आखिर यूनिफॉर्म सिविल कोड है क्या? जिस पर १८३५ से शोर मचे जा रहा है। इस प्रश्न के उत्तर के लिए मैंने नाम मात्र रिसर्च की और स्वयं को विद्वान् समझते हुए चंद शब्द लिख डाले।
देश में यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड को लेकर बहस आज़ादी के जमाने से ही चल रही है। भारत के संविधान के निर्माताओं ने सुझाव दिया था कि सभी नागरिकों के लिए एक ही तरह का कानून होना चाहिए। यूनिफॉर्म सिविल कोड संविधान के अनुच्छेद 44 के अंतर्गत आता है और इसमें कहा गया है कि इसे लागू करना राज्य की जिम्मेदारी है। राज्यों का दायित्व है कि भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा। लेकिन आज तक यह पूरे देश में लागू नहीं हो पाया है।
आज़ादी के समय पंडित नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार हिंदू कोड बिल लेकर आई जिसका मकसद हिंदू समाज की महिलाओं पर लगी बेड़ियों से मुक्ति दिलाना था। वहीं दूसरी तरफ मुसलमानों के शादी-ब्याह, तलाक़ और उत्तराधिकार के मामलों का फैसला शरीयत के मुताबिक होता रहा, जिसे मोहम्मडन लॉ के नाम से जाना जाता है। अब तक यही व्यवस्था चलती आ रही है।
हाल ही में राज्यसभा में ९ दिसंबर २०२२ शुक्रवार को भारी हंगामे के बीच भापजा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने ‘भारत में समान नागरिक संहिता विधेयक, 2020’ पेश किया जिसका विपक्षी सदस्यों ने जमकर विरोध किया। बिल को पेश करने के बाद मतदान हुआ, जिस के पक्ष में 63 वोट पड़े, जबकि विपक्ष में 23 वोट डाले गए। यानी देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए पहला सियासी कदम उठा लिया गया है। प्राइवेट मेंबर बिल के जरिए ही सही भापजा ने देशभर में कॉमन लॉ बनाने के लिए वाटर टेस्टिंग शुरू कर दी है। बता दें कि देश में इस मुद्दे पर काफी लंबे समय से सियासी घमासान जारी है। इस बिल में मांग की गई है कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए एक National Inspection & Investigation Commission बनाया जाए। अब राज्यसभा में भी शीतकालीन सत्र के दौरान यूसीसी (UCC) पर प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया गया है। वैसे सबसे पहले १८३५ में ब्रिटिश सरकार ने एक रिपोर्ट पेश की थी । इसमें क्राइम, एविडेंस और कॉन्ट्रैक्ट्स को लेकर देशभर में एक समान कानून बनाने की बात कही गई। १८४० में इसे लागू भी कर दिया गया, लेकिन धर्म के आधार पर हिंदुओं और मुसलमानों के पर्सनल लॉ को इससे अलग रखा गया। बस यहीं से यूनिफॉर्म सिविल कोड की मांग की जाने लगी।
१९४१ में बीएन राव कमेटी बनी। इसमें हिंदुओं के लिए कॉमन सिविल कोड बनाने की बात कही गई।
आज़ादी के बाद १९४८ में पहली बार संविधान सभा के सामने हिंदू कोड बिल पेश किया गया। इसका मकसद हिंदू महिलाओं को बाल विवाह, सती प्रथा, घूंघट प्रथा जैसे गलत रिवाज़ों से आज़ादी दिलाना था।
जनसंघ नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी, करपात्री महाराज समेत कई नेताओं ने इसका विरोध किया। उस वक्त इस पर कोई फैसला नहीं हुआ। १० अगस्त १९५१ को भीमराव अंबेडकर ने पत्र लिखकर जवाहरलाल नेहरू पर दबाव बनाया तो वो इसके लिए तैयार हो गए।
हालांकि, राजेंद्र प्रसाद समेत पार्टी के आधे से ज्यादा सांसदों ने उनका विरोध कर दिया। आखिरकार नेहरू को झुकना पड़ा। इसके बाद १९५५ और १९५६ में नेहरू ने इस कानून को चार हिस्सों में बांटकर संसद में पास करा दिया।
जो कानून बने वो इस तरह से हैं-
1. हिंदू मैरिज एक्ट 1955
2. हिंदू सक्शेसन एक्ट 1956
3. हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट 1956
4. हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट 1956
अब हिंदू महिलाओं को तलाक, दूसरी जाति में विवाह, संपत्ति का अधिकार, लड़कियों को गोद लेने का अधिकार मिल गया। पुरुषों की एक से ज्यादा शादी पर रोक लगा दी गई। महिलाओं को तलाक के बाद मेंटेनेंस का अधिकार मिला।
राजेंद्र प्रसाद, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दूसरे नेताओं का कहना था कि जब महिलाओं के हक के लिए कानून बनाना है, तो सिर्फ हिंदू महिलाओं के लिए ही क्यों? सभी धर्मों की महिलाओं के लिए समान कानून क्यों नहीं बनाया जा रहा है। शायद षड्यंत्र जिस से देश में असंतुलन – असमानता रहे?
