सिवानी, भिवानी:हरित क्रांति और श्वेत क्रांति के क्षेत्र में भारत का विशिष्ट राज्य हरियाणा वर्तमान में अध्यात्म जगत में भी विशिष्ट बन रहा है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अध्यात्म जगत के महागुरु आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में हरियाणा राज्य में गतिमान हैं। आचार्यश्री के श्रीमुख से निरंतर प्रवाहित होने वाली अमृतवाणी से जन-जन के मानस को आध्यात्मिक अभिसिंचन प्राप्त हो रहा है।
लोगों को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करने वाले महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को प्रातः चौधरीवास स्थित राजकीय कन्या उच्च विद्यालय मंगल प्रस्थान किया। ग्रामवासी इस मानवता के मसीहा को साश्चर्य निहार रहे थे। ग्रामीणों को जैसे ही आचार्यश्री के विषय में जानकारी प्राप्त होती वे श्रद्धा के साथ नमन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त कर रहे थे। विहार के दौरान आचार्यश्री ने हिसार जिले की सीमा को पारकर भिवानी जिले की सीमा में मंगल प्रवेश किया। वर्षों से तेरापंथ के अधिशास्ता के आगमन को राह देख रहे सिवानीवासियों का आज मानों भाग्योदय हो रहा था। उनकी वर्षों की इंतजार की तपस्या आज फलीभूत होने जा रही थी। सिवानी नगर सीमा के बाहर कड़ी धूप के बावजूद भी महासंत की प्रतीक्षा में सैंकड़ों लोगों की उपस्थिति उनके आस्था को प्रदर्शित कर रहा था। आचार्यश्री के पहुंचते पूरा नगर जयकारों से गुंजायमान हो उठा। भव्य स्वागत जुलूस संग आचार्यश्री कुल बारह किलोमीटर का विहार कर सिवानी नगर स्थित तेरापंथ भवन में पधारे।
तेरापंथ भवन के पास बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालु जनता को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में सभी अपने-अपने ढंग से कार्य करते हैं। हर कोई कुछ न कुछ कार्य अवश्य करता है। यदि कर्ता के पास अपना स्वयं का विवेक होता है, तो वह कार्य को और अच्छे ढंग से कर सकता है। विवेक को धर्म भी कहा गया है। बताया गया कि जिसमें स्वयं का विवेक-अविवेक न हो तो उसका बड़ा नुक्सान हो सकता है। विवेक शून्य मनुष्य तो मानों पशु के समान होता है। आदमी को अपने जीवन में विवेक का विकास करने का प्रयास करते रहना चाहिए।
विवेक चक्षु (आंख) के समान होता है। स्वयं की आंखें जिस प्रकार महत्त्वपूर्ण होती हैं, मानव जीवन में विवेक का महत्त्व होता है। स्वयं के पास विवेक न हो तो विवेकवान लोगों की संगति में रहने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के पास न स्वयं का विवेक हो और न ही विवेकवान लोगों में के साथ रहता है तो वह गलत रास्ते पर जा सकता है। बोलना अथवा न बोलना या मौन हो जाना बड़ी बात नहीं होती, बोलने का विवेक होना बड़ी बात होती है। खाना अथवा उपवास करना बड़ी बात नहीं, क्या खाना, क्या नहीं खाने का विवेक होना बड़ी बात होती है। विवेक रूपी भीतर नेत्र खुले, ऐसा आदमी को प्रयास करना चाहिए। जीवन में अविवेकी मित्र से अच्छा विवेकवान शत्रु होता है। आदमी को अपने जीवन में विवेक चेतना का विकास करते रहना चाहिए।
आचार्यश्री ने सिवानी आगमन के संदर्भ में कहा कि आज सिवानी आना हो गया। कितने चारित्रात्माओं से वर्षों बाद मिलना हो गया। खूब अच्छा धार्मिक विकास होता रहे। आचार्यश्री के दर्शन करने से हर्षित शासनश्री साध्वी प्रेमलताजी, साध्वी लाघवश्रीजी, साध्वी मनस्वीप्रभाजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। साध्वीवृंद ने गीत का संगान किया। तेरापंथ महिला मण्डल-सिवानी ने स्वागत गीत का संगान किया। स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री अमितकुमार लोहिया, सीएमओ डॉ. श्रीराम शिवाच्च, श्री रतनलाल बंसल ने अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी। सिवानी ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति के माध्यम से अपने आराध्य के चरणों में अपनी अभिवंदना समर्पित की।
कल होगा राजस्थान की सीमा में मंगल प्रवेश
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण हरियाणा यात्रा के दौरान चरखी दादरी, झज्जर, रोहतक, हिसार, भिवानी आदि जिलों में विहरण सम्पन्न कर कल गुरुवार को राजस्थान में प्रवेश करेंगे। 16 अप्रैल राजगढ़, 17 को सादुलपुर, 20 को तारानगर में प्रवास रहेगा। जिसके बाद आचार्यश्री 25 अप्रैल को सरदारशहर पहुंचेंगे जहां 17 मई तक प्रवास संभावित है। सरदारशहर प्रवास के दौरान अक्षय तृतीया समेत आचार्य महाश्रमण जन्मोत्सव, पट्टोत्सव जैसे विविध कार्यक्रम आयोजित होंगे।