फरीदाबाद:अरावली पर्वतमाला की तलहटी में बसे नूंह के प्राचीन मंदिर ऋषि-मुनियों की तपस्थली और अनुसंधान केंद्र रहे हैं। नल्हड़ में प्राचीन पांडव कालीन शिव मंदिर (Nalhar Shiv Temple) भी इन्हीं में से एक है। इसी मंदिर से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर मंशा देवी मंदिर, फिरोजपुर झिरका का प्रसिद्ध शिव मंदिर, पुन्हाना के सिंगार में राधाकृष्ण के भव्य मंदिर प्राचीन हैं।
अरावली में होने के कारण ये आस्था केंद्र प्राचीनकाल में ऋषि मुनियों की तपस्थली रहे हैं। कुछ धार्मिक विद्वान अरावली को महर्षि मार्कणडेय, महर्षि पाराशर की तपस्थली और रावण व कुंभकरण जैसे तपस्वियों की अनुसंधानशाला भी मानते हैं, जबकि कुछ विद्वान मेवात को भगवान श्रीकृष्ण की धरती भी मानते हैं। नल्हड़ के प्राचीन शिव मंदिर को महाभारत कालीन माना जाता है। बीते महीने इसी मंदिर से बृजमंडल यात्रा के शुरू होते ही नूंह में साम्प्रदायिक हिंसा हुई थी और इसी मंदिर में श्रद्धालुओं की जान बच सकी थी।
एक किदवंती के मुताबिक, नल्हड़ के मंदिर में शिवलिंग की स्थापना भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा होना बताया गया है। इस कारण इस मंदिर का महत्व अधिक है और श्रद्धालुगण यहां आते रहे हैं।
भगवान श्रीकृष्ण की धरती माना जाता है मेवात
शिक्षाविद डॉ. पवन सिंह बताते हैं कि मेवात की धरती भगवान श्रीकृष्ण की भूमि है। यह उनकी क्रीडास्थली रही है। प्रतिवर्ष नलहड़ के महादेव मंदिर बड़े धार्मिक आयोजन होते हैं, यात्राएं निकलती हैं। बीते दिनों बृजमंडल यात्रा भी इसी मंदिर से प्रारंभ होकर सिंगार पुन्हाना के श्री राधाकृष्ण मंदिर में संपन्न होती है। इन दोनों स्थानों का महत्व श्रीकृष्ण के नाम के साथ जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि यहीं श्रीकृष्ण ने पवित्र शिवलिंग की स्थापना की थी।
यात्राओं को पुनर्जीवित किया
विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल बताते हैं कि विहिप और बजरंगदल ने देशभर में करीब एक दर्जन यात्रा बीते एक दशक में पुनर्जीवित की हैं। इनमें एक नूंह की यात्रा भी है। ये सभी यात्राएं ऐसी है कि जो आक्रांताओं के दमन के कारण स्थानीय लोगों ने बंद कर दी थी। इनमें कश्मीर में पूंज राजोरी में बूढा बाबा अमरनाथ यात्रा, कर्नाटक के चिकमंगलूर भगवान दत्तात्रेय की यात्रा और मेवात में बृजमंडल यात्राएं हैं।