एकादशी तिथि का हिन्दू धर्म में बड़ा महत्त्व है। हिन्दू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को ‘एकादशी’ कहते हैं। प्रत्येक मास में दो ‘एकादशी’ होती हैं। ‘अमावस्या’ और ‘पूर्णिमा’ के दस दिन बाद ग्यारहवीं तिथि ‘एकादशी’ कहलाती है।
एकादशी का व्रत पुण्य संचय करने में सहायक होता है। प्रत्येक पक्ष की एकादशी का अपना महत्त्व है। एकादशी व्रत का अर्थ विस्तार यह भी कहा जाता है कि “एक ही दशा में रहते हुए अपने आराध्य का अर्चन-वंदन करने की प्रेरणा देने वाला व्रत ही एकादशी है।”
इस व्रत में स्वाध्याय की सहज वृत्ति अपनाकर ईश आराधना में लगना और दिन-रात केवल ईश चितंन की स्थिति में रहने का यत्न एकादशी का व्रत करना माना जाता है। स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्नदान, गौ दान, कन्यादान आदि करने से जो पुण्य प्राप्त होता है एवं ग्रहण के समय स्नान-दान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, कठिन तपस्या, तीर्थयात्रा एवं अश्वमेध आदि यज्ञ करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, इन सबसे अधिक पुण्य एकादशी व्रत रखने से प्राप्त होता है।
ज्योतिष व आकाशीय काल-ज्ञान तथ्य
सूर्य से चन्द्र का अन्तर जब 121° से 132° तक होता है, तब शुक्ल पक्ष की एकादशी और 301° से 312° तक कृष्ण एकादशी रहती है।
एकादशी को ‘ग्यारस या ग्यास’ भी कहते हैं।
एकादशी के स्वामी विश्वेदेवा हैं।
एकादशी का विशेष नाम ‘नन्दा’ है।
एकादशी सोमवार को होने से ‘क्रकच योग’ तथा ‘दग्ध योग’ का निर्माण करती है, जो शुभ कार्यों (व्रत उपवास को छोड़कर) में वर्जित है।
रविवार तथा मंगलवार को एकादशी मृत्युदा तथा शुक्रवार को सिद्धिदा होती है।
एकादशी की दिशा आग्नेय है।
चन्द्रमा की इस ग्यारहवीं कला के अमृत का पान “उमा देवी” करती है।
भविष्य पुराण के अनुसार एकादशी को विश्वेदेवा की पूजा करने से धन-धान्य, सन्तति, वाहन, पशु तथा आवास आदि की प्राप्ति होती है।
एकादश्यां यथोद्दिष्टा विश्वेदेवाः प्रपूजिताः।
प्रजां पशुं धनं धान्यं प्रयच्छन्ति महीं तथा।।
पापमोचनी एकादशी २८ मार्च २०२२
भविष्योत्तर पुराण में पापमोचिनी एकादशी के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। हिन्दू धर्म के अनुसार, संसार का कोई ऐसा प्राणी नहीं है, जिससे जाने-अनजाने कोई पाप न हुआ हो। ईश्वरीय विधान के अनुसार, पाप दंड से बचा जा सकता है, अगर पापमोचिनी एकादशी का व्रत रखें। पाप से मुक्ति व सर्वकामना सिद्धि के लिए यह व्रत बहुत आवश्यक है। पुराणों के अनुसार, चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी पापमोचिनी एकादशी है अर्थात् पापों को नष्ट करने वाली है।
यह व्रत इस वर्ष 28 मार्च, सोमवार को है। इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा फल मिलता है। इसलिए रात्रि में भी निराहार रहकर भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें। जिन लोगों को शारीरिक व मानसिक कष्ट है या जो गलत कार्यों से दूर रहना चाहते हैं, उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए। जिन भाई-बहनों के जीवन में दरिद्रता व दुख थमने का नाम नहीं ले रहा है, उन्हें भी इस व्रत को अवश्य करना चाहिए, ताकि जीवन में सुख-शांति व समृद्धि आ सके।
पापमोचनी एकादशी तिथि की शुरुआत – मार्च 27, 2022 को शाम 06:04 बजे से होगी.
