चार नवंबर को देवउठनी एकादशी से इस साल एक बार फिर से मांगलिक कार्य की शुरूआत होने जा रही है। तीन नवंबर को शाम सात बजे से देवउठनी एकादशी शुरू हो जाएगी।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए सो जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। श्रीहरि विष्णु इसी दिन राजा बलि के राज्य से चातुर्मास का विश्राम पूरा करके बैकुंठ धाम को लौटे थे। इस एकादशी को कई नामों से जाना जाता है। जैसे देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-आराधना से मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवोत्थान एकादशी को देवउठनी या ग्यारस प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। देवोत्थान एकादशी से शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं। इस दिन तुलसी-सालिग्राम का विवाह होता है और मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार एक साल में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं, एक महीने में दो एकादशी की तिथियां होती हैं। ज्योतिषाचार्य डा. सुशांतराज के अनुसार, राजसूय यज्ञ करने से भक्तों को जिस पुण्य की प्राप्ति होती है। उससे भी अधिक फल इस दिन व्रत करने पर मिलता है। विगत 10 जुलाई को देवशयनी एकादशी से चातुर्मास का आरंभ हुआ था। हिंदू पंचांग के अनुसार, देवउठनी एकादशी तिथि तीन नवंबर को शाम सात बजकर 30 मिनट पर प्रारंभ होगी। देवउत्थान एकादशी तिथि का समापन चार नवंबर को शाम छह बजकर आठ मिनट पर होगा। उदया तिथि के मुताबिक देवउठनी एकादशी चार नवंबर को मनाई जाएगी।