संविधान के अनुच्छेद 44 के भाग- 4 में यूनिफॉर्म सिविल कोड की चर्चा है। राज्य के नीति-निदेशक तत्व से संबंधित इस अनुच्छेद में कहा गया है कि ‘राज्य, देशभर में नागरिकों के लिए एक यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू कराने का प्रयास करेगा।’
हमारे संविधान में नीति निदेशक तत्व सरकारों के लिए एक गाइड की तरह है। इनमें वे सिद्धांत या उद्देश्य बताए गए हैं, जिन्हें हासिल करने के लिए सरकारों को काम करना होता है।
प्रायः किसी भी देश में दो तरह के कानून होते हैं। क्रिमिनल कानून और सिविल कानून। क्रिमिनल कानून में चोरी, लूट, मार-पीट, हत्या जैसे आपराधिक मामलों की सुनवाई की जाती है। इसमें सभी धर्मों या समुदायों के लिए एक ही तरह की कोर्ट, प्रोसेस और सजा का प्रावधान होता है।
यानी कत्ल हिंदू ने किया है या मुसलमान ने या इस अपराध में जान गंवाने वाला हिंदू था या मुसलमान, इस बात से FIR, सुनवाई और सजा में कोई अंतर नहीं होता।
सिविल कानून में सजा दिलवाने की बजाय सेटलमेंट या मुआवजे पर जोर दिया जाता है। मसलन दो लोगों के बीच प्रॉपर्टी का विवाद हो, किसी ने आपकी मानहानि की हो या पति-पत्नी के बीच कोई मसला हो या किसी पब्लिक प्लेस का प्रॉपर्टी विवाद हो।
ऐसे मामलों में कोर्ट सेटलमेंट कराता है, पीड़ित पक्ष को मुआवजा दिलवाता है। सिविल कानूनों में परंपरा, रीति-रिवाज और संस्कृति की खास भूमिका होती है।
शादी-ब्याह और संपत्ति से जुड़ा मामला सिविल कानून के अंदर आता है। भारत में अलग-अलग धर्मों के शादी-ब्याह, परिवार और संपत्ति से जुड़े मामलों में रीति-रिवाज, संस्कृति और परंपराओं का खास महत्व है। इन्हीं के आधार पर धर्म या समुदाय विशेष के लिए अलग-अलग कानून भी हैं। यही वजह है कि इस तरह के कानूनों को हम पसर्नल लॉ भी कहते हैं।
जैसे- मुस्लिमों की शादी और संपत्ति का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ के जरिए होती है। वहीं, हिंदुओं की शादी हिंदू मैरिज एक्ट के जरिए होती है। इसी तरह ईसाई और सिखों के लिए भी अलग पर्सनल लॉ है।
इधर यूनिफॉर्म सिविल कोड के जरिए पर्सनल लॉ को खत्म करके सभी के लिए एक जैसा कानून बनाए जाने की मांग की जा रही है। यानी भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए निजी मामलों में भी एक समान कानून, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो।
जैसे- पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिम पुरुष 4 शादी कर सकते हैं, लेकिन हिंदू मैरिज एक्ट के तहत पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी करना अपराध है।
समान नागरिक संहिता भारत में नागरिकों के व्यक्तिगत कानूनों को बनाने और लागू करने का एक प्रस्ताव है, जो सभी नागरिकों पर उनके धर्म, लिंग और यौन अभिविन्यास की परवाह किए बिना समान रूप से लागू होता है। परन्तु हमारे राष्ट्र में मासूमियत की इंतिहा है बहुसंख्यक चाहते है की यूनिफॉर्म सिविल कोड हो राष्ट्र में सब के लिए समान कानून हो इसके विपरीत अल्पसंख्यक इसका विरोध कर रहे है कि समानता न हो । बेचारो को समानता न मिले इसलिए विरोध कर रहे है। उनका कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 25 में सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है। इसलिए