सोमवार, कोसम्बा, सूरत (गुजरात) परोपकार के लिए सतत यात्रायित, मानवता ने उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर देने वाले युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज अपनी अणुव्रत यात्रा के साथ सूरत जिला में मंगल भव्य प्रवेश हुआ। आचार्यश्री के स्वागत में सूरत एवं आसपास के क्षेत्रों के हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति से ऐसा लग रहा था मानों कोसंबा पूरा महाश्रमण मय बन गया हो। सूर्योदय की वेला में आचार्यश्री ने पब्लिक स्कूल खरोड से मंगल प्रस्थान किया। विहार पथ में स्थान–स्थान पर आज सूरत क्षेत्र से श्रद्धालु शांतिदूत की अभिवंदना में उल्लसित उपस्थित थे। एक जगह स्थानीय ग्रामीणों को आचार्य प्रवर द्वारा अणुव्रत प्रेरणा पाथेय भी प्राप्त हुआ। श्रद्धालुओं के निवेदन पर पूज्य गुरुदेव ने मार्गस्थ तुलसी विहार धाम में पधार कर अपने चरणों से उसे पावन किया। जैसे जैसे प्रवास स्थल की दूरी कम होती जा रही थी सड़क मार्ग पर हर ओर श्रद्धालु श्रावक समाज दीर्ष्टिगत होने लगा। हजारों की संख्या में सूरतवासी आज आपने आराध्य के मंगल प्रवेश पर दर्शनार्थ उपस्थित थे। लगभग 9 किमी विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण कोसंबा की उड़ान विद्या संकुल में प्रवास हेतु पधारे। इस अवसर पर विश्व हिंदी परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री प्रवीण तोगड़िया ने शांतिदूत के दर्शन कर पावन आशीष प्राप्त किया। इस दौरान आचार्यश्री से विभिन्न विषयों पर उनकी चर्चा हुई। गुरुदेव की अणुव्रत यात्रा के बारे में जानकारी प्राप्त कर श्री तोगड़िया ने यात्रा के प्रति अपनी मंगलकामनाएं प्रकट की। धर्मसभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को उद्बोधन प्रदान करते हुए आचार्य प्रवर ने कहा – हमारे पास प्रवृति के तीन साधन उपलब्ध है। पहली काया। जिससे हम देखते, सुनते, चलते व खाते-पीते है। दूसरा वचन जिससे हम बोलते हैं व तीसरा है मन। जिससे हम सोचते हैं, कल्पना करते हैं। मन की व सोचने के शक्ति सबको उपलब्ध नहीं होती यह पंचेन्द्रिय प्राणियों में भी सिर्फ समनस्क जीवों को ही उपलब्ध होती हैं। एक बिना हाथ पैर का भिखारी बड़ा प्रसन्न मन था, एक सन्यासी ने उससे इस प्रसन्नता का कारण पुछा तो उसने बड़ा मार्मिक उतर दिया – मेरे हाथ पैर तो नहीं, पर बाकी सब कुछ तो ठीक है तो फिर मैं दुखी क्यों बनूं ? जो प्राप्त है उसकी खुशी क्यों न मनाऊँ ? दुःख में भी दुखी न होना जीने की एक बड़ी कला होती है। आचार्य श्री ने दृष्टांत द्वारा आगे फरमाया की सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति एक बिस्तर पर रहकर भी बहुत कुछ कार्य कर सकता है। व्यक्ति को अनुकूलता में ज्यादा प्रसन्न नहीं होना चाहिए व प्रतिकूलता में ज्यादा दुखी नहीं होना चाहिए। आधा गिलास पानी वाले गिलास को आधा खाली समझना हमारा नकारात्मक चिंतन का फल है और आधा भरा हुआ समझना सकारात्मक चिंतन का परिणाम।
यदि हमें कल मरना है तो अभी से ही मरकर दुखी क्यों बनें। हमारी सोच में वास्तविकता की पुट रहे, वर्तमान में व्यक्ति जिए तो इस मनुष्य जीवन का सही उपयोग कर सकते हैं। सकारात्मक चिंतन द्वारा जीवन को सही दिशा में मोड़ा जा सकता है। सूरत जिला प्रवेश के संदर्भ में आचार्यवर ने कहा कि आज हमारा सूरत जिला में प्रवेश हुआ है। आगे कई कार्यक्रमों का भी समायोजन होना है। सूरत की अच्छी सूरत बनी रहे, निखरती रहे। आध्यात्मिकता की मूरत और बढ़ती रहे यह मंगलकामना।
इस अवसर पर साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी का सारगर्भित वक्तव्य हुआ। तत्पश्चात आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति सूरत के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा, उड़ान विद्या संकुल के ट्रस्टी श्री महीपत सिंह वशी आदि ने अपने विचारों की प्रस्तुति दी। सूरत की मुमुक्षु बहनें, तेरापंथ समाज, तेरापंथ महिला मंडल, ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं ने पृथक–पृथक सामुहिक गीतों का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने किया।