नई दिल्ली:देश की राजधानी दिल्ली की महानगरीय यात्रा कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य के ज्ञान किरणों से दिल्ली का जनमानस आलोकित हो रहा है। मानव जीवन को सन्मार्ग पर ले जाने की प्रेरणा प्रदान करते हुए आचार्यश्री महाश्रमणजी शनिवार को यमुना स्थित शहादरा जिले के विवेक विहार स्थित ओसवाल भवन से प्रातः की मंगल बेला में प्रस्थान किया। आचार्यश्री के प्रस्थान से पूर्व ही आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं ने दर्शन और आशीष का लाभ प्राप्त किया।
विहार के दौरान सैंकड़ों-सैंकड़ों श्रद्धालुओं की उपस्थिति और दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती भागती जिन्दगी के बीच सन्मार्ग पर चलकर जीवन को सुन्दर बनाने की प्रेरणा प्रदान करने वाले राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी का के गतिमान चरण अपरिचित लोगों के लिए आकर्षण और श्रद्धा का कारण बन रहा था। आचार्यश्री लगभग दस किलोमीटर का विहार कर पुनः पंडित दीनदयाल उपाध्याय मार्ग स्थित अणुव्रत भवन में पधारे। आचार्यश्री का पुनरागमन संबंधित लोगों को अत्यंत आनंदित कर रहा था।
प्रवचन हॉल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के भीतर अनेक प्रकार की वृत्तियां होती हैं। आदमी के भीतर गुस्सा, लोभ और भय की वृत्ति भी होती है। आदमी डर जाता है। आदमी कभी स्वयं भी डर जाता है और कभी दूसरों को भी डराने का प्रयास करता है। भय एक संज्ञा है। भय महोनीय कर्म का एक अंश है। आदमी स्वयं तो डरता ही है, वह दूसरों को भी डराता है। डरना जहां निर्बलता का द्योतक है तो किसी दूसरे को डाराना पाप हो जाता है। डराना पाप है और डरना निर्बलता तो ऐसे में आदमी को यह प्रयास करना चाहिए कि वह न तो स्वयं डरे और न ही किसी दूसरे को डराकर पाप का भागीदार बनने का प्रयास करे। आदमी को अभय होना है तो पहले उसे पहले दूसरों को डराना छोड़ना होगा और फिर स्वयं भी किसी से डरना नहीं चाहिए। स्वतंत्रता में भी स्वच्छंदता न हो। इसके लिए शासन की व्यवस्था होती है। आदमी को अभय मिले। कोई किसी को डराए नहीं, धमकाए नहीं। इस प्रकार आदमी के भीतर अभय की चेतना का विकास होना चाहिए।
दुनिया में युद्ध की बात भी आती है। एक-दूसरे को अभय देने का भाव हो। अभय, शांति और अहिंसा के तत्त्व जीवन में बने रहें तो अभय की बात हो सकती है। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने प्रसंगवशा रूस व यूक्रेन के बीच हो रहे युद्ध की स्थिति समाप्त हो वहां शांति की भावना का विकास हो, सामंजस्य की स्थिति बने, इसके लिए आचार्यश्री ने उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ के साथ कुछ समय का ध्यान का प्रयोग कराया। आचार्यश्री की ऐसी प्रेरणा और ऐसी भावना को सुनकर जन-जन आह्लादित हो उठा और हर मन कहा- आचार्यश्री महाश्रमणजी केवल तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य नहीं, वे तो सकल विश्व के संत हैं, जिन्हें संपूर्ण विश्व की चिंता है।
मुमुक्षु तारा लूणिया ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावना व्यक्त की तो आचार्यश्री ने आशीष प्रदान करते हुए छापर में 9 सितम्बर 2022 को होने वाले दीक्षा समारोह में साध्वी दीक्षा प्रदान करने की घोषणा की। कार्यक्रम में साध्वी कुन्दररेखाजी आदि साध्वियों ने गीत का संगान किया। अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास के प्रभारी न्यासी श्री शांतिकुमार जैन तथा श्री सतीश जैन ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल की सदस्याओं ने बारह व्रत पर आधारित कार्यक्रम को प्रस्तुति दी। तेरापंथ कन्या मण्डल की कन्याओं ने गीत का संगान किया। श्री रमेश काण्डपाल ने स्वलिखित पुस्तक ‘मेरे देवदूत’ पूज्यचरणों में लोकार्पित की तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया।