बोरियावी:अपनी यात्राओं द्वारा जन मानस में सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति की अलख जगा कर सदाचार की ज्योति जलाने वाले अणुव्रत अनुशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अपने चरण कमलों से गुजरात की धरा को पावन बना रहे है। वर्तमान में खेड़ा जिले में गतिशील आचार्यश्री ने आज सुबह नडियाद से मंगल प्रस्थान किया। कल सायं डभाण से पुज्यप्रवर 5 किमी विहार कर जिला मुख्यालय नडियाद में पधारे थे। यहां आचार्य प्रवर का हरी ॐ आश्रम में रात्रि प्रवास हुआ। प्रातः आश्रम में गादी के नवें संतराम से आध्यात्मिक भेंट कर आचार्यश्री गंतव्य हेतु गतिमान हुए। मार्ग में श्रीमद् राजचंद्र विरचित आत्मसिद्धि शास्त्र रचना भूमि स्थल पर भी पुज्यप्रवर पधारे एवं परिसर का अवलोकन किया। अप्रैल माह के साथ ही मानों अब गर्मी भी अपना रूप दिखाने लग गई ऐसा प्रतीत हो था था। सूरत के तीव्र आतप में भी शांतिदूत निश्चल भावों से विहाररत थे। एक स्थान पर स्वामीनारायण गुरुकुल के विद्यार्थियों को आचार्य श्री ने प्रेरणा पाथेय प्रदान किया। लगभग 13 किलोमीटर विहार कर पुज्यप्रवर बोरियावी के सरदार पटेल हाई स्कूल में प्रवास हेतु पधारे।
महावीर जयंती के सुपावन अवसर पर धर्मसभा में उद्बोधन प्रदान करते हुए आचार्य श्री ने कहा – आज चैत्र मास, शुक्ल पक्ष की त्रियोदशी का दिन है, भगवान महावीर जन्म कल्याणक दिवस है। आदमी पैदा होता है, जीवन जीता है व चला जाता है। जीवन काल से बड़ा महत्व है, जीवन कैसा जीया? अच्छा जीवन जीकर कर्तृत्व उजागर करने से जीवन सफल और सुफल बन सकता है वही इनके आभाव में जीवन निष्फल भी बन सकता है। भगवान महावीर ने बच्चे के रूप में जन्म लिया व बहुत लंबा आयुष्य न पाकर मात्र बहत्तर वर्ष की अवस्था में ही मोक्ष-गमन कर लिया। किंतु उन्होंने जो जीवन जीया वह विशेष था। उन्होंने लगभग साढ़े बारह वर्ष तक साधना की। वे सर्वज्ञानी पुरुष थे व उसके बाद किसी प्रकार के ज्ञान प्राप्ति की कोई अपेक्षा नहीं होती। वे वेत्ता भी थे व आध्यात्म के प्रवक्ता भी थे।
गुरुदेव ने आगे कहा कि भगवान महावीर ने गणधर गौतम के अनेक प्रश्नों का समाधान भी दिया। प्रश्नकर्ता भी बड़े विशिष्ट थे व इसी प्रश्नोतर से विशाल ज्ञान युक्त भगवती सूत्र जैसा आगम तैयार हो गया। प्रभु महावीर ने अपने संचित कर्मों का संहार करते हुए कर्मवाद, आत्मवाद, लोकवाद, पुनर्जन्मवाद, अनेकांतवाद जैसे अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। हमारे धर्मसंघ में आचार्य श्री तुलसी के वाचना प्रमुखत्व में आगम संपादन का कार्यारंभ हुआ, आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने मुनि अवस्था से ही इसे आगे बढाने में तत्परता दिखाई व अन्यों का भी योगदान रहा। महावीर-जयंती के दिन ही इस कार्य का प्रारंभ हुआ था। प्रेक्षा-ध्यान के प्रारंभ को भी अड़तालिस वर्ष हो गये। अहिंसा, संयम, तप ये साधना के निचोड़ हैं। हम जीवन में भगवान महावीर के संदेशों को अपनाने का प्रयास करे।
इस अवसर पर मुख्य मुनि महावीर कुमार जी, साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या सम्बुद्ध यशा जी ने अपने वक्तव्य द्वारा भगवान महावीर के जीवन दर्शन एवं सिद्धांतों पर प्रकाश डाला। स्वागत के क्रम में कॉलेज की ओर से श्री अल्पेशभाई शाह, आणंद नगर के श्री हिमांशु बेगवानी, मिहिका बेगवानी, विनादेवी आदि ने विचारों की प्रस्तुति दी।