नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के रायबरेली से कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को लोकसभा में विपक्ष का नेता नियुक्त किया गया है। ‘जय संविधान’ का नारा देते हुए राहुल गांधी ने मंगलवार को 18वीं लोकसभा के सदस्य के रूप में शपथ ली थी। कांग्रेस पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने संवाददाताओं को बताया कि कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी ने पार्टी के इस फैसले के बारे में सूचित करते हुए लोकसभा के ‘प्रोटेम स्पीकर’ (अस्थायी अध्यक्ष) भर्तृहरि महताब को पत्र भेजा है। सूत्रों ने बताया कि ‘इंडिया’ गठबंधन के घटक दलों के नेताओं की बैठक में ये फैसला लिया गया।
20 साल के राजनीतिक सफर में राहुल गांधी पहली बार किसी संवैधानिक पद पर बैठेंगे। यूथ कांग्रेस, एनएसयूआई के प्रभारी, पार्टी के उपाध्यक्ष से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष पद पर राहुल गांधी रह चुके है लेकिन ये सभी पद पार्टी में रहे हैं। ये पहली बार है कि वे किसी संवैधानिक पद पर आसीन होने जा रहे हैं। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष (Leader of the Opposition) का दर्जा एक महत्वपूर्ण संवैधानिक पद है। यह पद लोकतांत्रिक व्यवस्था में संतुलन बनाए रखने और सत्तारूढ़ पार्टी की नीतियों की आलोचना एवं जांच-पड़ताल करने के लिए स्थापित किया गया है। नेता प्रतिपक्ष को केंद्रीय मंत्री का दर्जा और वेतन मिलता है। इसके अतिरिक्त, उन्हें संसद की विभिन्न समितियों में विशेष अधिकार और भूमिका दी जाती है।
कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने ट्वीट करते हुए लिखा, “18वीं लोकसभा में, जनता का सदन सही मायनों में अंतिम व्यक्ति की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करेगा। राहुल गांधी उनकी आवाज बनेंगे। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में, मुझे विश्वास है कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक और मणिपुर से महाराष्ट्र तक देश के कोने-कोने में यात्रा करने वाला एक नेता लोगों की आवाज उठाएगा – खासकर वंचितों और गरीबों की। कांग्रेस पार्टी न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के अपने शाश्वत सिद्धांतों को कायम रखते हुए लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए दृढ़ता से प्रतिबद्ध है।”
2004 से चुनावी राजनीति में राहुल
राहुल गांधी 2004 से चुनावी राजनीति में हैं। हालांकि 20 साल बाद राहुल गांधी ने संसद में कोई बड़ी जिम्मेदारी संभाली है। इस बीच 2004 से 2014 तक, पूरे 10 साल उनकी पार्टी की ही सरकार रही, लेकिन राहुल गांधी संसद में किसी पद पर नहीं दिखे। राहुल गांधी ने 2004 में भारतीय राजनीति में कदम रखा और अपना पहला चुनाव अमेठी से लड़ा। यह वही सीट थी जिसका प्रतिनिधित्व उनकी मां सोनिया गांधी (1999-2004) और उनके दिवंगत पिता राजीव गांधी ने 1981-91 के बीच किया था।
राहुल गांधी लगभग तीन लाख मतों के भारी अंतर से जीते। 2009 में वह फिर जीते लेकिन 2014 में उनकी जीत का अंतर कम हो गया और 2019 में ईरानी से हार गए। गांधी को 2013 में कांग्रेस का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया और 16 दिसंबर, 2017 को उन्होंने पार्टी की कमान संभाली। लोकसभा चुनावों में हार के बाद उन्होंने मई 2019 में अध्यक्ष पद छोड़ दिया। इसके बाद से राहुल ने देशभर में यात्राएं निकालीं। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के अलावा उन्होंने मणिपुर से मुंबई तक की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ भी की। कांग्रेस नेताओं ने राहुल की इन पहलों की पार्टी कार्यकर्ताओं व समर्थकों को प्रेरित करने के लिए सराहना की।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष इस लोकसभा चुनाव में रायबरेली और वायनाड दोनों सीट से जीते थे, लेकिन उन्होंने वायनाड सीट छोड़ दिया जहां से उनकी बहन प्रियंका गांधी वाद्रा चुनाव लड़ेंगी। अब नेता प्रतिपक्ष के रूप में सभी की निगाहें राहुल गांधी पर होंगी। पिछले 10 सालों में राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी सरकार को विभिन्न मुद्दों पर घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ा। अब संसद में भी वह विपक्ष की मजबूत आवाज हो सकते हैं। राहुल गांधी को पिछले दिनों पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था कांग्रेस कार्य समिति (CWC) ने लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने का अनुरोध किया था। कांग्रेस के निर्धारित 55 सीटों से कम सदस्य होने के कारण 16वीं और 17वीं लोकसभा में विपक्ष का नेता का दर्जा नहीं दिया गया था।
कांग्रेस पार्टी के प्रमुख चेहरा
राहुल गांधी को लोकसभा चुनाव से पहले भले ही कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया था लेकिन चुनाव में वही पार्टी के प्रमुख चेहरा थे। उनकी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ तथा चुनाव प्रचार के दौरान ‘संविधान बचाओ अभियान’ के कारण पार्टी को इस चुनाव में जबरदस्त फायदा हुआ है। इस बार कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) ने मिलकर मजबूती से चुनाव लड़ा। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में 99 सीट जीती हैं। CWC ने पहले ही राहुल गांधी को सर्वसम्मति से लोकसभा में विपक्ष का नेता बनाने का प्रस्ताव पारित किया था। पार्टी का मानना है कि राहुल गांधी ही लोकसभा में पार्टी के मुद्दों को प्रभावी तरीके से उठा सकते हैं।
कांग्रेस पार्टी को एक सशक्त नेतृत्व मिलेगा?
राहुल गांधी का लोकसभा में विपक्ष का नेता (LoP) बनना कांग्रेस पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। यह निर्णय कांग्रेस पार्टी की राजनीति और रणनीति को नए सिरे से दिशा देने में सहायक हो सकता है। अपनी पार्टी के लिए राहुल गांधी एक प्रमुख नेता हैं और उनकी नियुक्ति से कांग्रेस पार्टी को एक सशक्त नेतृत्व मिल सकता है, जिससे वे सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों पर प्रभावी रूप से सवाल उठा सकते हैं और जनता की समस्याओं को सदन में बेहतर ढंग से उठा सकते हैं।
विपक्ष के नेता के रूप में राहुल गांधी का काम सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करना और जनता के मुद्दों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करना होगा। हालांकि, उनके सामने कई चुनौतियां भी होंगी, जैसे पार्टी और गठबंधन के भीतर एकजुटता बनाए रखना और संसद में विपक्ष की भूमिका को प्रभावी ढंग से निभाना।
राहुल गांधी के लिए सबसे अहम होगा विपक्षी गठबंधन में एकता को बनाए रखना। इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूशिव अलायंस (INDIA) नामक इस गठबंधन में कई क्षेत्रीय दल हैं। जिनमें 37 लोकसभा सीटों के साथ समाजवादी पार्टी और 29 सीटों के साथ तृणमूल कांग्रेस (TMC) गठबंधन की दूसरी और तीसरी बड़े पार्टियां हैं।