लखनऊ। Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव का शंखनाद होने में अब चंद दिन ही बचे हैं। राजनीतिक पार्टियां अपना-अपना गढ़ बचाने और नए दांव खेलने के लिए आतुर हैं। यूपी में लोकसभा की 80 सीटों में कुछ सीटें ऐसी भी हैं, जिनको पार्टियों या चेहरों से जाना और पहचाना जाता रहा है। ये ऐसी सीटें हैं कि एकतरफा हवा चलने के बाद भी पार्टियां बचाने में सफल रही हैं। इस साल होने वाले इस चुनाव में अब देखना होगा कि किसका गढ़ बचता है। ऐसी सीटें बचाए रखना बड़ी परीक्षा साबित होगी।
लखनऊ: राजधानीवासियों पर वर्ष 1996 से जो भगवा का रंग चड़ा है, वह पिछले चुनावों तक नहीं उतरा है। अटल बिहारी वाजपेयी यहां से पांच बार लगातार सांसद रहे। स्वास्थ्य कारणों से जब उन्होंने सीट छोड़ी तो लालजी टंडन यहां से चुनाव लड़े और जीते। पिछले दो चुनावों से देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह चुनाव लड़कर जीत रहे हैं। भाजपा ने इस बार भी उन्हें मैदान में उतारा है। सपा ने रविदास मल्होत्रा पर दांव लगाया गया है। बसपा उम्मीदवार आने के बाद लड़ाई की स्थिति सामने आएगी।
रायबरेली: कांग्रेस परिवार की यह सीट परांपरागत मानी जाती रही है। वर्ष 1977, 1996 व 1998 छोड़ दिया जाए तो हमेशा इस सीट पर कांग्रेस का परचम फहरा है। वर्ष 2004 से लेकर अब तक चार बार से सोनिया गांधी इस सीट से सांसद चुनी जाती रही हैं। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। इस चुनाव में कांग्रेस की जीत हार से उनकी हैसियत का पता चलेगा।
अमेठी: यह सीट भी कांग्रेस परिवार की मानी जाती रही है। पीढ़ी दर पीढ़ी कांग्रेस ही यहां से जीतती रही है। राजीव गांधी से लेकर उनके पुत्र राहुल गांधी तक यहां से चुनाव जीत चुके हैं। राहुल की राजनीतिक जीवन की शुरुआत भी यहीं से शुरू हुई, लेकिन वर्ष 2019 में भाजपा की ऐसी आंधी चली कि स्मृति ईरानी से राहुल गांधी 55 हजार से अधिक वोटों से हार गए। कांग्रेस की घोषित पहली सूची में राहुल को वायनाड से उम्मीदवार घोषित किया है। कांग्रेस अपने इस घर को वापस पा सकती है या भाजपा का कब्जा बरकरार रहेगा यह भी देखने वाला होगा।
आजमगढ़ : यह सीट सपा व बसपा की गढ़ मानी जाती रही है। तीन बार इस सीट पर बसपा जीत का झंडा बुलंद कर चुकी है। सपा भी यहां से चार बार जीत चुकी है। वर्ष 2014 का चुनाव सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव जीते थे। वर्ष 2019 में सपा मुखिया अखिलेश यादव यहां से चुनाव जीत कर सांसद बने। उपचुनाव में यह सीट भाजपा ने सपा से झटक ली। इस बार अखिलेश के लड़ने की फिर चर्चा है। इसीलिए यहां से बड़े मुस्लिम नेता गुड्डू जमाली को सपा से जोड़ा गया है। अब देखने वाला होगा कि वह कितना सफल होते हैं।
मैनपुरी, बादयूं, कन्नौज: मैनपुरी सीट साल 1996 से सपा के पास है। पांच बार यहां से मुलायम सिंह यादव चुनाव जीत चुके हैं। मुलायम के निधन के बाद हुए उपचुनाव में अखिलेश की पत्नी डिंपल यहां से चुनाव जीत कर सांसद बनी। बादयूं सीट वर्ष 1996 से वर्ष 2014 तक सपा के पास रही है। पिछले चुनाव में भाजपा यह सीट जीतने में सफल रही। सपा ने इस बार शिवपाल यादव पर दांव लगाया है। हार और जीत से उनके जौहर और राजनीतिक कद तय करेगा। कन्नौज सीट से मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश व डिंपल चुनाव जीत चुके हैं। कन्नौज सपा का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा के सुब्रत पाठक सपा के इस गढ़ में भगवा फहराने में सफल रहे हैं। सपा इस सीट को फिर से वापस पाने की जद्दोजहद कर रही है।
रामपुर: इस सीट पर चर्चाओं की शुरुआत एक समय सपा नेता मो. आजम खां से होती थी। विधानसभा के साथ ही लोकसभा पर उनकी मजबूत पकड़ की बातें होती थीं। किसी समय कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली यह सीट धीरे-धीरे सपा की हो गई। दो बार इस सीट से जया प्रदा चुनाव जीती और वर्ष 2019 का चुनाव मो. आजम खां स्वयं जीते। ऐसा पेंच फंसा की उनकी सदस्यता समाप्त हो गई। उन पर चुनाव लड़ने का प्रतिबंध लग चुका है, अब देखना होगा कि उनका इस सीट पर कितना प्रभाव बचा है।