को संभालना चाहिए वरना चीन जैसे देश किसी भी गैप को भरने के लिए तैयार बैठे हैं। यह 2004 की सुनामी की तरह हो सकता है जब भारत ने सुनामी प्रभावित देशों की बढ़-चढ़कर मदद की थी।
आउटलुक की एक रिपोर्ट बताती है कि श्रीलंका की इकॉनमी खस्ताहाल है। भारत ने लगातार श्रीलंका की मदद की है। कोविड के दौरान भी भारत ने वैक्सीन कूटनीति के जरिए श्रीलंका सहित पड़ोसी देशों को टीके भेजे थे। लेकिन जब भारत में कोविड से हालात बिगड़े तो भारत ने इन देशों को टीके भेजने पर रोक लगा दी और इस स्पेस को चीन ने भरने की कोशिश की। यही कारण है कि एक्सपर्ट्स भारत को श्रीलंका के ताजा हालात में भारत को संभलकर उचित कदम उठाने की सलाह दे रहे हैं।
बांग्लादेश और श्रीलंका सहित कई देशों ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पर साइन किए। हालांकि भारत इससे बाहर रहा लेकिन दूसरों को चीन के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट से जुड़ने से रोक नहीं सका। जैसे-जैसे चीन आर्थिक और राजनीतिक तौर पर मजबूत होता गया, भारत के पड़ोस में भी उसका प्रभाव बढ़ता गया है। नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों में भी चीन ने अपनी उपस्थिति में लगातार बढ़ोतरी की है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि मालदीव, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों में अभी भारत समर्थक सरकार है लेकिन इसके बावजूद भारत विरोधी भावनाएं भड़क रही हैं। श्रीलंका में आर्थिक संकट के बाद गोताबाया राजपक्षे और महिंदा राजपक्षे के खिलाफ लोग आंदोलन कर रहे हैं। ऐसे में रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण श्रीलंका में भारत सकारात्मक भूमिका निभा सकता है।
आउटलुक के लिए सीमा गुहा ने लिखा है कि चीन पूरे श्रीलंका में थोड़ा-बहुत है। कुछ इलाकों में कुछ अधिक तो कुछ में थोड़ा कम। लिट्टे काल के दौरान महिंदा राजपक्षे ने चीन का रुख किया था। बीजिंग ने हंबनटोटा पोर्ट का आधुनिकीकरण किया, कोलंबो पोर्ट बनाया। कई और करोड़ों डॉलर के प्रोजेक्ट किए। चीन को कर्ज न चुकाने के तौर पर श्रीलंका को हंबनटोटा पोर्ट को 99 साल के लिए चीन को लीज पर देना पड़ा था। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि हंबनटोटा के सैन्य अड्डे में बदलने की चिंता से इंकार नहीं किया जा सकता है। चीन की सैन्य पनडुब्बियां 2014 में दो बार कोलंबो पोर्ट के पास दिखे थे जिसके बाद से नई दिल्ली की चिंताएं बढ़ी हुई हैं।
लेकिन इसके बाद से काफी कुछ बदल गया है। कोलंबो ने बीजिंग से दो अरब डॉलर से अधिक का कर्जा मांगा है। सरकार की वित्तीय लापरवाही के कारण कोलंबो के भंडार लगभग खत्म हो चुके हैं। कोविड के कारण श्रीलंका के टूरिज्म बिजनेस को भयंकर नुकसान पहुंचा है। हालात यह है कि श्रीलंका के पास सिर्फ दो अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है और उसे सात अरब डॉलर का भुगतान करना है। यही कारण है कि श्रीलंका ने IMF से मदद मांगी है।
भारत ने श्रीलंका की लगातार मदद की है
सीमा गुहा का मानना है कि यह वक्त भारत के लिए श्रीलंका के प्रति उदार होने का है। भारत के पास पर्याप्त विदेशी भंडार है। ऐसे में भारत श्रीलंका को इस आर्थिक संकट से उबार सकता है। भारत ने हाल ही में एक अरब डॉलर का लाइन ऑफ क्रेडिट दिया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक श्रीलंका ने भारत से डेढ़ अरब डॉलर और मांगे हैं। रॉयटर्स की रिपोर्ट बताती है कि जनवरी 2022 से अब तक भारत ने क्रेडिट लाइन के जरिए 2।4 अरब डॉलर की मदद की है। जरूरत पड़ने पर श्रीलंका की और मदद कर भारत कोलंबो में और जगह बना सकता है। इस तरह से भारत खोते जा रहे रणनीतिक क्षेत्र को फिर से हासिल करने की कोशिश कर सकता है।
श्रीलंका के विपक्षी नेता साजित प्रेमदासा ने पीएम नरेंद्र मोदी से अपील की है कि कृपया कोशिश करें और श्रीलंका को यथासंभव मदद करें। यह हमारी मातृभूमि है, हमें अपनी मातृभूमि को बचाने की जरूरत है। यहां गौर करने वाली बात है कि साजिथ के पिता पूर्व राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा नई दिल्ली के दोस्त नहीं थे। लेकिन भारत के लिए वक्त श्रीलंका की मदद करने का है।