प्रधान सेवक के बाहर पैर छुए जा रहे हैं और देश में खींचे जा रहे। चौंकने वाली बात नहीं है। यह काम सदियों से होता रहा है। एक और काम जो सदियों से होता रहा है वह है ज्ञान का प्रसार। इसे करने वालों के चाहये विवेक से भले सबन्ध कभी रहे ना हो…. बिलकुल वैसे ही जैसे हम लोगो ने कुछ दिन पहले माँ को सामान दिया था सोशल मिडिया पर।
कुछ इसी तरह ज्ञान का छिडक़ाव मुझ पर भी हुआ तो थोड़ी सी आँख खुली और याद आये पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी। वैसे बतादू बचपन में वह सिलवासा आए थे (उन दिनों मैं सपरिवार वहीं निवासरत था)और स्कूल के सारे बच्चो को सडक़ के पास खड़ा कर दिया गया था ……कि जब राष्ट्रपति जी की कार गुजरे तब हम झंडा हिलाएं और जयहिंद कहें। तब मैने और मित्र हितू ने जूलिएट सर से पूछा था शूटिंग भी होगी जैसे फिल्मों में होता है? कार गुजऱती है और भूखे बच्चे फिर भी ख़ुशी में उनके पीछे भागते है….. पता नहीं क्यों उन्होंने डांटा और फिर अल्लोव सर ने भी …….डांट का सिलसिला जो आरंभ हुआ वह आज तक चल रहा है… वैसे मैंने राष्ट्रपतिजी को ताकतवर से तुलना इसलिए की थी की तब मुझे लगता था उनसे बड़ा और शक्तिशाली किसी राष्ट्र में कौन हो सकता है। वो ब्रह्म और सर की डाट तो कुछ साल पहले समज आयी।जब कुछ काले अक्षर मैंने पढ़े, वैसे बात ३१ अक्टूबर १९८४ की है। देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। ये अंगरक्षक सिख थे। इसके विरोध में दिल्ली में सिखों के खिलाफ काफी गुस्सा भडक़ उठा था। उस वक्त ज्ञानी जैल सिंह देश के राष्ट्रपति थे और यमन के दौरे पर थे। राष्ट्रपति विदेश यात्रा अधूरी छोडक़र उसी शाम ५ बजे स्वदेश लौट आए थे और दिवंगत प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि देने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान पहुंचे थे, जहां उन्हें गंभीर स्थिति में सुबह भर्ती कराया गया था।
जब राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह का काफिला एयरपोर्ट से अस्पताल की तरफ बढ़ा तो उग्र लोगों ने उनके काफिले को आरके पुरम के पास रोकने की कोशिश की थी और जलती मशाल फेंकी थी। जब भीड़ इसमें असफल रही तो एक किलोमीटर की दूरी पर कमल सिनेमा के पास उनके काफिले पर पथराव किया गया था। सुरक्षाकर्मियों ने बड़ी मशक्कत के बाद राष्ट्रपति को सुरक्षित एम्स पहुंचाया था। यह संभवत:पहला और अंतिम वाकया था, जब किसी राष्ट्रपति के काफिले पर पथराव किया गया था।
ज्ञानी जैल सिंह की बेटी डॉ. गुरदीप कौर ने करीब एक दशक पहले एक इंटरव्यू में उस वाकये का जिक्र करते हुए कहा था कि उनके पिता (राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह), प्रधानमंत्री गांधी की हत्या और उसके बाद भडक़े दंगों से काफी परेशान थे। बतौर कौर देश भर में सिखों पर हो रहे हमलों को तुरंत रोकने के लिए राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने तब पीएमओ और गृह मंत्रालय के बड़े अधिकारियों को फोन लगाने की कोशिश की थी लेकिन कई कोशिशों के बाद भी किसी ने फोन नहीं उठाया था। कौर ने कहा था कि कुछ देर बाद राष्ट्रपति द्वारा फोन मिलाते ही काट दिया जा रहा था।
राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के प्रेस सचिव रहे तरलोचन सिंह ने १९८४ के सिख दंगों की जांच के लिए बने नानावती आयोग में सामने दर्ज अपने बयान में भी यह बात बताई थी। मशहूर पत्रकार नारायण सामी ने भी इस वाकये का जिक्र अपनी किताब में किया है। किताब में कहा गया इंदिरा गांधी की हत्या की खबर सुनकर भारत आने से पहले राष्ट्रपति जैल सिंह ने अफसरों से पूछा था, मैं देश का राष्ट्रपति हूं, क्या मेरे कंट्रोल में सबकुछ है? तरलोचन सिंह बाद में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन बनाए गए थे।
तरलोचन सिंह ने नानावती कमीशन में दर्ज कराए गए अपने बयान में कहा था, जब राष्ट्रपति के काफिले पर हमला हो रहा था, तब महामहिम ने दिल्ली के तत्कालीन उप राज्यपाल पीजी गवई से फोन पर पूछा था कि जब हालात नियंत्रण से बाहर हो गए हैं तो फिर सेना क्यों नहीं बुलाई जानी चाहिए? इस पर एलजी ने जवाब दिया था कि अगर सेना बुलाई गई तो स्थिति और खराब हो जाएगी। बाद में जब बीजेपी नेता विजय कुमार मल्होत्रा ने राष्ट्रपति से यही सवाल पूछा तो उन्होंने कहा- आई एम हेल्पलेस, आई कैन नॉट डू एनिथिंग (मैं असहाय हूं। मैं कुछ नहीं कर सकता)।
बतौर तरलोचन सिंह राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने विपक्षी नेता शरद यादव, कर्पूरी ठाकुर और चौधरी चरण सिंह को भी यही जवाब दिया था। राष्ट्रपति के बयान रंगनाथ मिश्रा, नानावती कमीशन में जमा हलफनामे में भी दर्ज हैं।
इस इससे से कोई क्या समझा या नहीं पर मेरे कॉन्सेप्ट कुछ क्लियर हुए कि घर में बुज़ुर्ग माँ हो या राष्ट्रपति ………..शक्ति शाली वो होता नहीं जो दिखता है। कुछ काम नहीं हो तो सोचियेगा वर्ना अभी तो मात्र ७५ वर्ष हुए हैं।