चौंकाने वाली बात यह है कि अधिकांश गांवों में अल्पसंख्यक समुदाय का कोई भी निवासी नहीं है। बस कुछ परिवार हैं जो तीन से चार पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं। पत्र में कहा गया है, ‘हमारा इरादा किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का नहीं है।’ नारनौल (महेंद्रगढ़) के उप-विभागीय मजिस्ट्रेट मनोज कुमार ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि उन्हें पत्रों की भौतिक प्रतियां (फिजिकल कॉपी) नहीं मिली हैं, लेकिन उन्होंने उन्हें सोशल मीडिया पर देखा है और ब्लॉक कार्यालय से सभी पंचायतों को कारण बताओ नोटिस भेजने को कहा है।
कुमार ने कहा, ऐसे पत्र जारी करना कानून के खिलाफ है। हालांकि हमें पंचायतों की ओर से ऐसा कोई पत्र नहीं मिला है। मुझे इनके बारे में मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए पता चला। इन गांवों में अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी दो प्रतिशत भी नहीं है। हर कोई सद्भाव से रहता है और इस तरह का नोटिस केवल इसमें बाधा डालेगा।’ पत्र क्यों जारी किया गया, यह पूछे जाने पर महेंद्रगढ़ के सैदपुर के सरपंच ने कहा कि नूंह हिंसा लेटेस्ट ट्रिगर था, लेकिन गांव में पिछले महीने जुलाई में चोरी के कई मामले दर्ज किए गए थे।
सरपंच विकास ने कहा, ‘सारी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं तभी घटित होने लगीं जब बाहरी लोग हमारे गांवों में प्रवेश करने लगे। नूंह झड़प के ठीक बाद, हमने एक अगस्त को पंचायत की और शांति बनाए रखने के लिए उन्हें अपने गांवों के अंदर नहीं आने देने का फैसला किया।’ उन्होंने कहा कि जब उनके कानूनी सलाहकार ने उन्हें बताया कि धर्म के आधार पर किसी समुदाय को अलग करना कानून के खिलाफ है, तो उन्होंने पत्र वापस ले लिया। उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि यह पत्र सोशल मीडिया पर कैसे प्रसारित होने लगा। हमने इसे वापस ले लिया है।’
विकास के अनुसार, सैदपुर पत्र जारी करने वाला पहला गांव था और अन्य लोगों ने उसका अनुसरण किया। उन्होंने कहा, ‘महेंद्रगढ़ के अटाली ब्लॉक से लगभग 35 पत्र जारी किए गए थे। बाकी झज्जर और रेवाड़ी से जारी किए गए थे।’ पड़ोसी गांव ताजपुर के एक निवासी ने पत्र जारी करने के लिए नूंह में हिंसा की खबर और ‘बड़े लोगों (मजबूत लोगों)’ के उकसावे का हवाला दिया। उन्होंने कहा, ‘हमें यहां कोई समस्या नहीं है। लेकिन बड़े लोगों से फोन आए और मुलाकातें हुईं, जिसके कारण यह प्रकरण हो सकता है।’
कुल 750 घरों वाले इस गांव में अल्पसंख्यक समुदाय का कोई भी परिवार नहीं है। स्थानीय लोगों ने भी कहा कि उन्हें ऐसी कोई चिंता नहीं है। रोहतास सिंह ने गांव के मंदिर के सामने एक पीपल के पेड़ के नीचे ताश के पत्तों को फेंटते हुए कहा, ‘हमें उन मामलों में कोई दिलचस्पी नहीं है जो हमसे संबंधित नहीं हैं। हम एक सरल और शांतिपूर्ण जीवन जीते हैं। हम जानते हैं कि नूंह में क्या हो रहा है, लेकिन हमें यहां कोई सांप्रदायिक तनाव या सुरक्षा संबंधी चिंता नहीं है।’
यही सवाल पूछे जाने पर गांव के सरपंच राजकुमार- जिन्हें स्थानीय तौर पर ‘टाइगर’ के नाम से जाना जाता है, ने कहा कि उन्हें विकास का फोन आया, जिन्होंने कहा, ‘सभी ने पत्र जारी कर दिया है और मुझे भी ऐसा करना चाहिए।’ राजकुमार ने कहा, ‘यह एक निवारक (प्रिवेंटिव) उपाय था और मुझे कोई नुकसान नहीं हुआ। उन्होंने जो पत्र जारी किया था उसका खाका हमारे पास था। हमने बस उसे कॉपी किया है।’
एक अन्य पड़ोसी गांव कुंजपुरा में अल्पसंख्यक समुदाय के लगभग 100 लोग रहते हैं। यहां निवासियों को शहर के ‘अड्डे’ में ताश खेलते देखा गया। एक व्यापारी माजिद ने कहा, ‘हम एक साथ रहते हैं। हमने नूंह के बारे में सुना है, लेकिन हम इससे अछूते हैं। मेरा परिवार चार पीढ़ियों से यहां रह रहा है। यह मेरा घर है।’ स्वास्थ्य विभाग के एक कर्मचारी शाजेब ने कहा कि गांव में उनके समुदाय के लगभग 80 मतदाता हैं।
पारंपरिक हरियाणवी पोशाक – शर्ट, लंबी स्कर्ट और सिर पर घूंघट लिए अपनी पत्नी के साथ बाइक पर निकलते हुए उन्होंने कहा, ‘हमारे बीच कभी कोई मतभेद नहीं रहा। धर्म हमारी दोस्ती को प्रभावित नहीं करता है। हम एक साथ बड़े हुए हैं।’ कुंजपुरा के सरपंच नरेंद्र जिन्होंने भी पत्र जारी किया था, ने कहा कि मेवात क्षेत्र से कुछ लोग पशुपालन और अन्य व्यवसायों के लिए उनके गांव आते हैं। उन्होंने कहा, ‘फिर भी, नूंह के परिदृश्य ने इन व्यवसायों पर रोक लगा दी है। इस क्षेत्र के कुछ लोग यहां रह रहे थे, लेकिन वे नूंह में अपने परिवारों के पास वापस चले गए हैं।’