सायण, सूरत (गुजरात) : तीर्थंकर प्रभु महावीर के प्रतिनिधि जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ सूरत शहर की ओर प्रगतिमान है। सूरत जिला को पावन बनाते हुए आज आचार्य श्री का सायण में मंगल पदार्पण हुआ। प्रातःकाल अणुव्रत अनुशास्ता ने कीम से मंगल विहार किया। विहार प्रारंभ के समय ही उसी मार्ग से गुजर रहे मूर्तिपूजक संघ के कुछ मुनियों से आचार्य प्रवर का आध्यात्मिक मिलन हुआ। उपस्थित जन समुदाय को आशीर्वाद प्रदान करते हुए गुरुदेव स्थानीय तेरापंथ भवन के लिए निर्धारित भूमि पर पधारे एवं श्रावक समाज को मंगलपाठ श्रवण करवाया। आज का विहार मार्ग सड़क के दोनों और खेत एवं विशाल वृक्ष श्रृंखला होने से नयनाभिराम प्रतीत हो रहा था। प्रकृति से भरे मार्ग पर मानव मन की प्रकृति को उन्नत बनाने का संदेश देते हुए शांतिदूत निरंतर गतिमान थे। एक जगह नर्सिंग कॉलेज की छात्राओं को आचार्यवर ने अणुव्रत के संकल्प स्वीकार करवाएं। लगभग 13.4 किमी विहार कर गुरुदेव का डीआरजीडीएस स्कूल में प्रवास हेतु पदार्पण हुआ। आचार्य रूप में प्रथम बार गुरुदेव के पदार्पण से उल्लसित श्रावक गण जय जय ज्योतिचरण जय जय महाश्रमण के घोषाें से आकाश को गुंजायमान कर रहे थे। चतुर्दशी के प्रसंग पर हाजरी का वाचन भी पूज्यप्रवर द्वारा किया गया।
धर्म देशना देते हुए आचार्यश्री ने कहा – भौतिक जगत में सर्वोच्च पद चक्रवर्ती का होता है उसी प्रकार अध्यात्म के क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान तीर्थंकर का होता है। वर्तमान अवसर्पिणी काल में शांतिनाथ भगवान एक ऐसे तीर्थंकर थे, जो एक ही जन्म में चक्रवर्ती भी बने व तीर्थंकर भी। प्रभु शांतिनाथ जो सोलहवें तीर्थंकर थे, उन्होंने इन दोनों पदों को प्राप्त किया। हर व्यक्ति शांति का इच्छुक व आकांक्षी होता है, किंतु शांति पाने के लिए उसके अनुरूप जीवन शैली भी होनी चाहिए। शांति के बाधक तत्वों में पहला है – भय। न बिमारी का भय हो, न बुढ़ापे का भय हो और न ही मौत का भय हो तो व्यक्ति शांति में रह सकता है। दूसरा शांति का बाधक तत्व है चिंता। चिंता को चिता के सामन होती है। व्यक्ति चिंता नहीं चिंतन करे और प्रशस्त रहे।
गुरुदेव ने आगे कहा कि पाप से डरना व भय खाना प्रशस्त भय है व ग्रहणीय भी जबकि अन्य प्रकार के भय अप्रशस्त। उसके बाद शांति के बाधक तत्वों में गुस्सा, लालसा, कामना व लोभ आते है। कषायों की प्रबलता शांति को भंग करती है, अतः हमारा कषाय प्रतनू रहे ऐसा प्रयास रहना चाहिए। सहनशीलता के साथ साथ निर्जरा की भावना जुडी रहे। पुण्य बंध का लक्ष्य न रखकर निर्जरा का लक्ष्य रहे। कर्मों का निर्जरण ही उत्तम साधना है।
तत्पश्चात कार्यक्रम में स्थानीय तेरापंथ सभाध्यक्ष श्री राजेश चोरड़िया, श्री महावीर बोहरा, श्रीमती विनीता चोरड़िया, खुशबू चोरड़िया, सोनाली सुराणा, महक कोठारी ने अपने विचार व्यक्त किए। महिला मंडल, कन्या मंडल, स्थानकवासी महिला मंडल, ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने स्वागत गीत की प्रस्तुति दी।