कीम, सूरत (गुजरात) : नेपाल, भूटान सहित भारत के 23 राज्यों की पदयात्रा कर प्रमाणिकता, अहिंसा, सद्भभावना, सात्विक जीवन व्यवहार के संदेश से समाजोत्थान करने वाले अणुव्रत यात्रा प्रणेता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज कीम में मंगल पदार्पण हुआ। इतने वर्षों पश्चात आपने आराध्य को अपनी धरा पर पाकर कीमवासियों का उत्साह गगनभेदी जयघोषों से मुखरित हो रहा था। चारों और मानों अध्यात्म का उत्सव छाया हुआ था। प्रातः काल कोसम्बा की उड़ान विद्या संकुल से गुरुदेव ने मंगल प्रस्थान किया। लगभग 12.7 किमी विहार का शांतिदूत का कीम में प्रवास हेतु पधारे।
मंगल प्रवचन में आचार्य प्रवर ने फरमाया– हमारे शरीर में पांच इंद्रिय है जिसमें श्रोतेन्द्रिय सुनने का माध्यम है। इसके द्वारा आदमी शब्द ग्रहण कर लेता है। शब्दों को सुनने से अर्थ का बोध हो जाता है व सुनकर आदमी बहुत कुछ जान लेता है, समझ लेता है। कल्याण की बात भी सुनकर जानी जा सकती है और पाप की भी। और आज तोअनेक सुनने के साधनों के विकास से आदमी घर बैठे–बैठे व लेटे–लेटे भी बहुत कुछ सुन सकता हैं। हमें इस श्रोतिन्द्रिय का अच्छा उपयोग व सदुपयोग करना चाहिए व दुरूपयोग से बचना चाहिए। आदमी अच्छी व ज्ञानवर्धक प्रवचन तथा आगम वाणी का श्रवण करें जिससे ज्ञान का विकास हो।
गुरुदेव ने आगे फरमाया कि किसी दुखी के दुःख दर्द को भी आदमी सुने। न्यायाधीश के कान का उपयोग दोनों तरफ की बातों को सुनकर न्यायपूर्ण व निष्पक्ष फैसला देने में हो। हम अपने गुरुजनों से जीवनोपयोगी बातों को सुनते रहें और फिर उन्हें आचरण में लाएं। आजकल श्रोताओं की परिषद में काफी जागरूकता देखने को मिल रही है, न आपस में बातचीत होती है न ही प्रायः नींद लेते है। प्रवचन को ध्यान से सुनते हैं। इसका अच्छा उपयोग करते रहे। किसी की निंदा व झगड़ों को सुनने में इसका उपयोग न करें।
कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी का सारगर्भित उद्बोधन हुआ। इससे पूर्व मुनि श्री कीर्ति कुमार ने उपदेश दिया। मंच संचालन मुनि श्री कुमारश्रमण ने किया।
तेरापंथ सभा अध्यक्ष श्री सुरेश मंडोत, उपसरपंच मनोहर जी ने अपने विचार रखे। तेरापंथ महिला मंडल, कन्या मंडल, ज्ञानशाला के बच्चों ने स्वागत में प्रस्तुति दी।