शादी-ब्याह और परंपराओं से जुड़े मामले में सभी पर समान कानून थोपना संविधान के खिलाफ है। मुस्लिम जानकारों के मुताबिक, शरिया कानून 1400 साल पुराना है। यह कानून कुरान और पैगम्बर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं पर आधारित है। लिहाजा, यह उनकी आस्था का विषय है। मुस्लिमों की चिंता है कि १९४७ के बाद उन्हें मिली धार्मिक आज़ादी धीरे-धीरे उनसे छीनने की कोशिश की जा रही है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड पर सबसे बड़ा घटनाक्रम शाहबानो के मामले से जुड़ा है। इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा महिला के पति को हर महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था और साथ ही देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कही थी। लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथियों के दबाव में आकर तत्कालीन राजीव गांधी सरकार पार्लियामेंट में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया और एक तरह से यूनिफॉर्म सिविल कोड की बहस को ज़मींदोज़ करने का काम किया। इसके बाद भी समय-समय पर अदालतों के पास ऐसे मामले आते रहे जहां अलग-अलग धर्मों के चलते न्यापालिका पर बोझ बढ़ता गया और अदालतों ने यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की बात कही।
हाल में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर कहा कि भारतीय समाज अब सजातीय हो रहा है। समाज में जाति, धर्म और समुदाय से जुड़ी बाधाएं मिटती जा रही हैं। कोर्ट ने अनुच्छेद 44 के तहत यूनिफॉर्म सिविल कोड का उल्लेख करते हुए कहा कि केंद्र सराकर को इस पर एक्शन लेना चाहिए।
समर्थन विरोध में होता रहेगा वैसे आगे इस बिल को लेकर तीन चीजें हो सकती हैं।
1. किरोड़ी लाल मीणा चर्चा के बाद विवाद और विरोध की स्थिति में इस बिल को वापस ले सकते हैं।
2. सरकार इसे संसदीय समिति या विधि आयोग के पास सुझाव के लिए भेज सकती है।
3. इस पर राज्यसभा में बहस होगी। एक पब्लिक बिल की तरह अगर राज्यसभा में ये बिल पास हो जाता है तो इसे लोकसभा में रखा जाएगा। वहां भी अगर चर्चा के बाद बिल पास हो जाता है, तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। संसद से पारित होने के बाद राष्ट्रपति इसे वीटो कर सकते हैं।
यदि राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाए तो यह कानून बन जाएगा, लेकिन इसकी गुंजाइश बेहद कम है, क्योंकि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट, विधि आयोग के साथ कई राज्यों में भी बहस चल रही है। दूसरी तरफ यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने के लिए पुराने कानूनों में बदलाव के साथ नई कानूनी व्यवस्था भी बनानी पड़ेगी जो प्राइवेट बिल के माध्यम से मुमकिन नहीं है।
सामान्य तौर पर ऐसे बिल को कानून बनाने के लिए सिंपल मैजोरिटी की जरूरत होगी, लेकिन विपक्ष इसके लिए दो तिहाई बहुमत या राज्यों की विधानसभाओं की मंजूरी की मांग कर सकता है। इस वाद विवाद में देर होने पर कानून बनने के पहले ही यह प्राइवेट बिल लैप्स भी हो सकता है।
सरल शब्दों में कहूँ तो बादलों की गर्जना देखी जा रही है कि शोर मचाएगा या बरसेगा अयोध्या और ३७० की तरह…