आणंद:अपने प्रवचनों के माध्यम से प्राचीन आगम ज्ञानराशि को सरलता से व्याख्यायित कर जनता को हितोपदेश देने वाले, भैतिकता में मूढ़ मनुष्यता को आध्यात्मिकता का मार्ग दिखाने वाले संत शिरोमणि आचार्य श्री महाश्रमण जी अणुव्रत यात्रा करते हुए गुजरात राज्य की धरा को सदाचार की सौरभ से महका रहे है। सूरत की ओर अग्रसर पूज्य चरण नित्य विहार करते हुए वडोदरा की ओर निकटता को प्राप्त कर रहे है। आज आचार्यश्री बोरीयावी से विहार कर मोगर में पधारे। सुबह सूर्योदय की वेला में आचार्य श्री सरदार पटेल हाई स्कूल से प्रस्थित हुए। मार्ग में आणंद नगर के निकट श्रद्धालुओं ने अणुव्रत अनुशास्ता का भावभीना स्वागत किया। अमूल फैक्ट्री एवं स्थापना स्थली होने से आणंद क्षेत्र अपनी एक अलग पहचान रखता है। श्रावक समाज को आशीर्वाद प्रदान कर गुरुदेव लगभग 14 किमी विहार संपन्न कर मोगर के एच. एस. महिदा हाई स्कूल में प्रवास हेतु पधारे।
मंगल प्रवचन में गुरुदेव ने कहा– हमारा यह मानव शरीर एक प्रकार की नौका है। इस संसार में जीव का आने–जाने का क्रम अविराम चलता रहता है। यह एक चक्र है और इस चक्र का अन्त मोक्ष जाने पर ही हो सकता है। इस संसार सागर को तरने के लिए मानव शरीर बड़ा महत्वपूर्ण है। औदारिक शरीर तो पशुओं को भी प्राप्त है, पर जो उच्च साधना मानव शरीर से हो सकती है वह किसी से नहीं हो सकती। जब तक शरीर सक्षम हो व्यक्ति को संयम व तप की साधना कर लेनी चाहिए। शरीर कभी साथ नहीं भी देता और अक्षम भी बन जाता है।
गुरुदेव ने आगे कहा कि शरीर की अक्षमता के तीन आयाम हो सकते हैं व उन आयामों से पहले धर्म साधना व धर्म सेवा कर लेनी चाहिए। पहला– जब तक बुढ़ापा पीड़ित न करें, दूसरा– जब तक व्याधियां हम पर हावी न हो तथा तीसरा – जब तक इन्द्रियों की शक्ति क्षीण न हो। व्यक्ति को एक तीनों को ध्यान में रखते हुए अपनी स्वस्थता व सामर्थ्य का सदुपयोग करना चाहिए। दुर्जन की शक्ति दूसरे को पीड़ित करने में व सज्जन की शक्ति की सेवा में काम आती है, दुर्जन की विद्या विवाद में व सज्जन की विद्या दूसरे को ज्ञान देने में काम आती है, दुर्जन का धन धमंड में व सज्जन का धन परोपकार में नियोजित होता है। इस संसार सागर को तरने के लिए हमें अपने कर्मों को हल्का कर साधना व राग-द्वेष के परिहार की कला भी सीखनी होगी।
इस अवसर पर विद्यालय की ओर से पूर्व विधायक श्री जसवत सिंह सोलंकी ने शांतिदूत के स्वागत में अपने विचार व्यक्त किए।