पापमोचनी एकादशी तिथि का समापन – मार्च 28, 2022 को शाम 04:15 बजे होगा
व्रत पारण का समय
पापमोचनी एकादशी के व्रत का पारण 29 मार्च – सुबह 06:15 से सुबह 08:43 तक किया जाएगा.
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – दोपहर 02:38
पापमोचनी एकादशी पूजन विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर पूजा स्थल पर जाकर व्रत का संकल्प लें. इसके बाद एक वेदी बना कर उस पर पूजन करने से पहले 7 प्रकार के अनाज रखें. इसमें उड़द दाल, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा आदि रखें.
वहीं, वेदी के ऊपर कलश की स्थापना करें और इसे आम या अशोक के 5 पत्तों से सजाएं.इसके बाद इस वेदी पर भगवान विष्णु की मूर्ति की स्थापना करें. और फिर पीले फूल, मौसमी फल और तुलसी भगवान को अर्पित करें.
फिर पापमोचनी एकादशी की कथा सुनें. कम से कम 108 बार तो ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप अवश्य करें. ज्यादा संभव हो तो ज्यादा बार भी कर सकते हैं. धूप और दीप से विष्णु जी की आरती करें. और भगवान विष्णु को पीले चीजों का भोग लगाएं. बता दें कि वैसे भगवान श्री हरि को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग ही लगाया जाता है. भोग में तुलसी पत्र अवश्य शामिल करें. तुलसी श्री हरि को बेहद प्रिय है. बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते.
इस दिन जरूरतमंदों को भोजन या जरूरी समान दान करें. व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें. अगले दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा के बाद ही व्रत का पारण करें. स्नान के बाद किसी ब्रह्माण को भोजन कराएं और फिर शुभ मुहूर्त में व्रत खोलें. बता दें कि एकादशी के व्रत में फलों का सेवन ही किया जाता है.
एकादशी व्रत परिचय
एक बार नैमिषारण्य में शौनक आदि अट्ठासी हजार ऋषि एकत्रित हुए, उन्होंने समस्त पुराणों के व्याख्याकार ब्रह्मज्ञानी श्री सूतजी से प्रार्थना की “हे सूतजी ! कृपाकर एकादशियों की उत्पत्ति व महात्म्य सुनाने की कृपा करें ।”
तब सूतजी बोले – “हे महर्षियों ! ऋषि मुनियों एवं समस्त प्राणियों के लिए अनन्त पुण्यदायी एकादशी की उत्पत्ति के संबंध में अपने पांचवें अश्वमेध यज्ञ के समय धर्मराज युधिष्ठिर ने भी भगवान श्री कृष्ण से यही प्रश्न किया था, वह सारा वृत्तांत मैं आप सभी से कहता हूं, ध्यानपूर्वक सुनो – एक वर्ष में बारह महीने होते हैं और एक महीने में दो एकादशी होती हैं, सो एक वर्ष में चौबीस एकादशी हुई । जिस वर्ष में लौंद मास (अधिक मास) पड़ता है, उस वर्ष में दो एकादशी और बढ़ जाती हैं । इस तरह कुल छब्बीस एकादशी होती हैं । १. उत्पन्ना, २. मोक्षदा, ३. सफला, ४. पुत्रदा, ५. षट्तिला, ६. जया, ७. विजया, ८. आमलकी, ९. पापमोचिनी, १०. कामदा, ११. बरुथिनी, १२. मोहिनी, १३. अपरा, १४. निर्जला, १५. योगिनी, १६. देवशयनी, १७.कामिका, १८. पुत्रदा, १९. अजा, २०. परिवर्तिनी, २१. इन्दिरा, २२. पापांकुशा, २३. रमा, २४. देवोत्थानी (प्रबोधिनी) । अधिक मास की दोनों एकादशियों के नाम हैं – २५. पद्मिनी और २६. परमा । ये सब एकादशी यथानाम तथा फल देने वाली हैं ।”
एकादशियों का माहात्म्य
हे ऋषियो ! जो पुण्य चन्द्र या सूर्य ग्रहण में स्नान या दान से होता है तथा जो पुण्य अन्न, जल, स्वर्ण, भूमि, गौ तथा कन्यादान तथा अश्वमेधादि यज्ञ करने से होता है, जो पुण्य तीर्थयात्रा तथा कठिन तपस्या करने से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी व्रत रखने से होता है । एकादशी व्रत रखने से शरीर स्वस्थ रहता है, अन्तर्मन की मैल धुल जाती है, हृदय शुद्ध हो जाता है, श्रद्धा-भक्ति उत्पन्न हो जाती है । प्रभु को प्रसन्न करने का मुख्य साधन एकादशी का व्रत है ।
एकादशी व्रत करने वाले के पितर कुयोनि को त्याग कर स्वर्ग में चले जाते हैं, एकादशी व्रत करने वाले के दस पुरखे पितृ पक्ष के, दस पुरखे मातृ पक्ष के और दस पुरखे पत्नी पक्ष के बैकुण्ठ को प्राप्त होते हैं ।
धन-धान्य, पुत्रादि और कीर्ति को बढ़ाने वाला यह एकादशी का व्रत है, एकादशी का जन्म भगवान् के शरीर से हुआ है, यह प्रभु के समान पतित पावनी है, अतः हे एकादशी ! आपको शत-शत प्रणाम है ।”
एकादशी व्रत : विधि-विधान
“व्रत करने की इच्छा वाले नर-नारी को दशमी के दिन मांस, प्याज तथा मसूर की दाल इत्यादि निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए, रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से भी दूर रहना चाहिए । प्रातः एकादशी को लकडी़ का दातुन न करें, नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और उंगली से कंठ शुद्ध कर लें, वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है, अतः स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें । यदि यह सम्भव न हो तो पानी से बारह कुल्ले कर लें । फिर स्नानादि कर मन्दिर में जाकर, गीता-पाठ करें या पुरोहितादि से श्रवण करें । प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि ’आज मैं चोर, पाखण्डी और दुराचारी मनुष्य से बात नहीं करुंगा और न ही किसी का दिल दुखाऊंगा, गौ, ब्राह्मण आदि को फलाहार व अन्नादि देकर प्रसन्न करुंगा, रात्रि को जागरण कर कीर्तन करुंगा, ’ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस द्वादश अक्षर मंत्र का जाप करुंगा, राम, कृष्ण, नारायण इत्यादि विष्णु सहस्त्र नाम को कण्ठ का भूषण बनाऊंगा’, ऐसी प्रतिज्ञा करके श्री विष्णु भगवान का स्मरण कर प्रार्थना करें कि – ’हे त्रिलोकपति ! मेरी लाज आपके हाथ है, अतः मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करना।’
यदि भूलवश किसी निन्दक से बात कर बैठें तो उसका दोष दूर करने के लिए भगवान सूर्य नारायण के दर्शन तथा धूप-दीप से श्रीहरि की पूजा कर क्षमा मांग लेनी चाहिए । एकादशी के दिन घर में झाडू नहीं लगानी चाहिए, चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है । इस दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए और न ही अधिक बोलना चाहिए, अधिक बोलने से मुख से न बोलने योग्य वचन भी निकल जाते हैं । इस दिन यथाशक्ति अन्नदान करना चाहिए किन्तु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न कदापि ग्रहण न करें । झूठ, कपटादि कुकर्मों से नितान्त दूर रहना चाहिए । दशमी के साथ मिली हुई एकादशी वृद्ध मानी जाती है, शिव उपासक तो इसको मान लेते हैं किन्तु वैष्णवों को योग्य द्वाद्वशी से मिली हुई एकादशी का ही व्रत करना चाहिए और त्रयोदशी आने से पूर्व व्रत का पारण करें । फलाहारी को गोभी, गाजर, शलजम, पालक, कुलफा का साग इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए और आम, अंगूर, केला, बादाम, पिश्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करना चाहिए । प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहन करनी चाहिए । द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्टान्न, दक्षिणादि से प्रसन्न कर परिक्रमा ले लेनी चाहिए, किसी सम्बन्धी की मृत्यु हो जाये तो उस दिन एकादशी व्रत रखकर उसका फल उसे संकल्प कर देना चाहिए और श्री गंगा जी में पुष्प (अस्थि) प्रवाह करने पर भी एकादशी व्रत रखकर फल प्राणी के निमित्त दे देना चाहिए, प्राणी मात्र को अन्तर्यामी का अवतार समझकर किसी से छल-कपट नहीं करना चाहिए । मधुर वाणी बोलनी चाहिए । अपना अपमान करने या कटु वचन बोलने वाले को भी आशीर्वाद देना चाहिए । भूलकर भी क्रोध नहीं करना चाहिए । क्रोध चाण्डाल का अवतार है । आप देवता रुप हो संतोष कर लेना चाहिए, सन्तोष का फल सर्वदा मधुर होता है, सत्य भाषण करना चाहिए तथा मन में दया रखनी चाहिए । इस विधि से व्रत करने वाला दिव्य फल को प्राप्त करता है ।
आवश्यक नियम
एकादशी का हर व्रत पवित्र माना जाता है। एकादशी व्रत में कुछ नियमों का पालन आवश्यक है। जानिए, एकादशी के दिन क्या करें और क्या न करें-
ब्रह्मचर्य का पालन करें तथा भोग विलास से भी दूर रहें।
एकादशी को लकड़ी का दातुन तथा पेस्ट का उपयोग न करें नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और अंगुली से कंठ शुद्ध कर लें।
वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है, स्वयं गिरे हुए पत्ते का सेवन करें।
स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहितादि से श्रवण करें।
प्रभु के सामने इस प्रकार संकल्प करें – ‘आज मैं चोर, पाखण्डी और दुराचारी मनुष्य से बात नहीं करुंगा और न ही किसी का दिल दुखाऊंगा। गौ, ब्राह्मण आदि को फलाहार व अन्नादि देकर प्रसन्न करुंगा। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करुंगा, ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस द्वादश अक्षर मंत्र अथवा गुरुमंत्र का जाप करुंगा, राम, कृष्ण, नारायण इत्यादि विष्णुसहस्रनाम को कण्ठ का भूषण बनाऊंगा।’ ऐसी प्रतिज्ञा करके श्रीविष्णु भगवान का स्मरण कर प्रार्थना करें कि : ‘हे त्रिलोकपति ! मेरी लाज आपके हाथ है, अत: मुझे इस संकल्प को पूरा करने की शक्ति प्रदान करें।’ मौन, जप, शास्त्र पठन, कीर्तन, रात्रि जागरण एकादशी व्रत में विशेष लाभ पंहुचाते हैं।
एकादशी के दिन अशुद्ध द्रव्य से बने पेय न पिएं। कोल्ड ड्रिंक्स, एसिड आदि डाले हुए फलों के डिब्बाबंद रस को न पिएं।
दो बार भोजन न करें। आइसक्रीम व तली हुई चीजें न खाएं।
फल अथवा घर में निकाला हुआ फल का रस अथवा थोड़े दूध या जल पर रहना विशेष लाभदायक है।
व्रत के (दशमी, एकादशी और द्वादशी) -इन तीन दिनों में कांसे के बर्तन, मांस, प्याज, लहसुन, चावल, मसूर, उड़द, चने, शाक, शहद, तेल और अधिक जल का सेवन न करें। व्रत के पहले दिन (दशमी को) और दूसरे दिन (द्वादशी को) हविष्यान्न (जौ, गेहूं, मूंग, सेंधा नमक, कालीमिर्च, शर्करा और गोघृत आदि) का एक बार भोजन करें।
फलाहारी को गोभी, गाजर, शलजम, पालक, कुलफा का साग इत्यादि सेवन नहीं करना चाहिए।
आम, अंगूर, केला, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करना चाहिए।
जुआ, निद्रा, पान, पराई निन्दा, चुगली, चोरी, हिंसा, मैथुन, क्रोध तथा झूठ, कपटादि अन्य कुकर्मों से नितान्त दूर रहना चाहिए।
बैल की पीठ पर सवारी न करें।
भूलवश किसी निन्दक से बात हो जाए तो इस दोष को दूर करने के लिए भगवान सूर्य के दर्शन तथा धूप दीप से श्रीहरि की पूजा कर क्षमा मांग लेनी चाहिए।
एकादशी के दिन घर में स्वयं झाडू नहीं लगाएं, इससे चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है।
इस दिन बाल नहीं कटाएं।
मधुर बोलें, अधिक न बोलें, अधिक बोलने से न बोलने योग्य वचन भी निकल जाते हैं।
सत्य भाषण करना चाहिए।
इस दिन यथाशक्ति अन्नदान करें किन्तु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न कदापि ग्रहण न करें।
प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करनी चाहिए।
|| हरि ॐ तत्सत ||